इस बार गुर्जर वोटों पर कब्जे की बड़ी लड़ाई, गुर्जरों की नाराजगी भुनाने में जुटी बीजेपी, कांग्रेस को नहीं सूझ रहा रास्ता

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The Sootr
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इस बार गुर्जर वोटों पर कब्जे की बड़ी लड़ाई, गुर्जरों की नाराजगी भुनाने में जुटी बीजेपी, कांग्रेस को नहीं सूझ रहा रास्ता

मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान में इस बार के चुनाव में एक बड़ी लड़ाई गुर्जर वोटों पर कब्जे की होती दिख रही है। पिछले दो दिन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह से पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट और उनके पिता राजेश पायलट के साथ कांग्रेस में हुए व्यवहार को मुद्दा बनाया है और इसके जवाब में जिस तरह सीएम अशोक गहलोत ने बीजेपी राज के समय हुए गुर्जर आंदोलन के दौरान गोलीबारी और 72 गुर्जरों की मौत की याद दिलाई है, उसने ये साफ कर दिया है कि दोनों ही दलों के लिए गुर्जरों के वोट काफी अहम होने जा रहे हैं।

राजस्थान की चार बड़ी जाति

राजस्थान में चार बड़ी जातियां है, जिनमें जाट, राजपूत, मीणा और गुर्जर माने जाते हैं। ये चारों अपने आप में बडे़ वोट बैंक है और सबके अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र है। इनमें गुर्जर सबसे ज्यादा पूर्वी राजस्थान और कुछ संख्या में मध्य राजस्थान जिसमें अजमेर, भीलवाड़ा, चित्तौड़ और राजसमंद का क्षेत्र आता है, वहां अपना प्रभाव रखते हैं। यानी कुल मिला कर देखा जाए तो करीब 50 से ज्याद सीटों पर गुर्जर वोट बैंक की मौजूदगी है। इनमें भी पूर्वी राजस्थान में इनकी संख्या सबसे ज्यादा है।

पायलट के नाम पर कांग्रेस को एकमुश्त मिला था वोट

पिछले चुनाव में सचिन पायलट कांग्रेस में सीएम पद के सबसे तगडे़ दावेदार थे और उनके सीएम बनने की आस में पूरे प्रदेश में गुर्जर समुदाय ने कांग्रेस के पक्ष में एकमुश्त मतदान किया था। स्थिति ये थी कि पूर्वी राजस्थान के सात जिला, दौसा, सवाई माधोपुर, करौली, भरतपुर, धौलपुर, टोंक और अलवर की 39 सीटों में से बीजेपी सिर्फ चार सीट जीत पाई थी। बाकी में से 25 पर कांग्रेस, एक पर लोकदल, पांच पर बसपा और चार पर निर्दलियों ने जीत हासिल की थी।

अब पासा पलटने के आसार

लेकिन सचिन पायलट सीएम नहीं बनाए गए और पांच साल के दौरान उनके बगावत करने से लेकर उन्हें नकारा, निकम्मा कहने तक पार्टी में जो कुछ हुआ, उसका असर इस बार के चुनाव में पड़ने की पूरी संभावना बताई जा रही है। गुर्जर समुदाय इस बार सचिन के मुद्दे को लेकर कांग्रेस से नाराज दिख रहा है और इस नाराजगी का कोई तोड़ कांग्रेस के पास नजर नहीं आ रहा है। पार्टी ने सचिन पायलट के मुद्दे की भरपाई के लिए पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना का दांव चला था और बीजेपी इसे लेकर मुश्किल में भी नजर आई, लेकिन इस पूरे इलाके में जाति चुनावी राजनीति का प्रमुख आधार है और इसका असर साफ दिख रहा है। पार्टी ने सचिन पायलट को सीएम अशोक गहलोत के साथ पोस्टर पर भी जगह दी, लेकिन लोगों ने कहा कि अब काफी देर हो चुकी है।

मोदी ने इसीलिए आखिरी समय पर उठाया सचिन का मुद्दा

पिछले एक सप्ताह से राजस्थान में धुंआधार प्रचार कर रहे पीएम नरेन्द्र मोदी ने गुर्जरों की इसी नाराजगी को हवा देने के लिए प्रचार के अंतिम दो दिनों में सचिन पायलट और उनके पिता राजेश पायलट के साथ कांग्रेस में हुए व्यवहार को मुद्दा उठाया। इसका जवाब सचिन की ओर से आया तो सही, लेकिन यह बहुत तीखा प्रतिवाद नहीं था। उधर पीएम के इस राजनीतिक दांव का जवाब देने के लिए सीएम अशोक गहलोत ने बीजेपी के कार्यकाल के समय गुर्जर आंदोलन में हुई गोलीबारी और 72 गुर्जरों की मौत की याद दिलाई और यह भी बताया कि जब उनकी सरकार बनी तब भी गुर्जर आंदोलन चल रहा था, लेकिन उन्होंने एक बार भी गोली नहीं चलने दी।

बीजेपी के पास कोई बड़ा गुर्जर चेहरा नहीं, लेकिन उम्मीद पूरी

दरअसल के पास सचिन पायलट के कद का कोई बड़ा गुर्जर चेहरा नहीं है। गुर्जर आरक्षण आंदोलन चलाने वाले कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन अब वे इस दुनिया में नहीं है, वहीं उनके बेटे विजय बैंसला को पार्टी ने देवली उनियारा सीट से उम्मीदवार बनाया है, लेकिन वे इतना बड़ा चेहरा नहीं है, लेकिन इसके बावजूद पार्टी को पूरी उम्मीद है कि इस बार गुर्जर बीजेपी के साथ आएंगे। इसका एक बड़ा कारण ये भी है कि गुर्जर परंपरागत तौर पर बीजेपी के साथ रहे हैं। गुर्जरों का पूरा वोट सिर्फ पिछली बार शिफ्ट हुआ था। यही कारण है कि इस बार पार्टी गुर्जरों के वोट बैंक पर कब्जा जमाने के पूरे प्रयास कर रही है।

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