बेटा-बेटी, चाचा-ताऊ, पोते-पोतियां, विधायक तो अपने घर से ही बनेगा

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Pratibha Rana
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बेटा-बेटी, चाचा-ताऊ, पोते-पोतियां, विधायक तो अपने घर से ही बनेगा

JAIPUR. राजस्थान में 25 नवंबर को विधानसभा चुनाव होने है। विधानसभा की सभी 200 सीटों पर एक साथ वोट डाले जाएंगे और 3 दिसंबर को नतीजे घोषित होंगे। 200 सदस्यीय विधानसभा के लिए बीजेपी और कांग्रेस ने सभी सीटों के लिए उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। इन सीटों पर राज्य के दो बड़े दलों बीजेपी और कांग्रेस ने किसे कहां से उतारा है, इस पर सभी की नजर है। बता दें, कांग्रेस और बीजेपी ने उन उम्मीदवारों को मैदान में उतारा हैं, जो नेताओं के रिश्तेदार हैं या राजनीतिक परिवारों से हैं। प्रदेश की कई सीटों पर परदादा-दादा के बाद उनके पोते-पोतियां चुनावी कैंडिडेट है। दोनों ही पार्टियों ने चेहरे बदले है, लेकिन परिवार को बदल नहीं पाईं है। इसी के चलते 45 सीटों पर उन लोगों को मौका दिया गया है, जिनकी तीन से चार पीढ़ियां लगातार चुनावी मैदान में थी।

राजस्थान में कब खत्म होगा परिवारवाद?

राजस्थान में कांग्रेस और बीजेपी लगातार एक-दूसरे पर परिवारवाद को बढ़ाने का आरोप लगाती रही है। लेकिन असल में दोनों ही पार्टियां परिवारवाद को बढ़ावा दे रही हैं। राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस ने 44 ऐसे प्रत्याशियों को चुनाव में उतारा है, जो सालों से पारिवारिक चुनाव लड़ रहे हैं। इसमें कांग्रेस के 24 और बीजेपी के 20 परिवार ऐसे हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चुनाव लड़ते हैं।

पार्टियों ने विधानसभा चुनाव में चेहरे बदले, लेकिन नहीं बदल पाई परिवार.....

जयपुर राजपरिवार

जयपुर पूर्व राजपरिवार काफी लंबे समय से राजनीति में सक्रिय है। गायत्री देवी तीन बार सांसद रही थीं। प्रदेश से पहली महिला सांसद चुनने का गौरव महारानी गायत्री देवी को हासिल हुआ था। वे 1962 में स्वतंत्र पार्टी की टिकट पर जयपुर से चुनाव जीती थी। इसके बाद उन्होंने दो बार और लोकसभा का चुनाव जीता। गायत्री देवी के बेटे भवानी सिंह ने भी 1989 में पहला चुनाव कांग्रेस की टिकट लोकसभा का लड़ा था। हालांकि वह हार गए थे। इसके बाद दीया कुमारी ने राजनीति में कदम रखा। उन्होंने पहला विधानसभा का चुनाव सवाईमाधोपुर से लड़ा। राजसमंद से सांसद रहीं और अब वे विद्याधर नगर से चुनाव लड़ रही हैं। बता दें, राजकुमारी दीया, महारानी गायत्री देवी की रिश्ते में पोती लगती हैं।

मदेरणा परिवार

1980 में परसराम विधायक और मंत्री थे। दादा परसराम मदेरणा 1957 से लगातार 2003 तक 46 साल 9 बार विधायक रहे हैं। 2003 के बाद परसराम ने चुनाव लड़ना छोड़ दिया। इसके बाद उनके बेटे ने विधानसभा का चुनाव जीता। दो बार विधायक बने। ओसियां से परसराम मदेरणा की पोती दिव्या मदेरणा चुनाव लड़ रही हैं और 2018 में पहली बार इसी से कांग्रेस को टिकट मिला था। उनके बेटे महिपाल मदेरणा पर भी पार्टी मेहरबान रही थी और जिला प्रमुख से राजनीतिक करियर की शुरुआत की। 2003 और 2008 से ओसियां से टिकट दी गई थी। इसके बाद उनकी पत्नी लीला मदेरणा को भी 2013 में कांग्रेस ने ओसियां से टिकट दिया गया था। हालांकि वे हार गई थीं।

मिर्धा परिवार

नागौर में मिर्धा परिवार पिछले 70 सालों से राजनीति में एक्टिव है। नाथूराम मिर्धा की पोती ज्योति मिर्धा बीजेपी में शामिल हो गई हैं। नागौर में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आई ज्योति मिर्धा और चाचा हरेंद्र मिर्धा आमने-सामने है। मिर्धा परिवार के चार प्रत्याशी तीन सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। इनमें खींवसर सीट से तेजपाल मिर्धा, नागौर में ज्योति मिर्धा और चाचा हरेंद्र मिर्धा आमने-सामने, जबकि डेगाना सीट पर विजयपाल मिर्धा कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे है।

बीकानेर राजपरिवार

राजस्थान की बीकानेर लोकसभा सीट पर राजपरिवार का दबदबा रहा है। यहां महाराजा करणी सिंह ने 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में निर्दलीय के तौर पर चुनाव जीता। 1952 से लेकर 1977 तक वे निर्दलीय लोकसभा सांसद रहे थे। अब सिद्धि कुमारी अपने दादा करणीसिंह की विरासत संभाल रही है। सिद्धि तीन बार से विधायक रह चुकी हैं और वह इस बार भी चुनाव लड़ रही है।

देवीसिंह भाटी

देवी सिंह भाटी सात बार विधायक रह चुके हैं। अब बीजेपी ने कोलायत सीट से देवी सिंह भाटी के बेटे अंशुमान सिंह को टिकट दिया है। देवी सिंह की पत्नी पूनम कंवर भी चुनाव लड़ीं, लेकिन वे हार गईं थी।

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