शाही परंपरा का रुतबा और केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट बना पन्ना में महल, मंत्री और प्रशासन के बीच विवाद का कारण

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BP Shrivastava
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शाही परंपरा का रुतबा और केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट बना पन्ना में महल, मंत्री और प्रशासन के बीच विवाद का कारण

BHOPAL. पन्ना राजघराने की महारानी जीतेश्वरी देवी के साथ ऐतिहासिक जुगलकिशोर मंदिर में जन्माष्टमी के दिन जो विवाद हुआ, उसके पीछे चार प्रमुख कारण सामने आए हैं। विवाद पुराना और कहानी लंबी है। दसूत्र की पड़ताल में विवाद के पीछे राजघराने की परंपरा में बाधा डालने, प्रॉपर्टी विवाद, वसीयत का पब्लिकेशन और केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट... जैसे कारण निकलकर आए हैं। इस सब के पीछे में मध्यप्रदेश सरकार के एक मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह पर राजघराने के विवाद को हवा देने के आरोप लग रहे हैं। हालांकि, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन महारानी जीतेश्वरी देवी के साथ मंदिर के पुजारियों का व्यवहार आपत्तिजनक ही नहीं वरन आपराधिक श्रेणी का दिखाई दे रहा है। यह बात अलग है कि शासन और प्रशासन के दबाव के कारण महारानी को जेल में डाल दिया गया। महारानी के नाबालिग बेटे छत्रसाल द्वितीय का वीडियो सामने आने के बाद विवाद के पीछे की साजिश उजागर हुई है।

यहां बता दें, राजघराने के जुगलकिशोर मंदिर में चंवर डुलाने की परंपरा वर्षों से राजघराने का मुखिया ही करता आया है और इसी परंपरा को पुजारियों द्वारा (शासन-प्रशासन के दबाव में) तोड़ने पर महारानी जीतेश्वरी देवी ने मंदिर में प्रवेश किया और अपने नाबालिग बेटे छत्रसाल द्वितीय को हक दिलाने का प्रयास किया। छत्रसाल द्वितीय का वीडियो आने से पहले पूरी घटना को महारानी जीतेश्वरी के खिलाफ महिमामंडित किया गया। एक तरह से महारानी जीतेश्वरी देवी को 'विलेन' बना कर पेश किया गया। कार्रवाई इतनी तेजी से की गई की महारानी जीतेश्वरी देवी को जेल तक पहुंचा दिया। इस पूरे तत्कालीन एपीसोड में बड़ी बात यह सामने आई कि सरकार के किसी प्रतिनिधि और अफसर ने मुंह खोलने की हिम्मत नहीं जुटाई। इससे लगता है कि इस विवाद के पीछे शासन का बड़ा रोल रहा है।

अब हम आपको वे 4 कारण गिनाते हैं जो पन्ना राजघराने के विवाद की कहानी कह रहे हैं-

1 परंपरा निर्वहन में बाधा

पन्ना का ऐतिहासिक जुगलकिशोर मंदिर राजघराने का ही है और इसमें परंपराएं भी राजघराने के नियमों के मुताबिक पूरी होती रही हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर 'चंवर डुलाने' की परंपरा भी वर्षों से राजघराने का मुखिया निभाता आया है। इस बार इस परंपरा में विघ्न डाला गया। इसमें मंदिर के पुजारियों और शासन की मिलीभगत के कारण महाराज छत्रसाल द्वितीय से यह रस्म नहीं कराई गई। इसका महारानी जीतेश्वरी देवी ने विरोध किया, जिसे विवाद का रूप दिया गया।

2 वसीयत उजागर

राजघराने का विवाद 2015 में तब और बढ़ गया जब महारानी जीतेश्वरी देवी ने पूर्व महाराजा मानवेंद्र सिंह (जीतेश्वरी देवी के ससुर) की वसीयत को पब्लिक कर दिया। उसमें पूर्व महाराज ने कहा था कि उनकी सारी प्रॉपर्टी, उनकी मौत के बाद उनकी पोती को मिलेगी यानी जीतेश्वरी देवी की बेटी को मिलेगी। वसीयत में यह भी लिखा गया था कि महाराजा की संपत्ति उनकी बेटी कृष्णा कुमारी को नहीं मिलेगी। इस वसीयत को जीतेश्वरी देवी ने पन्ना की कोर्ट में पेश किया।

