सपा को कम आंककर कांग्रेस ने की बड़ी गलती? मप्र में 24 से ज्यादा सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला

author-image
Harish Divekar
एडिट
New Update
सपा को कम आंककर कांग्रेस ने की बड़ी गलती? मप्र में 24 से ज्यादा सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला

BHOPAL.विधानसभा चुनाव का आगाज अबकी बार दो सौ पार जैसे नारों के साथ हुआ था। चुनावी साल के साथ इस नारे से हुई शुरूआत ऐसे थी जैसे सवाल हो रहा हो हाउज द जोश और पीछे से आवाज आए हाई सर. लेकिन चुनाव नजदीक आते आते ये सारे नारे हवा हो गए और कुछ बचा तो बस ये कि पार्टी येन केन प्रकारेण सत्ता तक पहुंच सके। लेकिन ये हसरत भी पूरी कर पाना कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए ही आसान नहीं है। अब इसके बीच में बागी तो हैं ही कुछ ऐसे अपने भी हैं जिनके साथ देश पर राज करने का सपना देखा, लेकिन वो प्रदेश में ही दुश्मन बन पड़े हैं। जिनकी बदौलत दो दर्जन से ज्यादा सीटें होंगी जो तय करेंगी कि प्रदेश में सरकार किसकी बनेगी। और, इसमें भी कोई ताज्जुब नहीं होगा कि इन सीटों पर न कांग्रेस का चेहरा नजर आए और न बीजेपी का।

कांग्रेस बीजेपी की नहीं गलेगी दाल, दो दर्जन सीटें करेंगी कमाल

चुनावी उतार चढ़ाव जानने का शौक रखते हैं तो इस बार उन सीटों पर नजर रखिए जहां कांग्रेस और बीजेपी के अलावा दूसरे दल पूरी ताकत से नजर आ रहे हैं। या वो सीटें जहां कांग्रेस और बीजेपी के ही बागी दूसरे दल में शामिल हो चुके हैं, क्योंकि यही वो सीटें हैं जो इस बार तख्ता पलट करने की ताकत रखती हैं तो तख्त बचाने की क्षमता भी इन्हीं के पास होगी। ऐसी दो दर्जन से ज्यादा सीटें हैं जो इस बार फिजा का रुख जिस और चाहें उस ओर मोड़ने की ताकत रखेंगी। और सरकार बनाने से पहले कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों को इनका मुंह देखना ही पड़ सकता है। यही सीटें इस बार प्रदेश की सत्ता की किंगमेकर बन सकती हैं, ऐसा हुआ तो सबसे दिलचस्प बात ये होगी कि जिन चेहरों को कांग्रेस और बीजेपी ने नकारा मान कर टिकट नहीं दिया, वही चेहरे उनकी सरकार बनाने का फैसला करेंगे। बीजेपी के लिए मुश्किल सिर्फ एक है पार्टी के बागी नेता जो अब दूसरे दलों से या निर्दलीय मैदान में उतर चुके हैं, लेकिन कांग्रेस को दोहरा वार झेलना है। पहला तो अपने ही बागी नेताओं से और दूसरा उन दलों से जो इंडिया के नाम पर उसके साथ जुड़ तो गए लेकिन प्रदेश में अलग अलग स्तर पर मुश्किल बढ़ा रहे हैं।

सरकार बनाने में निर्णायक होगा तीसरा मोर्चा?

मध्यप्रदेश में चुनाव एकदम सपाट तरीके से होते रहे हैं। पहले दो बार कांग्रेस की सरकार बनी। उसके बाद थोड़ी उथल पुथल हुई और उमा भारती के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बन गई। उसके बाद साल 2018 तक हर चुनाव में बीजेपी की जीत तय नजर भी आई और हुई भी. 2018 में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी तो की लेकिन टिक नहीं सकी और अब 2023 का चुनाव है। इस बार भी ऊपर से सब कुछ शांत दिखाई दे रहा है। बीजेपी की सुनें तो लगेगा कि हां बीजेपी की वापसी तय है और कांग्रेस पर गौर करेंगे तो लगेगा कि इस बार सत्ता जरूर हाथ आएगी, लेकिन चुनावी तस्वीर इतनी सादी है नहीं जितनी की नजर आ रही है, सतर पर पानी थमा और शांत हो सकता है लेकिन अंदर हलचल तेज है। इस हलचल की वजह वो अहसास है जो बार बार याद दिलाता है कि कुर्सी आसानी से हाथ आने वाली नहीं है। दोनों ही दिल थाम कर प्रदेश की तकरीबन 30 सीटों पर टकटकी लगाकर बैठे हैं।

सपा, बसपा और आप दे रही हैं कड़ी टक्कर

ये तीस सीटें कौन सी हैं, ये वो सीटें हैं जो इस बार भले ही सरकार न बन सकें। लेकिन सरकार कौन बनेगा ये जरूर तय करेंगी। इन तीस सीटों पर सपा, बसपा और आप के प्रत्याशी हैं जो दोनों में से किसी एक दल का खेला खराब कर सकते हैं। कैंडिडेट सिलेक्शन में जिन जिन सीटों पर बीजेपी कांग्रेस से चूक हुई है, वही सीटें दोनों की नाक में दम करने वाली हैं, जिनमें से अधिकांश सीटों पर खुद इन्हीं दलों के बागी काबिज हैं, ये सीटे हैं...

