छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की पहली सूची में 8 विधायकों के काटे टिकट, लिस्ट में ज्यादातर पुराने नाम, जानें क्यों नहीं दिया फिर मौका

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Vikram Jain
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छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की पहली सूची में 8 विधायकों के काटे टिकट, लिस्ट में ज्यादातर पुराने नाम, जानें क्यों नहीं दिया फिर मौका

गंगेश द्विवेदी, RAIPUR. छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की पहली लिस्ट जारी हो गई है। पार्टी ने सांसद और प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को भी उम्मीदवार बनाया है। पहली लिस्ट में ज्यादातर पुराने नाम हैं। वहीं कांग्रेस ने आठ विधायकों की टिकट काटी हैं, इन विधायकों को टिकट नहीं देने के अलग-अलग कारण हैं। कुछ विधायकों की निष्क्रियता और गंभीर आरोप इसका कारण बनी तो वहीं दूसरे को मौका देने के लिए कुछ को बैठाया गया। वहीं एक विधायक तो ऐसे हैं जिनके खिलाफ नक्सलियों ने बैनर लगाकर विरोध जताया था।

1. राजमन बेंजाम को इस बार नहीं दिया मौका, दीपक बैज को टिकट

कांग्रेस विधायक राजमन बेंजाम बास्तानार के प्री- मेट्रिक बालक छात्रावास के जिम का सामान अपने घर में लगवाने के आरोप में बुरी तरह से घिर गए थे। छात्रों के इस्तेमाल के लिए 5 लाख रुपए में जिम का सामान खरीदा गया था। ये सामान छात्रावास में पहुंचने के बजाय विधायक राजमन बेंजाम के घर पहुंच गया। विधायक राजमन बेंजाम ने छात्रावास जिम के सामान के साथ अपने निवास स्थान पर बाकायद कसरत करते हुए उद्घाटन किया और फोटो भी खिंचवाई। इसके लिए बास्तानार जनपद के सीईओ ने विधायक निधि से 5 लाख रुपए का जिम सामान का बिल भी पास कराया। इस मामले को लेकर बीजेपी ने विरोध प्रदर्शन किया था। बीजेपी नेताओं ने राजधानी आकर राज्यपाल से शिकायत कर इसकी उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग की थी। इसके बाद से ही विधायक राजमन की टिकट खतरे में दिखाई दे रही थी। इसी बीच चित्रकोट से पूर्व विधायक और सांसद दीपक बैज को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्‍यक्ष बनाया गया तभी से चर्चा थी कि अब इस सीट से दीपक बैज चुनाव लड़ सकते हैं।

2. मां देवती कर्मा के त्‍याग से बेटे छबींद्र को मिला टिकट

कांग्रेस के दिवंगत नेता महेंद्र कर्मा के बेटे को टिकट मिलना विधायक मां देवती कर्मा के त्‍याग की वजह से संभव हो पाया है। 2018 के विधानसभा चुनाव में देवती कर्मा कांग्रेस की लहर के बावजूद हार गई थी। इसकी बड़ी वजह बेटे छबींद्र कर्मा का बागी हो जाना था। छबींद्र ने पिछले चुनाव में कांग्रेस से टिकट चाहते थे, लेकिन मां को टिकट मिलने के बाद वे बागी होकर समाजवादी पार्टी के टिकट लड़ा। इसका फायदा बीजेपी को हुआ। यहां से बीजेपी के भीमा मंडावी को जीत मिली, जिसके बाद 9 अप्रैल 2019 को लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान नक्‍सलियों ने IED धमाका कर विधायक भीमा मंडावी की हत्‍या कर दी थी, भीमा मंडावी के निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने फिर से देवती कर्मा को मैदान में उतारा, इस चुनाव में देवती कर्मा को जीत मिली। देवती कर्मा फिर चार साल विधायक रहीं। इस बार जब टिकट की दावेदारी की बात आई तो उन्‍होंने कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेताओं से अपने बेटे को टिकट देने का आग्रह किया। मां देवती कर्मा की बात मानकर बेटे छबींद्र को टिकट दे दिया गया।