तब जीतेश्ववरी देवी ने कहा था- यह वसीयत काफी समय से है, लेकिन मैं अपने बीमार पति पन्ना के महाराज राघवेंद्र सिंह का ध्यान रखने में व्यस्त थी। मैंने महाराज को अपनी एक किडनी भी डोनेट की है। उन्हें भी कुछ मामलों में फंसाया जा रहा है। हमने बुरे वक्त का सामना किया है। सुप्रीम कोर्ट और पन्ना की अदालतों में जो कई पेंडिंग मामले पड़े हैं, उनसे जुड़े जो भी दस्तावेज मौजूद हैं, यह वसीयत भी उन दस्तावेजों का हिस्सा है। आज मैंने केवल वसीयत को पब्लिक किया है।

इस वसीयत को दिलहर कुमारी ने फेक डॉक्यूमेंट करार दिया था। कहा था कि इसे उनके बेटे राघवेंद्र सिंह और बहू ने मिलकर तैयार किया है, ताकि उनकी बेटी कृष्णा कुमारी को प्रॉपर्टी में हिस्सा न मिल सके। एक रिपोर्ट बताती है कि 2005 में मौजूदा महाराज राघवेंद्र सिंह, के खिलाफ उनके पिता यानी उस वक्त के महाराजा मानवेंद्र सिंह ने भी केस दर्ज कराया था, आरोप लगाया था कि राजकुमार ने शाही परिवार की कुछ प्राचीन वस्तुओं को चुराया है, जिनकी कीमत लाखों में थी।

3 अपार संपत्ति

इस शाही परिवार में विवाद की जड़ अपार संपत्ति भी है। इस राजघराने की प्रॉपर्टी केवल पन्ना में ही नहीं, बल्कि मुंबई, दिल्ली, गुरुग्राम, लखनऊ, भोपाल में भी है। इसी कीमत हजारों करोड़ में होने का केवल अनुमान है। एकदम सही संपत्ति का आकलन हमें भी नहीं है। साल 2005 से ही यह सारी जायदाद राजघराने के लोगों के गले का कांटा बनी हुई है और इसी वजह से कई बार इस परिवार की लड़ाई मीडिया की सुर्खियां बनती रही है।

4 केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट

केन-बेतवा लिंकप्रोजेक्ट भी झगड़े की संभावित वजह माना जाता है। इस प्रोजेक्ट के तहत केन और बेतवा नदियों को इंटरलिंक किया जाएगा, केन नदी का पानी बेतवा नदी में ट्रांसफर किया जाएगा। इस प्रोजेक्ट का मकसद है कि बुंदेलखंड में पानी की किल्लत झेल रहे इलाकों की दिक्कतें दूर हो जाएं। मध्य प्रदेश और यूपी के कुछ जिले इस प्रोजेक्ट से फायदा पा सकते हैं, लेकिन इस प्रोजेक्ट का विरोध भी हो रहा है, क्योंकि इसमें पन्ना टाइगर रिजर्व का बड़ा हिस्सा इस्तेमाल होगा। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, जीतेश्वरी देवी के वकील का कहना है कि हाल में महारानी की जो गिरफ्तारी हुई है, वो 'केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट' के उनके विरोध को कमजोर करने के मकसद से हुई है और यह गिरफ्तारी पॉलिटिकली मोटिवेटेड है। दरअसल, जीतेश्वरी देवी इस प्रोजेक्ट का विरोध कर रही हैं। जबकि राजमाता दिलहर कुमारी समर्थन में हैं।

राजघराने में विवाद के चार कारण हमें समझ आए। पहला परंपरा का निर्वहन में बाधा, दूसरा वसीयत विवाद, तीसरा संपत्ति विवाद और चौथा केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट, जिसमें कहा गया है कि पूर्व महाराजा की बेटी को संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलेगा, तीसरा 'केन बेतवा लिंक प्रोजेक्ट', लेकिन बड़े कारण तो प्रॉपर्टी और वसीयत विवाद ही हैं। इन विवादों ने साल 2017 में भी जमकर सुर्खियां बटोरी थीं। राजघराने का यह विवाद पुराना है और कब तक चलेगा, कहा नहीं जा सकता है।

परंपरा मैंने नहीं उनके पति ने तोड़ी : मंत्री बृजेंद्र सिंह

पन्ना महारानी के आरोपों पर खनिज मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह ने द सूत्र से बातचीत में कहा कि जब ये घटना हुई तो वे मंदिर में ही मौजूद नहीं थे। जहां तक परंपरा तोड़ने का सवाल है तो ये परंपरा तो उन्होंने ही तोड़ी है। उनके पति ने पिछले साल मंदिर में दो चंवर डुलाए थे। मंत्री ने कहा कि वे बिना तथ्यों के आरोप लगा रही हैं। उनकी बातों में कोई सत्यता नहीं है। इसलिए वे महारानी के आरोपों पर कुछ नहीं कहना चाहते।



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