मप्र में दूसरी लिस्ट के बाद BJP में बढ़ी बगावत, कुछ नेताओं का निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान, डैमेज कंट्रोल में कहां चूक गई बीजेपी?

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Harish Divekar
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मप्र में दूसरी लिस्ट के बाद BJP में बढ़ी बगावत, कुछ नेताओं का निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान, डैमेज कंट्रोल में कहां चूक गई बीजेपी?

BHOPAL. गोपाल दास नीरज का लिखा एक बेहद रोमांटिक गाना है... खिलते हैं गुल यहां, खिल के बिखरने को... मिलते हैं दिल यहां मिलके बिछड़ने को। ये रोमांटिक सॉन्ग इन दिनों मध्यप्रदेश की सियासत पर पूरी तरह फिट नजर आता है खासतौर से बीजेपी में। अब आप जरूर पूछ सकते हैं कि एक रोमांटिक सॉन्ग की मिसाल बीजेपी के मौजूदा हालात पर भला कहां फिट बैठ रही है। तो ये बता दूं कि इसका रोमांस से कुछ लेना देना नहीं है। भाई जब से लिस्ट आना शुरू हुई है तब से ही बीजेपी में रोज एक नया नेता एक नया गुल खिला रहा है और जो दिल अब तक पार्टी से मिले हुए थे वो दिल बिछड़ने लगे हैं। पहली और दूसरी लिस्ट के बाद बीजेपी में बगावत के सुर बुलंद हैं। सर्वे पर सर्वे कराकर प्रदेश में उतरी बीजेपी पहली बार बिना किसी फुलप्रूफ प्लानिंग के फैसले लेती जान पड़ रही है और उधर कांग्रेस है जो सुस्त पड़ी है या फिर सुस्ती का दिखावा कर रही है।

दूसरी लिस्ट के फैसले से दिग्गज भी हैरान नजर आए

मध्यप्रदेश में बीजेपी प्रत्याशियों के नाम की दो लिस्ट जारी कर चुकी है। दोनों लिस्ट अजब संयोगों से भरी पड़ी हैं। पहला संयोग तो दोनों के नंबर को लेकर है दोनों 39-39 प्रत्याशियों के ही नाम हैं और दूसरा संयोग ये कि दोनों के बीच का अंतराल भी 39 दिनों की ही है। इस के बाद कई ज्योतिष इसके अंक गणित के मायने बता रहे हैं, लेकिन बीजेपी के ये फैसले उसे कहां लेकर जाएंगे ये न ज्योतिष बता पा रहे हैं और न चुनावी पंडित समझ पा रहे हैं। पहली लिस्ट के बाद दूसरी लिस्ट में दिग्गजों को मैदान में उतारा गया। अव्वल तो इस फैसले से दिग्गज ही हैरान नजर आए। दूसरा ये कि उनके नाम भी जमीनी स्तर पर नाराजगी को नहीं रोक पा रहे हैं। अब खबर है कि अगली लिस्ट में मौजूदा मंत्रियों के टिकट भी कट सकते हैं। उसके बाद क्या हालात होंगे अंदाजा लगाया जा सकता है। बगावत तो बढ़ना तय माना जा रहा है तो क्या कांग्रेस भी उसी बगावत का इंतजार कर रही है इसलिए लिस्ट जारी करने में देरी हो रही है।

कांग्रेस जीते विधायकों को नजरअंदाज नहीं करना चाहती

बीजेपी और कांग्रेस दोनों की ही रणनीति इस बार कई सवाल खड़े कर रही है। 20 साल से प्रदेश की नब्ज थामने वाली बीजेपी इस बार अपनी ही बगावत को नहीं संभाल पा रही और कांग्रेस में सुस्ती का आलम ये है कि पहली ही लिस्ट जारी नहीं हो सकी है। बगावत को कुछ हद तक कंट्रोल करने के लिए बीजेपी अपने नेताओं से ही ये बुलवा रही है कि वो चुनाव नहीं लड़ना चाहते, लेकिन जो चुनावी मैदान में बागी बनकर ताल ठोंक चुके हैं उनका क्या। वैसे तो कांग्रेस ये साफ कर चुकी है कि अपने जीते हुए विधायकों को वो नजरअंदाज नहीं करेगी। यानी ऐसी सीटों पर बीजेपी के बागियों को जगह मिलना मुश्किल है। तो चुनावी मैदान में उनकी मौजूदगी कैसे होगी और क्या रंग लाएगी।

