मालवा-निमाड़ की 12 बागी सीटों पर बीजेपी या कांग्रेस किसके काट रहे वोट? दोनों दलों की नजरें इन्हीं पर

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Chandresh Sharma
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मालवा-निमाड़ की 12 बागी सीटों पर बीजेपी या कांग्रेस किसके काट रहे वोट? दोनों दलों की नजरें इन्हीं पर

संजय गुप्ता, INDORE. विधानसभा चुनाव की वोटिंग के बाद सभी की नजरें सत्ता के गलियारे मालवा-निमाड़ की 66 सीटों पर हैं। यहां जहां सीधा मुकाबला है, वहां तो पार्टियां उसी हिसाब से तैयार है और अपना आंकलन कर रही है लेकिन समस्या दोनों ही पार्टियों के बागियों की है, जहां यह आंकलन मुश्किल है वह किसके और कितने वोट काटेंगे, या अपनी मूल पार्टी को नुकसान देकर दूसरों को लाभ देंगे या फिर खुद भी विजेता बनकर उभरेंगे। ऐसी दर्जन भर सीट है। जिस तरह से मप्र में कांटे का मुकाबला देखा जा रहा है, ऐसे में यह 12 सीट आखिर में सत्ता में लाने या बेदलखल करने में अहम साबित होंगी।

बुहरानपुर- बीजेपी के बागी हर्षवर्धन सिंह

यहां से निर्दलीय चुनाव जीते चुके सुरेंद्र सिंह शेरा इस बार कांग्रेस से उम्मीदवार है तो बीजेपी ने एक बार फिर अर्चना चिटनीस को ही मौका दिया। इसी बात ने पूर्व सांसद नंदू भैय्या के परिवार और उनसे जुड़े बीजेपी कार्यकर्ताओं ने गुस्सा ला दिया, नतीजतन उनके पुत्र हर्षवर्धन चौहान मैदान में उतर गए। उनकी सभाओं, रैलियों की भीड़ ने बीजेपी के साथ कांग्रेस को भी चिंता में डाला हुआ है, क्योंकि केवल वोट कटव्वा निर्दलीय की जगह उन्हें एक अहम प्रत्याशी के तौर पर ही देखा जा रहा है। यानि मामला त्रिकोणीय है।

महू- कांग्रेस के बागी दरबार

यहां से बीजेपी की ऊषा ठाकुर मैदान में हैं और कांग्रेस ने बीजेपी से आए रामकिशोर शुक्ला को टिकट दिया है। मैदान में निर्दलीय तौर पर कांग्रेस के पूर्व विधायक अंतरसिंह दरबार हैं, जिनका खुद का एक बड़ा वोट बैंक है। दरबार कांग्रेसी होने के चलते बीजेपी थोड़ी खुश है लेकिन बीजेपी की समस्या है कि दरबार ठाकुर है और ऐसे में उनके प्रत्याशी ऊषा ठाकुर के कितने वोट में वह सेंध लगाते हैं, इसका जवाब फिलहाल ईवीएम में बंद है। दरबार दो बार कांग्रेस से विधायक भी रह चुके हैं। वैसे बीजेपी में उषा ठाकुर के खिलाफ उठे बाहरी प्रत्याशी के मुद्दे के चलते अंदरूनी विरोध व बगावत से वह भी बैचेन हैं, यानि ऊंट किस करवट बदलेगा यह कहना मुश्किल है।

देपालपुर- बीजेपी के बागी चौधरी

यहां से हिंदू सगंठन के राजेंद्र चौधरी निर्दलीय है, हालांकि वह बीजेपी में नहीं हैं लेकिन वह टिकट बीजेपी से ही मांग रहे थे, यानि वोट बीजेपी के ही कटने की आशंका है। यहां से बीजेपी से मनोज पटेल है जो बीता चुनाव हारे थे और पांचवी बार मैदान में हैं। वहीं कांग्रेस मौजूदा विधायक विशाल पटेल है, फिलहाल विशाल राहत की सांस ले रहे हैं।

अलीराजपुर- बीजेपी के सुरेंद्र सिंह ठकराल

यहां से बीजेपी से नागर सिंह चौहान को टिकट दिया गया है और कांग्रेस से मौजूदा विधायक मुकेश पटेल ही मैदान में हैं। बीजेपी के सुरेंद्र सिहं ठकराल ने पार्टी लाइन से अलग होते हुए निर्दलीय ताल ठोकी है। यहां चौहान बीते चुनाव में ही 21 हजार से पीछे थे, ऐसे में ठकराल ने यदि अपनी पार्टी के वोट बैंक में सैंध लगा दी तो चौहान के लिए और मुश्किल हो जाएगी।

धार- बीजेपी के बागी राजू तो कांग्रेस के बुंदेला

यहां से दोनों ही पार्टियों को राहत नहीं है, बीजेपी से बागी पूर्व जिलाध्यक्ष राजीव यादव है तो कांग्रेस से बागी पूर्व विधायक के बेटे कुलदीप बुंदेला है। बुंदेला पार्टी के वादाखिलाफी से नाराज होकर मैदान में है तो वहीं राजू यादव पार्टी में वर्मा परिवार के परिवारवाद से नाराज होकर, इसमें उनके साथ बीजेपी के ही वर्मा परिवार के खास लोगों ने साथ दिया, जिसके चलते पार्टी से भी निष्कासित हुए हैं। अब यह बगावत किसके लिए फायदे का सौदा बनती है, 3 दिसंबर को ही पता चलेगा।

