BHOPAL. मध्यप्रदेश में बीते 25-30 सालों से कुछ विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जो चाहे कैसी भी लहर हो या कितनी भी एंटी इनकम्बेंसी हर बार एक पार्टी विशेष या यूं कहें कि अपने नेता का अभेद गढ़ रही हैं। इन सीटों पर दो से तीन दशक का दौर बीतने के बाद भी एक ही पार्टी या एक ही नेता चुनते चले आ रहे हैं। इन अभेद गढ़ों ने साधारण नेता को भी कद्दावर नेता का दर्जा दिलाया है। मध्यप्रदेश में बीजेपी की ऐसी 14 सीटें हैं तो कांग्रेस के पास ऐसी 8 सीटें हैं जिन पर विरोधी हमेशा पस्त होते हैं। ऐसे में पार्टियां इन सीटों पर जानबूझकर कमजोर प्रत्याशी ही चुनाव में खड़े करती हैं।
सबसे आगे गोपाल भार्गव की रहली
मध्यप्रदेश में लगातार चुनाव जीतने वालों में सबसे बड़े नेता के तौर पर बीजेपी के गोपाल भार्गव का नाम है, वे 1985 से लगातार सागर जिले की रहली सीट से चुनाव जीतते चले आ रहे हैं। आलम यह है कि पिछले कुछ चुनावों से उन्होंने चुनाव प्रचार करना भी बहुत कम कर दिया है, वे अपना चुनाव जनता पर छोड़ देते हैं। उनके बाद नाम आता है कि कांग्रेस से नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह का, जो भिंड की लहार सीट से 7 बार से विधायक निर्वाचित होते चले आ रहे हैं।
ये हैं पार्टियों के अभेद किले
कांग्रेस |
बीजेपी |
लहार - 72 साल के डॉ. गोविंद सिंह 1990 से लगातार जीतते आ रहे हैं। |
रहली - 71 साल के गोपाल भार्गव 1985 से लगातार 8वीं बार विधायक हैं। |
पिछोर - 70 साल के केपी सिंह 1993 से लगातार 6 बार जीत रहे हैं। |
इछावर - 70 साल के करन सिंह वर्मा, 2013 को छोड़कर 1985 से 2018 तक 7 बार इस सीट से विधायक का चुनाव जीतते आ रहे हैं। |
भोपाल उत्तर - आरिफ अकील ने बतौर निर्दलीय 1990 में पहली बार जीत दर्ज की। 1993 में हारे, लेकिन 1998 से लगातार 5 बार जीतते आ रहे हैं। |
गुना - 75 साल के गोपीलाल जाटव सिर्फ 2008 में हारे थे। 1990 से 2018 के बीच 6 बार यहां से जीतकर चुनते आ रहे हैं। |
राजपुर - यह सीट बाला बच्चन की पहचान बन गई है। 2003 की उमा भारती लहर को छोड़ 1993 से 2018 तक लगातार 5 बार यहां से जीत रहे हैं। |
मल्हारगढ़ - 66 साल के जगदीश देवड़ा, 1998 को छोड़कर 1990 से लगातार 6 बार इसी सीट से जीतते आ रहे हैं। |
शाजापुर - 65 साल के हुकुम सिंह कराड़ा वर्ष 2013 को छोड़कर 1993 से 2018 तक पांच बार इस सीट से जीते हैं। |
उज्जैन उत्तर - पारस जैन 1998 को छोड़ 1990 से लगातार 6वीं बार इसी सीट से विधायक हैं। |
झाबुआ - कांतिलाल भूरिया, 1980 से 1998 तक 4 बार विधायक रहे। 1998 से 2009 तक सांसद रहेे। 2015 में फिर उपचुनाव जीते। 2019 में लोकसभा चुनाव हारे, लेकिन विस का उपचुनाव जीत पांचवी बार विधायक बन गए। |
जावद - 65 साल के ओमप्रकाश सकलेचा 2003 से जीतते आ रहे हैं |
राघौगढ़- 1977 से दिग्विजय सिंह, उनके भाई लक्ष्मण सिंह, बेटे जयवर्धन सिंह और उनके एक समर्थक लगातार कांग्रेस के टिकट पर जीतते आ रहे हैं। |
होशंगाबाद - 72 साल के सीतासरण शर्मा 2008 को छोड़कर 1993 से लगातार पांचवीं बार यहां से जीतते आ रहे हैं। |
राजनगर- इस सीट पर कुंवर विक्रम सिंह-2003 से विधायक। |
गोविंदपुरा - स्व. बाबूलाल गौर 1980 से 8 बार जीते, अब बहू विधायक। |
इंदौर-2, इंदौर-4, इंदौर-5, देवास, बुदनी, दतिया, देवतालाब सीटों पर भी कोई 3 तो कोई 6 बार से बीजेपी के विधायक है।