मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान विधानसभा के चुनाव में इस बार कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दलों के खासे दमदार बागी चुनाव मैदान में थे और इन्होंने पूरी ताकत से चुनाव भी लड़ा। इनके अलावा कुछ सीटें ऐसी भी हैं जहां दूसरे दलों के प्रत्याशियों ने भी बीजेपी-कांग्रेस के प्रत्याशियों को कड़ी चुनौती दी है। यही कारण है कि प्रदेश की 21 सीटें ऐसी हैं जिनके चुनाव परिणाम पर पूरे प्रदेश की नजरें टिकी हैं।
2018 में दूसरे दलों और निर्दलीय विधायकों को मिलाकर बनी थी सरकार
राजस्थान में पिछली बार दूसरे दलों और निर्दलियों को मिलाकर कुल 27 विधायक विधानसभा में पहुंचे थे और सरकार बनते ही इनकी जरूरत महसूस होने लगी थी, क्योंकि कांग्रेस के पास खुद की 200 में से 100 ही सीटें थीं। आरएलडी के साथ गठबंधन था तो इसलिए बहुमत का आंकड़ा तो हो गया, लेकिन कांग्रेस में जिस तरह का आतंरिक संघर्ष चला, उसके चलते ये विधायक पूरे 5 साल अहम बने रहे। सरकार ने इनकी हर सुविधा का पूरा ध्यान रखा और सरकार को समर्थन दे रहे 8 निर्दलियों और 4 बसपाई विधायकों को तो कांग्रेस पार्टी का टिकट भी मिल गया।
सत्ता का संघर्ष काफी क्लोज
इस बार भी सत्ता का संघर्ष काफी क्लोज माना जा रहा है। मतदान के बाद से सामने आ रहा फीडबैक बता रहा है कि कांटे की टक्कर हो सकती है और परिणाम के बाद इस बार फिर निर्दलीय और अन्य दलों से आने वाले विधायक सरकार के गठन में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
मतदान प्रतिशत अच्छा
जिन सीटों पर बागी या दूसरे दलों के प्रत्याशी मजबूती से लड़े हैं, वहां मतदान प्रतिशत भी अच्छा है जो ये बता रहा है कि मतदाताओं को मतदान केन्द्र तक लाने में इन प्रत्याशियों ने भी पूरी ताकत लगाई है।
पिछली बार से कम रह सकती है अन्य की संख्या
फीडबैक ये बता रहा है कि इस बार निर्दलियों और अन्य दलों के विधायकों की संख्या पिछली बार के मुकाबले कम रहने की सम्भावना है। इसका एक कारण ये माना जा रहा है कि पिछली बार बसपा के 6 विधायक थे और बसपा का ट्रेंड रहा है कि वो एक चुनाव में अच्छा करती है और दूसरे में उसका प्रदर्शन डाउन चला जाता है। ऐसे में निर्दलीय और अन्य दलों के विधायकों की संख्या 20 के आसपास रह सकती है।
वे सीटें जहां टक्कर में बागी और अन्य दलों के प्रत्याशी
चित्तौड़गढ़ ( 79.66 प्रतिशत वोटिंग )
यहां से बीजेपी के मौजूदा विधायक चंद्रभान सिंह आक्या पार्टी के बागी हैं। जीते तो बीजेपी के ही साथ जाने की संभावना।
बसेड़ी (73.9 प्रतिशत वोटिंग)
यहां से कांग्रेस के मौजूदा विधायक और अनूसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष खिलाड़ीराम बैरवा बागी हैं। गहलोत फिर से सीएम बने तो शायद कांग्रेस के साथ न जाएं।
डीडवाना (73.43 प्रतिशत वोटिंग)
यहां से बीजेपी सरकार में मंत्री रहे युनूस खान बागी हैं। वसुंधरा राजे सीएम बनीं तो बीजेपी के साथ जाना तय।
सवाई माधोपुर (70.94 प्रतिशत वोटिंग)