दो लिस्ट के बाद से ही बीजेपी में भगदड़ मचनी शुरू हो गई

बीजेपी की दूसरी लिस्ट में केदारनाथ शुक्ल और जालम सिंह पटेल दोनों के टिकट कट गए। कैलाश विजयवर्गीय को टिकट मिलने के बाद आकाश विजयवर्गीय का टिकट भी डाउटफुल है। खबरें तो ये भी हैं कि खुद आकाश विजयवर्गीय ये कह चुके हैं कि वो चुनाव नहीं लड़ेंगे। हालांकि, इस बीच उनके समर्थकों की नाराजगी की भी खबरें आ रही हैं। खैर दो लिस्ट के बाद से ही बीजेपी में भगदड़ मचनी शुरू हो गई है। जिनके टिकट कटे वो नेता चुनावी मैदान में निर्दलीय उतरने की ताल ठोंक रहे हैं या नया ठिकाना तलाश रहे हैं। अब खबर है कि अगली लिस्ट में बीजेपी तकरीबन 10 मंत्रियों के टिकट काट सकती है और 20 से 25 विधायकों के नाम भी फेहरिस्त से गायब हो सकते हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं कि बीजेपी ने फैसले तो सख्त लिए हैं. लेकिन ये बगावत को थामने में नाकाम हैं। बगावत के सुर की सीटों से बुलंद हो चुके हैं।

घोषित प्रत्याशियों की सूची से इनमें हो सकती है नाराजगी

  • सीधी विधानसभा सीट से बीजेपी ने वर्तमान विधायक केदारनाथ शुक्ला का टिकट काटकर सांसद रीति पाठक को प्रत्याशी घोषित किया है। इस फैसले से केदारनाथ नाराज हैं और निर्दलीय मैदान में नजर आ सकते हैं। टिकट की दावेदारी कर रहे बीजेपी के पूर्व जिला अध्यक्ष व प्रदेश कार्य समिति के सदस्य डॉ. राजेश मिश्रा ने बीजेपी से इस्तीफा दे दिया है।
  • सतना विधानसभा सीट से सांसद गणेश सिंह प्रत्याशी बनाए गए हैं। इससे नाराज स्थानीय नेता शिवा चतुर्वेदी ने पार्टी छोड़कर निर्दलीय चुनाव लड़ने के संकेत दिए हैं। शिवा चतुर्वेदी ने वीडियो जारी कर कहा, कोरोना काल में यही सांसद गणेश सिंह घर से नहीं निकले। सतना की जनता ने अगर सहमति दी तो वे गणेश जी के आशीर्वाद से निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे। यहां से पूर्व विधायक शंकरलाल तिवारी भी बगावत कर सकते हैं.
  • श्योपुर विधानसभा सीट से पूर्व विधायक दुर्गा लाल विजय प्रत्याशी बनाए गए हैं। इस फैसले से नाराज होकर पूर्व जिला अध्यक्ष राधेश्याम रावत ने इस्तीफा दे दिया है। रावत का कहना है कि 'बीजेपी एक ही व्यक्ति को पिछले 30 साल से टिकट देकर दूसरे समाजों की अनदेखी कर रहे है।
  • मैहर विधानसभा से श्रीकांत चतुर्वेदी को कैंडिडेट घोषित किए जाने के बाद भाजपा से विधायक नारायण त्रिपाठी ने पार्टी के फैसले पर तंज कसा है। त्रिपाठी ने कहा सांसद विधायक का चुनाव लड़ेंगे तो क्या विधायक सरपंच का चुनाव लड़ने जाएं।
  • नागदा-खाचरोद विधानसभा क्षेत्र से डॉ. तेज बहादुर सिंह को टिकट दिए जाने से नाराज लोकेंद्र मेहता ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि सर्वे और पैनल में एक नम्बर पर नाम होने के बाद भी टिकट नहीं दिया गया। यह समझ से परे है कि किस आधार पर फैसला लिया गया।

आने वाली लिस्ट में कुछ मंत्रियों के नाम भी कटने के आसार हैं। इसमें...

