KANKER. आदिवासियों का जीविकोपार्जन का मूल स्रोत वनोपज है। चाहे वह कोदो, कुटकी हो, महुआ, तेंदू पत्ता या बांस। तमाम प्रकार के वनोपजों के संग्रहण से अच्छी खासी आमदनी हो जाती है। परंतु काफी लंबे अरसे से संग्राहकों को सही मूल्य नहीं मिलने की वजह से विभिन्न जगहों पर संग्रहकों का गुस्सा सरकार के खिलाफ देखने को भी मिला है। बांस का सही मूल्य नहीं मिलने के चलते पिछले लंबे अरसे से बांस कटाई का काम ठप पड़ा हुआ है। साथ ही इस साल इलाके के बीस से अधिक समितियों ने तेंदूपत्ता नहीं तोड़ा। क्योंकि उनको सही मूल्य नहीं मिला। जिससे सरकार को करोड़ों का नुकसान भी हुआ।
सरकार संग्राहकों की मांगों को अनसुना करती रही है
आदिवासी ग्रामीण अपनी मांगों को लेकर पिछले लगभग 3 वर्षो से विभिन्न जगहों पर रैली, प्रदर्शन कर सरकार को ज्ञापन सौंपकर मांग करते रहे हैं कि उनकी मांगों को अमल में लाया जाए। परन्तु सरकार इन संग्राहकों की मांगों को अनसुना करती रही है। जिससे नाराज हजारों आदिवासी ग्रामीणों ने कन्दाड़ी में एकजुट होकर बैठक की और तमाम मांगों को लेकर चर्चा की गई है।
मांगे पूरी नहीं होने पर वोट नहीं डालने की चेतावनी
यहां पर धीरे-धीरे यह बैठक रैली की शक्ल ले ली और रैली के उपरांत कंदाड़ी प्राथमिक स्कूल के पास राज्यपाल के नाम वनपरिक्षेत्र अधिकारी पश्चिम सोनपुर को अपना मांग पत्र सौंपा और मांगे पूरी नहीं होने पर आगामी विधानसभा चुनाव का बहिष्कार करते हुए मताधिकार का प्रयोग नहीं करने की चेतावनी दी है।
तेन्दूपत्ता खरीदी दिवस 15 दिन का किया जाए
बता दें कि तेन्दूपत्ता संग्राहकों की मांग है कि तेन्दूपत्ता खरीदी दिवस 15 दिन का किया जाए, पहले की बीजेपी सरकार की भांति तेन्दूपत्ता बोनस प्रदान किया जाए तथा पिछले 4 वर्षों का अप्राप्त बोनस भी दिया जाए। तेन्दूपत्ता संग्राहकों को जीवन बीमा, चरण पादुका और साड़ी तथा बच्चों को छात्रवृत्ति जैसी सुविधाएं प्रदान की जाए। राष्ट्रीय अभ्यारण्य क्षेत्रों में निवासरत जनजाति परिवारों को पहले की भांति मुआवजा मिलना चाहिए, जनघोषणा पत्र के अनुरूप तेन्दूपत्ता प्रबंधकों को तृतीय वर्ग कर्मचारी घोषित किया जाये और जनघोषणा पत्र के अनुरूप तेन्दूपत्ता फड मुंशियों को 12000 रुपये वार्षिक मानदेय प्रदान किया जाये।