यहां से बीजेपी की पूर्व प्रत्याशी आशा मीणा बागी हैं। जीती तो बीजेपी के साथ ही जा सकती हैं।
लूणकरणसर (76.75 प्रतिशत वोटिंग)
यहां से पूर्व मंत्री वीरेंद्र बेनीवाल कांग्रेस के बागी हैं। जीते तो कांग्रेस के साथ ही बने रह सकते हैं।
बाड़मेर (80.88 प्रतिशत वोटिंग)
यहां से बीजेपी की पूर्व प्रत्याशी प्रियंका चौधरी बागी हैं। जीतीं तो बीजेपी के साथ ही बनी रह सकती हैं।
नागौर (68.77% वोटिंग)
पूर्व विधायक हबीबुर्रहमान कांग्रेस के बागी हैं। ये कांग्रेस और बीजेपी दोनों में रह चुके हैं, इसलिए जीतने पर किसी भी तरफ जा सकते हैं।
शाहपुरा (72.32% वोटिंग)
भीलवाड़ा जिले की इस सीट से पूर्व स्पीकर कैलाश मेघवाल पार्टी के बागी हैं। वसुंधरा राजे सीएम बनीं तो बीजेपी के साथ जा सकते हैं।
शाहपुरा (83.83% वोटिंग)
जयपुर जिले की इस सीट पर कांग्रेस के आलोक बेनीवाल मैदान में हैं। कांग्रेस के साथ ही रहने की संभावना है।
किशनगढ़ (76.21% वोटिंग)
इस सीट से मौजूदा निर्दलीय विधायक सुरेश टांक फिर से मैदान मे हैं और किसी ओर भी जा सकते हैं।
झोटवाड़ा (71.52% वोटिंग)
बीजेपी के बागी आशु सिंह सुरपुरा मैदान में हैं और जीते तो बीजेपी के ही काम आ सकते हैं।
बानसूर (71.24% वोटिंग)
पूर्व मंत्री रोहिताश्व शर्मा बीजेपी के बागी हैं और आजाद समाज पार्टी से उम्मीदवार हैं। वसुंधरा राजे सीएम बनीं तो साथ रहेंगे।
कोटपूतली (76.71% वोटिंग)
बीजेपी के पूर्व मुकेश गोयल मैदान में हैं और जीते तो बीजेपी के साथ ही रहने की संभावना है।
बहरोड (74.25% वोटिंग)
मौजूदा निर्दलीय विधायक बलजीत यादव फिर से मैदान में हैं। जीते तो जिसकी सरकार उसके साथ ही रहने की संभावना है।
भोपालगढ़ (66.05% वोटिंग)
यहां से आरएलपी के मौजूदा विधायक पुखराज गर्ग मैदान में हैं और जरूरत पड़ने पर कांग्रेस के साथ देने की संभावना है।
खींवसर (73.49% वोटिंग)
यहां से आरएलपी के संयोजक हनुमान बेनीवाल मैदान में है और जीते तो कांग्रेस के साथ ही जाने की संभावना है।
शिव (83.28% वोटिंग)
यहां से बीजेपी के रविन्द्र सिंह भाटी और जालम सिंह और कांग्रेस के फतेह खान मैदान में हैं। जो जीता वो अपनी पार्टी के साथ ही जा सकता है।
उदयपुरवाटी (76.42% वोटिंग)
यहां से सरकार से बर्खास्त मंत्री शिवसेना शिंदे गुट के राजेन्द्र गुढ़ा मैदान में है। जीते तो बीजेपी के साथ ही जाने की संभावना है। पायलट सीएम बने तो कांग्रेस के साथ भी जा सकते हैं।
बस्सी (78.37% वोटिंग)
यहां से बीजेपी के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जितेन्द्र मीणा और निर्दलीय विधायक रहीं। अंजु धानका मैदान में है। जितेन्द्र मीणा जीते तो बीजेपी के साथ और अंजु धानका जिसकी सरकार बनी उसके साथ जा सकती हैं।
चैरासी (81.76% वोटिंग)
यहां से मौजूदा विधायक राजकुमार रोत भारतीय आदिवासी पार्टी के प्रत्याशी हैं। कांग्रेस के साथ जाने की संभावना है, क्योंकि पार्टी के बीजेपी से वैचारिक मतभेद हैं।
धोंद (71.94% वोटिंग)
यहां से माकपा के पूर्व विधायक पेमाराम ने मजबूती से चुनाव लड़ा है। जीते तो किसी के साथ नहीं जाएंगे।