  1. बड़वानी से प्रेम सिंह पटेल
  2. ग्वालियर (ग्रामीण) से भरत सिंह कुशवाह
  3. अमरपाटन से रामखेलावन पटेल
  4. मुंगावली से ब्रजेंद्र सिंह यादव
  5. मेहगांव से ओपीएस भदोरिया

यशोधरा का चुनाव न लड़ने का निजी फैसला या मजबूरी

यशोधरा राजे सिंधिया की तरफ से खबर आ चुकी है कि वो खुद चुनाव नहीं लड़ना चाहती। अब ये उनका निजी फैसला है या पार्टी के दबाव में ऐसा कहने पर मजबूर है फिलहाल कहा नहीं जा सकता। मंत्रियों के अलावा कुछ विधायकों के टिकट भी कट सकते हैं। इसमें...

सीताराम आदिवासी (विजयपुर), रक्षा सिरोनिया (भांडेर), गोपीलाल जाटव (गुना), महेश राय (बीना), राजेश प्रजापति (चंदला), प्रहलाद लोधी (पवई), नागेंद्र सिंह (नागौद), विक्रम सिंह (रामपुर बघेलान), केपी त्रिपाठी (सेमरिया), रामलल्लू वैश्य (सिंगरौली), शरद कोल (ब्यौहारी), राकेश पाल सिंह (केवलारी), संजय शाह (टिमरनी), सीतासरन शर्मा (होशंगाबाद), उमाकांत शर्मा (सिरोंज), राजश्री सिंह (शमशाबाद), सुमित्रा कास्तदेकर (नेपानगर), सुलोचना रावत (जोबट), आकाश विजयवर्गीय (इंदौर-3), महेंद्र हर्डिया (इंदौर-5), पारस जैन (उज्जैन उत्तर)।

बगावत का फायदा कांग्रेस को हो सकता है

टिकट कटने के बाद बगावत होना लाजमी है। पार्टियां अमूमन इसके लिए तैयार भी रहती हैं, लेकिन इस बार बीजेपी डैमेज कंट्रोल करने में बुरी तरह फेल नजर आ रही है। सबसे बड़ी नाराजगी जो कुछ हलकों से सुनाई दे रही है इसकी वजह है प्रवासी विधायकों के सर्वे के आधार पर फैसले लेना। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का गुस्सा इस बात का है कि कोई बाहरी ये कैसे फैसला ले सकता है कि सही प्रत्याशी कौन होगा। नाराजगी का हाल यही रहा तो बागी मौजूदा प्रत्याशियों पर भारी पड़ सकते हैं जिसका फायदा कांग्रेस को हो सकता है।

कांग्रेस की वायरल फेक लिस्ट चुनावी पारे को बढ़ा रही हैं

क्या कांग्रेस भी बीजेपी के बागियों के सहारे ही चुनाव लड़ने के मूड में है। कांग्रेस ने अब तक एक भी लिस्ट जारी नहीं की है। हालांकि, कुछ नेता ये जरूर दावा कर चुके हैं कि जिन्हें मौका मिलना है उन्हें जानकारी दे दी गई है। कांग्रेस ने खुद लिस्ट जारी नहीं की है, लेकिन फेक लिस्ट जरूर वायरल हो रही हैं जो चुनावी पारे को बढ़ा ही रही हैं।

बड़ा सवालः चुनावी नैया इस बार कौन तय करेगा प्रत्याशी या बागी

साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस जबरदस्त तरीके से सक्रिय थी और शिवराज सिंह चौहान अकेले मोर्चा संभाल रहे थे। इस चुनाव में हालात उल्टे हैं। बीजेपी तेजी से फैसले ले रही है और कांग्रेस वेट एंड वॉच के मोड से ही बाहर नहीं आती नजर आ रही है। कांग्रेस ने तो चुनावी श्रीगणेश तक नहीं किया, तो क्या लिस्ट अब पितृपक्ष में जारी करेंगे या ये सुस्ती 15 दिन और कायम रहेगी। बीजेपी की तीसरी लिस्ट भी पार्टी में किसी तूफान का आगाज कर सकती है। जो हालात हैं उन्हें देखकर फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि इस बार प्रत्याशी नहीं मैदान में उतरे बागी ये तय करेंगे कि चुनावी नैया किसी किनारे बंधती है...।

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