मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के टिकट वितरण में एक खास पहलू उभर कर आया हैं। दोनों ही दलों में तीन प्रमुख नेताओं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपने समर्थकों को टिकट दिलाने में सफल तो रहे हैं लेकिन आला कमान की ओर से इन्हें फ्रीहैंड नहीं मिला है। आला कमान ने इनके कहने पर टिकट तो दिए लेकिन तीनों नेताओं के कुछ बेहद खास लोगों के टिकट काट दिए गए। यानी कहीं ना कहीं दोनों दलों के केंद्रीय नेतृत्व ने अपनी सुप्रीमेसी टिकट वितरण में बनाए रखी।
प्रदेश में पांच सालों का चुनावी इतिहास
राजस्थान में पिछले चार-पांच चुनाव का इतिहास देखें तो यह देखने में आया है कि कांग्रेस में अशोक गहलोत और भारतीय जनता पार्टी में वसुंधरा राजे अपने हिसाब से टिकट दिलाते रहे हैं। यह दोनों नेता जब भी मुख्यमंत्री रहे पार्टी की ओर से इन्हें फ्री हैंड मिलता रहा है। इस चुनाव की बात करें तो तस्वीर कुछ अलग दिख रही है। दोनों ही दल पूरे कार्यकाल के दौरान आंतरिक खींचतान और जबरदस्त गुटबाजी के शिकार रहे। यही कारण रहा कि कई बार तो यहां के नेता सीधे तौर पर आला कमान को चुनौती देते भी नजर आए। पार्टियों का केंद्रीय नेतृत्व उस समय तो चुप रहा लेकिन अब जब टिकट वितरण का समय आया तो दिल्ली में बैठे नेताओं ने दिखा दिया कि आलाकमान से ऊपर कुछ नहीं होता। केंद्रीय नेतृत्व ने अशोक गहलोत, सचिन पायलट और वसुंधरा राजे के कहने से टिकट तो दिए लेकिन इनके कुछ बेहद खास लोगों को खारिज कर दिया और सीधे-सीधे यह संदेश दिया किसी को भी कोई गलतफहमी पालने की जरूरत नहीं है।
दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के सुप्रीम आलाकमान
राजनीतिक विश्लेषक राजीव तिवारी का कहना है कि ये सही है कि देश की दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियों में आलाकमान सुप्रीम रहा है और होना भी चाहिए। लेकिन फिर भी उसे कई बार राज्यों में प्रभावी टीवी नेताओं के सामने झुकना पड़ता है। राजस्थान में इस बार ऐसा ही हुआ है। अशोक गहलोत, सचिन पायलट और वसुंधरा अपने ज़्यादातर समर्थकों को टिकट दिलाने में सफल रहे। जिनके काटे गए उनकी आलाकमान के पास वाजिब वजह रही हैं। अगर सितंबर 2022 के कारण टिकट कटते तो धारिवाल को टिकट नहीं मिलता। महेश जोशी और राठौड़ सर्वे में भी पिछड़ गये थे और ईडी की करवाई भी एक कारण थी। मलिंगा विवादों में रहे। बीजेपी ने एक भी मुस्लिम को नहीं उतारा इसलिए यूनुस ख़ान का टिकट काटा। राजपाल पांच साल निष्क्रिय रहे और लाहोटी के क्षेत्र में ही विरोध था।
इन उदाहरणों से समझते है...