होशंगाबाद विधानसभा

बीजेपी से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीतासरन शर्मा

कांग्रेस से बड़े भाई गिरिजाशंकर शर्मा

बीजेपी के असंतुष्टों ने वरिष्ठ कार्यकर्ता भगवती चौरे को मैदान में उतारा

चाचौड़ा विधानसभा

बीजेपी से प्रियंका मीणा को टिकट मिलने के बाद ममता मीणा ने AAP से ठोंकी ताल

कांग्रेस से विधायक लक्ष्मण सिंह फिर मैदान में

डॉ. अंबेडकर नगर (महू) विधानसभा

बीजेपी से मंत्री ऊषा ठाकुर, कांग्रेस से रामकिशोर शुक्ला, पूर्व विधायक अंतर सिंह दरबार निर्दलीय

धार विधानसभा

पूर्व बीजेपी जिलाध्यक्ष राजीव यादव निर्दलीय, बीजेपी ने विधायक नीना वर्मा पर जताया भरोसा

कांग्रेस से प्रभा गौतम, कुलदीप सिंह बुंदेला निर्दलीय

बुरहानपुर विधानसभा

पूर्व मंत्री अर्चना चिटनिस के विरोध में हर्षवर्धन सिंह चौहान निर्दलीय मैदान में

कांग्रेस से विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा प्रत्याशी

सीधी विधानसभा

विधायक केदारनाथ शुक्ला का बीजेपी से टिकट कटा, निर्दलीय मैदान में

बीजेपी से रीति पाठक और कांग्रेस से ज्ञान सिंह प्रत्याशी

चुरहट विधानसभा

पूर्व सांसद गोविंद सिंह के बेटे अनेंद्र मिश्र राजन ने मुकाबला त्रिकोणीय बनाया

कांग्रेस से पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह उम्मीदवार

मैहर विधानसभा

बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी का टिकट कटा, खुद की विंध्य जनता पार्टी बनाई

डिंडौरी विधानसभा

जिला पंचायत अध्यक्ष रुदेश परस्ते निर्दलीय, मुकाबला त्रिकोणीय, बीजेपी के पंकज तेकाम और कांग्रेस के ओमकार मरकाम के लिए बड़ी चुनौतीॉ

बिछिया विधानसभा

GGP से कमलेश टेकाम, बीजेपी के डॉ. विजय आनंद मरावी, कांग्रेस से नारायण सिंह पट्टा

लहार विधानसभा

बीजेपी के बागी रसाल सिंह (बसपा में शामिल)

अटेर विधानसभा

मुन्ना सिंह भदौरिया (सपा के साथ)

भिंड विधानसभा

संजीव सिंह कुशवाह (बसपा)

मुरैना विधानसभा

बीजेपी के बागी राकेश रुस्तम सिंह (बसपा)

सुमावली विधानसभा

कांग्रेस के बागी कुलदीप सिकरवार

दिमनी विधानसभा

बलवीर डंडोतिया बसपा

पोहरी विधानसभा

कांग्रेस के बागी प्रद्युम्न वर्मा बसपा

जतारा विधानसभा

कांग्रेस के बागी धर्मेंद्र अहिरवार बसपा

बंडा विधानसभा

बीजेपी बागी सुधीर यादव AAP

ये सभी सीटें ऐसी हैं जो कांग्रेस या बीजेपी के जीत के रथ के आड़े आकर जरूर खड़ी होंगी।

अपने क्षेत्र में बागियों का दमखम

बीजेपी के लिए बागी ही मुश्किल हैं जिन्हें मैनेज करने में बीजेपी ने दिन रात एक किए। कहीं बात बनी तो कहीं नहीं बन सकीं। अपने क्षेत्र में इन बागियों का दमखम भी है. हालांकि बीजेपी इन्हें खास बड़ी चुनौती नहीं मान रही है।

बीजेपी पर बागी तो कांग्रेस पर भारी होगी ‘अपनों’ की नाराजगी

बीजेपी के लिए सिर्फ बागी मुसीबत हैं। कांग्रेस तो इंडिया गठबंधन के ही दल आप और सपा से परेशान है। खासतौर से समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के खिलाफ ही बिगुल फूंक दिया है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने खुद चुनाव प्रचार की कमान संभाली और बसपा भी इसमें पीछे नहीं है। सीट शेयरिंग को लेकर अखिलेश यादव ने पार्टी से नाराजगी जताई। जिसका खामियाजा चुनावी मैदान में नजर आ सकता है।

इन तीस सीटों का गणित ही ये तय करेगा कि किसका केल्कुलेशन प्रदेश की सत्ता पर फिट बैठता है। दूसरे दलों की मदद से सरकार बनना और पूरे पांच साल शर्तों को पूरा करते करते सरकार चलना कोई नई बात नहीं है। ऐसा दूसरे प्रदेशों में होता रहा है, कभी शर्त होती है ढाई ढाई साल का सीएम होने की तो कभी मंत्रिमंडल में जगह देने की। तीसरा मोर्चा अपनी ताकत के मुताबिक डिमांड रखता रहा है। बिहार, उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में इस तरह सरकार चलना आम बात रही है। इस बार मध्यप्रदेश में भी सियासत का यही नया पेटर्न नजर आए तो हैरानी नहीं होगी। सत्ता की तस्वीर भी एक नए इतिहास के तौर पर याद रखी जाएगी।

सवाल

मध्यप्रदेश में समाजवादी पार्टी को कम आंककर क्या कांग्रेस ने बड़ी गलती की है?

हां

नहीं

कह नहीं सकते

---

जवाब

क्या क्षेत्रवार मतदाताओं के मूल मुद्दों को भूल रही हैं बीजेपी कांग्रेस?

हां 85%

नहीं 10%

कह नहीं सकते 05%


Bhopal News भोपाल न्यूज MP Assembly elections एमपी विधानसभा चुनाव Triangular contest on more than 24 seats in MP BJP has tension with rebel leaders Third front in MP elections एमपी में 24 से ज्यादा सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला बागी नेताओं से बीजेपी को टेंशन एमपी चुनाव में तीसरा मोर्चा