MP में घोषणाओं के जिस पिटारे के साथ सत्ता में होगी वापसी, पहले तो उस पिटारे को समेटना होगा!

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Harish Divekar
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MP में घोषणाओं के जिस पिटारे के साथ सत्ता में होगी वापसी, पहले तो उस पिटारे को समेटना होगा!

BHOPAL. मप्र में नई सरकार बनने का दिन नजदीक है। जिस दल के हाथ में जादुई आंकड़ा होगा सरकार उसी की होगी। लेकिन अफसोस की आगे कोई जादू काम नहीं आएगा, जिसकी सरकार बनेगी उसके लिए आगे का रास्ता चुनाव जीतने से भी ज्यादा मुश्किल होने जा रहा है, नई सरकार को एक नहीं तीन- तीन चुनौतियों का सामना करना होगा, आर्थिक चुनौती तो बड़ी होगी ही, सबसे ज्यादा चैलेंज मिलेगा अपने ही लोगों से जो राजनीतिक चुनौती बनकर सामने खड़े होंगे, और तीसरा चैलेंज मिलेगा उन्हीं अपनो की वजह से होने वाली प्रशासनिक जमावट को लेकर यानी कि जो भी मुखिया होगा उसके लिए चैन की सांस लेना आसान नहीं होगा। फिलहाल बात शुरु करते हैं बीजेपी से ये मान लेते हैं चुनावी नतीजों के बाद प्रदेश में बीजेपी की सरकार की वापसी हुई है। 18 साल तक सत्ता पर काबिज रहने वाली बीजेपी की अगली सरकार के लिए खासतौर से सीएम के लिए नया कार्यकाल आसान होने वाला नहीं है।

MP में अगर BJP की सरकार बनी तो क्या नए CM के लिए सत्ता चलाना आसान होगा ?

बीजेपी की सरकार बनी तो सबसे पहली जंग आर्थिक मोर्चे पर लड़नी है। घोषणाओं के जिस पिटारे के साथ सत्ता में वापसी होगी। उस पिटारे को समेटना होगा। वो भी लाखों करोड़ रुपए के कर्ज के साथ, इसके बाद दो चुनौतियां होंगी एक राजनीतिक और एक प्रशासनिक अब दोनों मुद्दों को बिंदुवार तरीके से तफ्सील से समझते हैं। सबसे पहले समझते हैं बीजेपी के सामने आने वाली राजनीतिक परेशानी बीजेपी ने सीएम फेस तो डिक्लेयर नहीं किया, लेकिन बड़े-बड़े दिग्गजों को मैदान में उतारा है। कैलाश विजयवर्गीय, नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद पटेल, फग्गन सिंह कुलस्ते, रीती पाठक, राकेश सिंह जैसे कई बड़े नाम हैं जो सीधे आलाकमान से टच में रहते हैं और जीत गए तो प्रदेश की सत्ता के चेहरे बनेंगे।

नई सरकार के सिर पर सजेगा कांटों भरा ताज, सामने होंगी तीन बड़ी चुनौतियां

अब पहला सवाल ये है कि क्या सीएम इन्हीं में से कोई होगा, अगर हां, तो क्या बाकी बड़े नाम खामोश रहेंगे, दूसरा सवाल ये कि सत्ता में भागीदार बने तो भी नए सीएम के लिए सरकार चलाना बहुत आसान होगा, क्योंकि कैबिनेट का तकरीबन हर दूसरा नेता सीधे आलाकमान से बात करेगा। सीएम को फ्री हैंड मिलना मुश्किल है। कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल, राकेश सिंह, नरेंद्र सिंह तोमर, फग्गन सिंह कुलस्ते, रीति पाठक ऐसे नाम हैं जो हमेशा से मोदी-शाह-नड्डा के टच में रहे हैं। यानी सरकार का हर काम और फैसला आलाकमान तक आसानी से पहुंचेगा। इन चेहरों में से किसी के सिर पर ताज सजा भी दिया तो इतने सालों से जो अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं, क्या वो खामोश रहेंगे।

ये तो हुई राजनीतिक परेशानी की बात... अब बात करते हैं प्रशासनिक परेशानी की, जो भी प्रदेश की नया सरकार बनाते हैं उसे सबसे पहले प्रशासनिक जमावट में मगजमारी करनी होगी। बीजेपी की सरकार बनी और सीएम कोई और हुआ तो उसे सबसे पहले शिवराज के निष्ठावान अफसरों से निपटना होगा। फिर उन अफसरों की सुनवाई होगी जो बहुत सालों से अपनी बख्त होने का इंतजार कर रहे हैं, इतने पर भी परेशानी खत्म नहीं होती। नए निजाम के रहनुमा भी बहुत होने की संभावना है। उनके मुताबिक अफसरों की तैनाती पहली शर्त होगी। मालवा में कैलाश विजयवर्गीय अपने अनुसार जमावट करना चाहेंगे। ग्वालियर चंबल के फैसले नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया की मर्जी से पूरे करने होंगे। प्रहलाद पटेल, राकेश सिंह भी चाहेंगे कि महाकौशल में उनकी पसंद का ध्यान रखा जाए। यानी हर जिले में एसपी कलेक्टर, कमिश्नर जैसे पदों पर पोस्टिंग को लेकर मारा मारी होना तय है। इससे भी नई सरकार को निपटना ही होगा।