अशोक गहलोत
कांग्रेस ने पार्टी के 85 मौजूदा विधायकों को फिर से रिपीट किया है। इसके साथ ही कई निर्दलीयों और बसपा से आए विधायकों को भी पार्टी के सिंबल पर टिकट दिया गया है। यानी टिकट वितरण में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की जमकर चली है, लेकिन उनके दो बेहद विश्वास पात्र नेता जलदाय मंत्री महेश जोशी और राजस्थान पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष धर्मेंद्र राठौर को टिकट नहीं मिल पाया। वहीं संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल का टिकट भी आखिरी सूची में फाइनल हो पाया। इन तीनों ही नेताओं ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए पिछले वर्ष 25 सितंबर को सीधे तौर पर आला कमान को चुनौती दे दी थी। उसे समय तो पार्टी इन्हें कारण बताओ नोटिस देखकर चुप रही, लेकिन अब यह दिखा दिया की निष्ठा नेता से नहीं पार्टी से दिखाना जरूरी है।
सचिन पायलट
सचिन पायलट के भी कई समर्थकों को पार्टी के 199 प्रत्याशियों की सूची में टिकट मिल गए। इनमें वह भी शामिल है जो जुलाई 2020 में पार्टी से बगावत कर उनके साथ मानेसर चले गए थे। पायलट इन्हें तो टिकट दिलाने में सफल रही, लेकिन उनके कई अन्य समर्थक जो टिकट की दौड़ में थे, उन्हें टिकट नहीं दिए गए। मसलन सुरेश मिश्रा, ज्योति खंडेलवाल, दर्शन सिंह, सुभाष मील, पी आर मीणा, खिलाड़ी लाल बैरवा, गिर्राज मलिंगा जैसे कई नाम हैं जो बहुत खुलकर पायलट का समर्थन कर रहे थे और इन्हें टिकट मिलता तो पायलट का प्रभाव पार्टी में और बढ़ सकता था। पायलट के साथ गंभीर बात यह भी हो गई है कि इनमें से कई लोग बीजेपी का दामन थाम चुके हैं।
वसुंधरा राजे
चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे लगभग हाशिए पर दिख रही थी। पार्टी की पहली सूची जब जारी हुई तो लगा कि पार्टी में राजे का युग अब खत्म हो गया है, लेकिन इसके बाद वाली सभी सूचियां में उनके समर्थकों के नाम नजर आने लगे। माना जा रहा है कि 200 में से करीबन 50 प्रत्याशी उनके समर्थक माने जा सकते है, लेकिन इतना होने के बावजूद पार्टी ने उनके कुछ बेहद खास लोगों के टिकट काट दिए। इनमें उनके समय में मंत्री रहे यूनुस खान राजपाल सिंह शेखावत, विधायक अशोक लाहोटी और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी जैसे नाम शामिल हैं। ये वो लोग हैं जो 5 साल के दौरान वसुंधरा राजे के सभी कार्यक्रमों की व्यवस्थाएं संभालते रहे हैं और उनकी कोर टीम के सदस्य रहे हैं। लेकिन जब टिकट देने का समय आया तो राजे इन्हें टिकट नही दिलवा पाई। बहरहाल अब टिकट वितरण हो चुका है और देखना यह है कि परियों के केंद्रीय नेतृत्व का यह संदेश कितना असर दिखाता है।
राजनीतिक विश्लेषक राजीव तिवारी का कहना है कि यह सही है कि देश की दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियों में आला कमान सुप्रीम रहा है, लेकिन फिर भी उसे कई बार राज्यों में प्रभावी टीवी नेताओं के सामने झुकना पड़ता है। राजस्थान में इस बार ऐसा ही हुआ है। अशोक गहलोत, सचिन पायलट और वसुंधरा अपने ज्यादातर समर्थकों को टिकट दिलाने में सफल रहे। जिनके टिकट काटे गए उनकी आलाकमान के पास वाजिब वजह रही हैं। अगर सितंबर 2022 के कारण टिकट कटते तो धारिवाल को टिकट नहीं मिलता। महेश जोशी और राठौड़ सर्वे में भी पिछड़ गए थे और ईडी की करवाई भी एक कारण थी। मलिंगा विवादों में रहे। बीजेपी ने एक भी मुस्लिम को नहीं उतारा इसलिए यूनुस खान का टिकट काटा। राजपाल पांच साल निष्क्रिय रहे और लाहोटी का क्षेत्र में ही विरोध था।