3. अनूप नाग को भारी पड़ी नक्‍सलियों की नाराजगी

अंतागढ़ सीट से जीते विधायक अनूप नाग को नक्‍सलियों को नाराजगी भारी पड़ी है। अनूप नाग के विधायक बनने के बाद पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे थे। इतना ही नहीं नक्‍सलियों ने पिछले साल विधायक के विरोध में बैनर लगाया था। नक्‍सलियों ने विधायक अनूप नाग को भ्रष्‍ट और खदान मालिकों का एजेंट बताते हुए गांव में न घुसने देने की चेतावनी भी दी थी। नक्‍सलियों ने पखांजूर क्षेत्र के पीवी 42 मार्ग पर बैनर लगाया था। इससे पहले पखांजुर थाना के इन्द्रप्रस्थ गांव के निकट लगाए गए एक बैनर में नक्सलियों ने कांग्रेस विधायक को आदिवासी विरोधी बताया था। साथ ही नक्‍सलियों ने बैनर में विधायक के बहिष्‍कार का जिक्र किया था। माना जाता है कि नक्‍सली बिना ठोस वजह के किसी के खिलाफ बैनर या पोस्‍टर नहीं लगाते, कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेताओं ने पड़ताल कराई तो मामला सहीं पाया गया और तभी से अनूप नाग की उल्‍टी गिनती शुरू हो गई थी।

4. शिशुपाल सोरी पर भारी पड़ा शंकर धुर्वा का ट्रैक रिकॉर्ड

शंकर धुर्वा ने शिशुपाल सोरी को टिकट की रेस में पछाड़ दिया। रिटायर्ड IAS शिशुपाल सोरी को पिछले चुनाव में आदिवासी समाज से जबरदस्‍त रिस्‍पांस मिला था। बताते हैं कि आदिवासी समाज ने पार्टी के स्‍तर से ऊपर उठकर सोरी के पक्ष में मतदान करने की अपील समाज के मतदाताओं से की थी। कांग्रेस ने इस संभावना को भांपते हुए साल 2018 में शंकर धुर्व्रा की जगह सोरी को टिकट दिया और उन्‍होंने के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी, लेकिन इस बार शंकर धुर्वा का ट्रैक रिकॉर्ड शिशुपाल सोरी पर भारी पड़ा। शंकर धुर्वा ने साल 2003 में बीजेपी के शासनकाल में कांकेर सीट पर जीत दर्ज कर अपनी राजनीतिक काबलियत का लोहा मनवाया था। उसके बाद से लगातार वह कांग्रेस के आला नेताओं की नजर में बने हुए थे। साल 2018 में उन्हें टिकट नहीं मिली। लेकिन वह निराश नहीं हुए और जनता के बीच लगातार सक्रिय रहे। यही वजह है कि कांग्रेस ने इस बार फिर उन पर भरोसा जताया है।

5. गुरू रुद्र कुमार के चलते कटी गुरुदयाल सिंह बंजारे की टिकट

सब कुछ ठीक-ठाक होते हुए भी विधायक गुरुदयाल सिंह को इस बार केवल सतनामी समाज के रुझान को साधने के नाम पर टिकट नहीं दिया गया। गुरु रुद्र कुमार सतनामी समाज के धर्मगुरुओ में से एक हैं। बीजेपी ने गुरू खुशवंत साहेब को आरंग से टिकट दी हैं। इसे बैलेंस करने के लिए कांग्रेस ने इसी समाज के दूसरे धर्मगुरू रुद्रकुमार को टिकट देना तय किया, लेकिन अहिवार में उनकी स्थिति संतोषजनक नहीं बताई जा रही थी। यही वजह है कि गुरू रुद्र को नवागढ़ से टिकट दिया गया और 2018 के चुनाव में पहली बार विधायक बने गुरुदयाल सिंह बघेल को इस बार आराम करने कहा गया है। हालांकि गुरुदयाल सिंह पांच साल तक खासे सक्रिय रहे। उन्होंने कद्दावर बीजेपी नेता और तत्कालीन मंत्री रहे दयालदास बघेल को पटखनी को हराया था। उन्होंने दयालदास बघेल को 33 हजार से अधिक वोटों से हराया था। नवागढ़ विधानसभा अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए रिजर्व है। उनके अच्‍छे कार्यों को देखते हुए 2020 में उन्हें संसदीय सचिव बनाकर पंचायत एवं ग्रामीण विकास, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, चिकित्सा शिक्षा बीस सूत्रीय कार्यान्वयन, वाणिज्य कर व जीएसटी विभाग से संबंधित किया गया।