आलोट- कांग्रेस के बागी गुड्‌डु

यहां से सीधा मुकाबला तो पहले कांग्रेस के विधायक मनोज चावला और बीजेपी के पूर्व सांसद चिंतामण मालवीय के बीच था लेकिन बीच में आ गए कांग्रेस के पूर्व विधायक प्रेमचंद गुड्डु। उनकी मान-मनौव्वल की कोशिश विफल रही। गुड्डु खुद की जीत की हुंकार भर रहे हैं। ऐसे में मामला त्रिकोणीय हो चुका है। निश्चित तौर पर कांग्रेस के चावला की सांसे अटकी है। बीते चुनाव में चावला की जीत साढ़े पांच हजार से कम की थी।

बड़नगर- कांग्रेस के बागी राजेंद्र सिंह सोलंकी

यहां अलग कहानी हुई, कांग्रेस ने पहले टिकट राजेंद्र सिंह सोलंकी को दिया और विधायक मुरली मोरवाल का काट दिया, लेकिन फिर विरोध और राजनीति हुई और वापस मोरवाल को दे दिया। इससे नाराज होकर सोलंकी निर्दलीय मैदान में आ गए। सोलंकी राजनीतिक प्रभाव रखते हैं। ऐसे में यहां पर मोरवाल की सांसे अटकी हुई है लेकिन बीजेपी के बीजेपी के जितेंद्र पंड्या राहत महसूस कर रहे हैं क्योंकि उनके बागी शांतीलाल डबई मानकर चुनाव से हट गए थे।

मल्हारगढ़- कांग्रेस के बागी श्यामलाल जोगचंद

इस सीट से बीजेपी के जगदीश देवड़ा मैदान में हैं तो कांग्रेस से परशुराम सिसौदिया। बीते चुनाव में देवड़ा 11872 वोट से जीते थे। इस बार कांग्रेस के श्यामलाल जोगचंद ने और बगावती तेवर दिखाकर सिसौदिया की मुश्किलें बढ़ा दी है। वैसे बीते चुनाव में 95 फीसदी वोट बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही गए थे।

जोबट- बीजेपी के बागी माधोसिंह डावर

यहां से बीजेपी ने विधायक सुलोचना रावत के बेटे विशाल को मैदान में उतारा है और कांग्रेस से सेना पटेल मैदान में हैं। लेकिन यहां के वरिष्ठ नेता माधो सिंह डावर ने सबकी सांसे ऊपर-नीचे कर दी है। वह यहां के खाटी नेता माने जाते रहे हैं औऱ् बीजेपी के कई नेता उन्हें माधो दादा के नाम से ही संबोधित करते हैं। उनके साथ पूरी टीम है, अब यह टीम और वह खुद किसे निपटाते हैं, यह तीन दिसंबर को ही सामने आएगा। वैसे यहां पर सबसे कम वोटिंग होती है, बीते चुनाव में 52.71 फीसदी वोटिंग थी और जीत महज 2056 वोट से थी। इस बार भी 54 फीसदी ही वोट डले हैं, यानि कुछ वोट भी इधर-उधर होने से प्रत्याशी की हार-जीत तय हो जाएगी।

झाबुआ- बीजेपी के धनसिंह बारिया

इस सीट से कांग्रेस के डॉ. विक्रांत भूरिया है तो बीजेपी से भानू भूरिया मैदान में हैं। बीते चुनाव में बीजेपी के गुमानसिंह डामोर आसानी से 10437 वोट से जीते थे क्योंकि तब कांग्रेस खेमे के जेवियर मेडा निर्दलीय उतर गए और 35462 वोट ले गए थे। इस बार कांग्रेस को यह लाभ कि मेडा कांग्रेस के लिए मैदान से बाहर हो गए। लेकिन बीजेपी से बागी धनसिंह बारिया मैदान में आए गए। यह अब कांग्रेस को कितना लाभ और बीजेपी को कितना नुकसान पहुंचाती है यह ईवीएम में कैद हो चुका है।

जावरा- कांग्रेस के बागी जीवनसिंह शेरपुर

यहां से कांग्रेस के हिम्मत श्रीमाल और बीजेपी के डॉ. राजेंद्र पाण्डेय के बीच मुकाबला था लेकिन कांग्रेस के बागी जीवनसिंह शेरपुर ने सेंध मारने की कोशिश में निर्दलीय ताल ठोकी हुई है। समस्या यह है कि यहां बीते चुनाव में पाण्डेय मात्र 511 वोट से ही जीते थे। यानि हार-जीत का आंकड़ा काफी कम वोट का है, यानि एक बागी भी किसी का खेल बिगाड़ने के लिए काफी है।

जावद- बीजेपी के बागी पूरणमल अहीर

यह सीट वैसे भी निर्दलीय ही बीजेपी या कांग्रेस को जिताते आए हैं। बीते चुनाव में कांग्रेस के समंदर पटेल निर्दलीय लड़े और 33 हजार से ज्यादा वोट ले गए। बीजेपी के ओमप्रकाश सखलेचा यहां से 4271 वोट से जीत गए थे। इस बार फिर सखलेचा है लेकिन इस बार बागी कांग्रेस की जगह बीजेपी का है और पूरणमल अहीर की अपने समाज में खासी पैठ बताई जाती है। समंदर पटेल इस बार कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं, इसलिए वह राहत की सांस ले रहे हैं औऱ् सखलेचा चिंता में हैं।

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