इन चुनौतियों से जब तक सरकार निपटेगी तब तक लोकसभा चुनाव सिर पर आ चुके होंगे। बीजेपी के मुखिया के लिए उन चुनावों में भी परफोर्मेंस बरकरार रखने का प्रेशर होगा ही, जो उस कसौटी पर खरे न उतरे तो आलाकमान की नाराजगी भी तय ही है। आर्थिक चुनौती तो कांग्रेस या बीजेपी जिस की भी सरकार बने उसके लिए कॉमन ही होने वाली है। क्योंकि सत्ता में वापसी के मकसद से शिवराज सरकार ने जमकर घोषणाएं की और उन्हें अमलीजामा पहनाने के लिए जम कर कर्ज भी लिया। ये एक ऐसी जंग है जिसे सत्ता पर काबिज की भी दल नजरअंदाज नहीं कर सकेगा और न ही बच सकेगा। राजनीतिक और प्रशासनिक जंग तो मुश्किल है ही आर्थिक मोर्चे से निपटना भी आसान नहीं होगा। एक नजर में बताते हैं शिवराज सरकार ने कब कब कितना कितना कर्ज लिया है।

MP में 03 दिसंबर को बनेगी नई सरकार, कांग्रेस या बीजेपी... किसे मिलेगा जादुई आंकड़ा?

03 दिसंबर के बाद ये तस्वीर साफ होगी कि मध्यप्रदेश में सरकार किसकी बनने वाली है। सत्ता में कोई भी आए बीजेपी वापसी करे या कांग्रेस को फिर मौका मिले। ये तय है कि सत्ता का ताज कर्ज के भार से दबा होगा। जनता के लिए घोषणा करते हुए और उन्हें पूरा करने की गरज से शिवराज सरकार ने पूरा खजाना खाली कर दिया और कर्ज पर कर्ज लिया है। चुनावी साल में हद तो तब हुई है जब महज 9 दिनों के भीतर शिवराज सरकार ने 5 बार करोड़ों का कर्ज लिया। ये इस साल सितंबर माह की बात है।

सितंबर में सरकार ने पांच बार लिया कर्ज

26 सितंबर को एक ही दिन में सरकार ने तीन बार कर्ज लिया। 12 सितंबर को 1000 और 21 सितंबर को 500 करोड़ का कर्ज लिया। कर्ज लेते लेते शिवराज सरकार के पूरे बीस साल के शासन में ये रकम 3.85 लाख करोड़ तक जा पहुंची है। यानी अब जो भी सत्ता में आया उस पर इतना कर्ज तो होना तय है। इस राशि के अनुसार अगर देखा जाए तो प्रदेश के हर व्यक्ति पर 47 हजार रुपए का कर्ज निकलता है।

एक मोटी जानकारी के अनुसार

मध्यप्रदेश सरकार इस साल छह महीनों में अलग-अलग तारीखों पर 11 बार कर्ज ले चुकी है।

25 जनवरी 2023 को 2000 करोड़

2 फरवरी 2023 को 3000 करोड़

9 फरवरी 2023 को 3000 करोड़

16 फरवरी 2023 को 3000 करोड़

23 फरवरी 2023 को 3000 करोड़

02 मार्च 2023 को 3000 करोड़

09 मार्च 2023 को 2000 करोड़

17 मार्च 2023 को 4000 करोड़

24 मार्च 2023 को 1000 करोड़

29 मई 2023 को 2000 करोड़

14 जून 2023 को 4000 करोड़ का सरकार कर्ज ले चुकी है।

अब जो भी सरकार होगी उसे खजाना खाली मिलेगा और कर्ज के तौर पर लाखों करोड़ों रु का बोझ मिलेगा। ये तो हुई बीजेपी की बात, जिसके सामने चुनौतियों का अंबार लगा है तो मुश्किलें कांग्रेस के लिए भी कम नहीं होंगी, बल्कि ये समझ लीजिए कांग्रेस सत्ता में आती है तो चुनौतियों की गिनती कुछ ज्यादा ही होगी। वो कौन से चैलेंजेस होंगे जो सत्ता में आते ही कांग्रेस सरकार को झेलने होंगे।

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