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6. सीएम बघेल की करीबी होने का फायदा हर्षिता को मिला

डोंगरगढ से विधायक भुवनेश्‍वर बघेल पर हर्षिता बघेल की लोकप्रियता भारी पड़ी। जिला पंचायत सदस्य हर्षिता स्वामी बघेल ने डोंगरगढ़ विधानसभा से प्रत्याशी के लिए दावेदारी की थी। हर्षिता लगातार डोंगरगढ क्षेत्र में सक्रिय थी। इस दौरान जनता से जुड़े मुद्दे उठाती रहीं। बताते हैं कि अगस्‍त में हुई सीएम की एक सभा का इंतजाम हर्षिता को दिया गया था, वहां उन्‍होंने अपनी ताकत दिखाई। तभी से माना जाने लगा था कि इन्‍हें टिकट दी जा सकती है। भुवनेश्वर सिंह बघेल ने बीजेपी की सरोजनी बनर्जी को हराया था लेकिन इस बाद उनकी टिकट काटके हुए हर्षिता को प्रत्याशी बनाया गया हैं।

7. विवाद में फंसे पति की गिरफ्तारी से छन्‍नी सा‍हू को नुकसान

खुज्जी विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक छन्नी साहू के पति चंदू साहू के खिलाफ एट्रोसिटी एक्‍ट में गिरफ्तारी भारी पड़ गई। आदिवासी वाहन चालक ने चंदू साहू के खिलाफ थाने में शिकायत की थी। मामला दर्ज होते ही आदिवासी समाज और बीजेपी नेता लगातार उनकी गिरफ्तारी की मांग कर रहे थे। इसके लिए क्षेत्र में प्रदर्शन भी किए गए थे, इस बीच पुलिस ने विधायक से पुलिस का सहयोग करने के लिए कहा था। पति के खिलाफ केस दर्ज होने पर कांग्रेस विधायक छन्नी साहू भी प्रशासन के विरोध पर उतर आई थीं। एसपी ऑफिस अपने पति के साथ सुरक्षा लौटाने पहुंच गई थी। इसके बाद भी दोनों के खिलाफ कई मामले पार्टी पदाधिकारियों की नजर में आते रहे। इसलिए पूर्व में विधायक रह चुके भोलाराम साहू को कांग्रेस ने टिकट दे दिया।

8.विधायक ममता पर भारी पड़ी नीलकंठ चंद्रवंशी की मंत्री अकबर से निकटता

विधायक ममता चंद्राकर कवर्धा जिले की पंडरिया विधानसभा से 2018 में पहली बार विधायक निर्वाचित हुई है। पंडरिया विधानसभा अनारक्षित सीट है। ममता चंद्राकर ने उन्होंने कांग्रेस से चुनाव लड़ा और एक स्वतंत्र उम्मीदवार राजिंदर भाटिया को हराया था लेकिन नीलकंठ चंद्रवंशी का मंत्री मोहम्‍मद अकबर का करीबी होना उन पर भारी पड़ गया। नीलकंठ नया चेहरा हैं। ग्रामीण क्षेत्र के युवा नेता नीलकंठ चंद्रवंशी को कबीरधाम जिले का नया जिलाध्यक्ष बनाया गया था। बताते हें कि कवर्धा में हुए भगवा झंडा कांड के बाद से कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने में महत्‍वपूर्ण भूमिका अदा की। तभी से ये सीएम के गुड बुक में आ गए थे। ममता चंद्राकर का रिकॉर्ड भी अच्‍छा रहा है। उन्‍होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत पंचायत की राजनीति से की थी। वे जनपद पंचायत सदस्य व सभापति जनपद पंचायत रही। इसके अलावा वे जिला पंचायत सदस्य दुर्ग रही थी। प्रदेश महिला कांग्रेस सचिव भी रही। कुर्मी समाज ने इन्हे गौरव सम्मान से भी सम्मानित किया है। उनके विधायक कार्यकाल में कुकदुर को तहसील का दर्जा मिला व इंदौरी को नगर पंचायत का दर्जा मिला है।

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