जबलपुर में बागी बिगाड़ेंगे खेल, निर्दलीय लड़ सकते हैं चुनाव; सिहोरा, पनागर और उत्तर मध्य में सबसे ज्यादा विद्रोह

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BP Shrivastava
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जबलपुर में बागी बिगाड़ेंगे खेल, निर्दलीय लड़ सकते हैं चुनाव; सिहोरा, पनागर और उत्तर मध्य में सबसे ज्यादा विद्रोह

वेंकटेश कोरी, JABALPUR. मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी-कांग्रेस के बागी चुनाव मैदान में कूदने की रणनीति बना रहे हैं। इससे दोनों की मुख्य पार्टियां पशोपेश में हैं। हालांकि इनसे निपटने के लिए हर स्तर पर योजनाएं बनाई जा रही हैं। शहर की आठों सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणाओं के बाद दोनों ही पार्टियों के दावेदार आला कमान के फैसले पर सवाल उठा रहे हैं और पार्टी से टिकट नहीं मिलने के कारण अब खुद ही निर्दलीय चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं।

जबलपुर में तीन सीटों पर सबसे ज्यादा विरोध

जबलपुर की आठ विधानसभा सीटों में से तीन ऐसी सीटें हैं जहां सबसे ज्यादा विद्रोह देखा जा रहा है। सिहोरा में बीजेपी द्वारा जिला पंचायत अध्यक्ष संतोष बरकड़े को टिकट दिए जाने से मौजूदा विधायक नंदनी मरावी नाराज हैं, जबकि 2018 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रहे खिलाड़ी सिंह आर्मो ने भी टिकट की आस में ही बीजेपी की सदस्यता ली थी। इसके अलावा उत्तर मध्य क्षेत्र में 2018 के चुनाव में बागी प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में उतरने वाले धीरज पटेरिया बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं। पटेरिया के अलावा नगर निगम के नेता प्रतिपक्ष कमलेश अग्रवाल, इसी क्षेत्र से विधायक और मंत्री रहे शरद जैन की भूमिका पर भी सब की नजरें रहेंगी। पनागर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के प्रत्याशी बनाए गए राजेश पटेल के खिलाफ जबरदस्त मोर्चाबंदी की जा रही है। कांग्रेस के पूर्व ग्रामीण अध्यक्ष राधेश्याम चौबे के अलावा इसी सीट से टिकट मांग रहे विनोद श्रीवास्तव, वीरेंद्र चौबे और 2018 के चुनाव में बीजेपी से बागी हुए पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष भारत सिंह यादव भी बागी तेवर अपना सकते हैं।

टिकट से चूके दावेंदारों में आक्रोश, समर्थकों के साथ रणनीति में जुटे

सभी विधानसभा सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी ने अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं। ऐसे में अब तस्वीर पूरी तरह साफ हो गई है कि किस विधानसभा क्षेत्र से कौन प्रत्याशी चुनाव लड़ेगा, लेकिन प्रत्याशियों की घोषणा के बाद टिकट से चूके दावेदारों का आक्रोश भी सातवें आसमान पर पहुंच गया है और अब वे अपने समर्थकों के साथ आगामी रणनीति को लेकर न केवल चर्चा कर रहे हैं, बल्कि अपने स्तर पर पार्टी पर दबाव भी बना रहे हैं, इस भरोसे के साथ कि अगर उनका दबाव काम कर गया तो देर से ही सही पार्टी उनके नाम पर विचार कर सकती है।

सिहोरा, पनागर और उत्तर मध्य में सबसे ज्यादा विद्रोह

जबलपुर की आठ विधानसभा सीटों में से सबसे ज्यादा विद्रोह सिहोरा, पनागर और उत्तर मध्य क्षेत्र में देखा जा रहा है। सिहोरा से कांग्रेस ने जहां युवा चेहरा एकता ठाकुर को अपना उम्मीदवार घोषित किया है तो बीजेपी ने मौजूदा जिला पंचायत के अध्यक्ष संतोष बरकड़े पर दांव लगाया है, वहीं पनागर से दो बार के विधायक सुशील तिवारी 'इंदु' बीजेपी के उम्मीदवार हैं तो वहीं कांग्रेस ने उनके सामने पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष राजेश पटेल को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। जबलपुर के उत्तर मध्य क्षेत्र में भी कम गदर नहीं मची है। यहां भाजयुमो के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अभिलाष पांडे के नाम पर बीजेपी ने मुहर लगाई है तो कांग्रेस ने मौजूदा विधायक विनय सक्सेना को एक बार फिर मौका दिया है। ये तीनों ही सीटें ऐसी हैं, जहां बागी खेल बिगाड़ सकते हैं।

टिकट की आस में खरीदे फार्म

सभी विधानसभा सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा के बावजूद भी कई नेताओं को अब भी टिकट मिलने की पूरी उम्मीद है, यही वजह है कि प्रदेश नेतृत्व से लेकर दिल्ली दरबार तक ये नेता पूरा जोर लगा रहे हैं और उन्होंने अब भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है, इसी आस में टिकट से चूके कई दावेदारों ने तो नामांकन फार्म भी ले लिया हैं। टिकटों की घोषणा के बावजूद भी कई नेता अभी 'वेट एंड वॉच' की स्थिति में है उन्हें लगता है कि आखिरी पलों में आलाकमान उनके नाम पर विचार जरूर करेगा। बागी तेवर दिखाने वाले नेता इस बात की भी रणनीति बना रहे हैं पार्टी से कोई राहत नहीं मिली तो वे निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरेंगे और जनता के दरबार में अर्जी लगाएंगे।

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