मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान में आरक्षण की मांग कर रहे आदिवासी संगठनों ने पुलिस पर दमन के आरोप लगाए हैं। आदिवासी संगठनों का आरोप है कि राजस्थान के आदिवासी बहुल जिलों में जनसंख्या के आधार पर 73 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर रहे आदिवासी नेताओं को पुलिस अलग-अलग धाराओं में केस बनाकर लगातार जेल से निकलने नहीं दे रही है।
जय आदिवासी संगठन की साधना उईके का बयान
मध्यप्रदेश में सक्रिय जय आदिवासी युवा संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं ने इसे लेकर सोशल मीडिया पर एक मुहिम भी चला रखी है। इस संगठन से जुड़ी साधना उईके का कहना है कि राजस्थान के आदिवासी संगठन और उसके कार्यकर्ता अपनी जायज मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन पुलिस उन्हें एक के बाद एक केस में फंसाकर जेल से बाहर नहीं निकलने दे रही है। हम इसे लेकर पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों से भी मिल चुके हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है।
आदिवासी आरक्षण मंच ने की थी हाइवे जाम की घोषणा
राजस्थान के अनुसूचित जनजाति क्षेत्र में आने वाले आदिवासी बहुल जिलों में आदिवासियों की आबादी के आधार पर अनुसूचित जनजाति को नौकरियों में 73 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने की मांग को लेकर आदिवासी आरक्षण मंच की ओर से 25 अगस्त को हाइवे जाम किए जाने की घोषणा की गई थी। इसे देखते हुए जिला प्रशासन ने बांसवाड़ा में धारा-144 लगा दी थी और हाईवे जाम नहीं होने दिया था।
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अगल-अलग धाराओं में प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी
आदिवासी आरक्षण मंच ने 9 सितंबर को फिर से आंदोलन की चेतावनी दी और इसी के तहत 8 सितंबर को बांसवाड़ा के कालिंजर में ओपन घाटी के पास पहाड़ी पर महापड़ाव डाल दिया। उन्हें प्रशासन ने मंजूरी नहीं दी थी, इसलिए पुलिस ने शांति भंग करने के आरोप में प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर लिया। नेताओं में कमलकांत कटारा भगवती भील सहित करीब 49 लोग शामिल थे। साधना ने बताया कि पुलिस ने उन्हें शांति भंग के आरोप में गिरफ्तार किया था और 7 दिन बाद जमानत पर छोड़ा और अब फिर उन्हें अलग-अलग धाराओं में गिरफ्तार किया जा रहा है। दरअसल, राजस्थान के दक्षिणी हिस्से में आरक्षण का मामला काफी संवेदनशील है और लंबे समय से चल रहा है और क्योंकि चुनाव का समय है इसलिए पुलिस किसी भी तरह इस मामले को आगे बढ़ने से रोकने में जुटी हुई है।