मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान में चुनाव की रण भेरी बजाने के साथ ही अब नजर सब की इस बात पर है कि राजस्थान में इस बार राज बदलेगा या रिवाज। राजस्थान में पिछले तीन दशक से भी ज्यादा समय से हर चुनाव में सत्ता परिवर्तन होता रहा है। ऐसे सत्ता परिवर्तन यहां रिवाज बन गया है। इस चुनाव में नजर इसी बात पर रहेगी की क्या कांग्रेस इस रिवाज को बदलते हुए एक बार फिर से सत्ता में लौटेगी या पहले की तरह राज फिर से बदलेगा और भारतीय जनता पार्टी सरकार बनाएगी।
राजस्थान देश के उन राज्यों में है जहां तीसरी ताकत बहुत ज्यादा मजबूत नहीं है इसलिए मुख्य मुकाबला परंपरागत प्रतिद्वंदी कांग्रेस और बीजेपी में ही होता आया है और इस बार भी इसमें कोई किसी बदलाव की संभावना नजर नहीं आ रही है। तीसरी ताकत के रूप में राजस्थान में हालांकि आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, वामपंथी दल सीपीएम और नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल की पार्टी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के उम्मीदवार चुनाव मैदान में होंगे लेकिन ये कुछ पॉकेट्स में ही सीटों को प्रभावित करने की स्थिति में होंगे। ऐसे में मुख्य मुकाबला ज्यादातर सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस में ही रहेगा।
दोनों दलों में भारी अंतर विरोध
राजस्थान में जिन दो दलों यानी भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच मुख्य मुकाबला होने वाला है वे दोनों ही दल पिछले पूरे 5 साल के दौरान आंतरिक गुटबाजी और खींचतान के शिकार रहे हैं। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अपने आज तक के राजनीतिक जीवन के सबसे बड़े राजपतिक संकट का सामना करना पड़ा जब उनके उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ मानेसर चले गए और सरकार पर राजनीतिक संकट आ गया। अपनी राजनीतिक कुशलता के कारण गहलोत हाल की संकट से निकल आए और पूरे 5 साल उन्होंने सरकार भी चला ली लेकिन पार्टी का यह अंतर विरोध अभी खत्म नहीं हो पाया है। ऊपर से देखने में सब कुछ सामान्य दिख रहा है और बागी हुए सचिन पायलट भी पूरी तरह से पार्टी के साथ नजर आ रहे है लेकिन गहलोत और पायलट के बीच हुआ समझौता कितना सच्चा है इसका पता टिकट वितरण में लग जाएगा।
उधर भारतीय जनता पार्टी में भी कमोबेश यही स्थितियां बनी रही। पूरे 5 साल के दौरान पार्टी दो गुटों में बंटी नजर आई। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और उनके समर्थक नेताओं की पार्टी की गतिविधियों से दूरी बनी रही और अब चुनाव के समय भी पार्टी ने वसुंधरा राजे को पार्टी का चेहरा घोषित नहीं किया है। वसुंधरा राजे के अलावा भी पार्टी में मुख्यमंत्री पद के कई चेहरे एक साथ दौड़ लगाते नजर आ रहे हैं और इसका असर पार्टी की एकजुटता पर साफ देखा जा सकता है। पार्टी की स्थिति को देखते हुए ही आला कमान ने यहां सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात कही है और कोई चेहरा घोषित नहीं करते हुए पार्टी के चिन्ह यानि कमाल के फूल को ही पार्टी का चेहरा बनाकर के पेश किया जा रहा है। दोनों ही दल अपने इन अंतर विरोधों के साथ चुनाव मैदान में उतर रहे हैं ऐसे में नजर इस बात पर रहेगी की किस पार्टी को इनका ज्यादा खामियांजा उठाना पड़ेगा।
एक बार फिर गहलोत की लोकलुभावन योजनाओं की परीक्षा
राजस्थान के 2013 के चुनाव से पहले जब कांग्रेस की सरकार थी मुख्यमंत्री पद पर अशोक गहलोत ही थे और उन्होंने निशुल्क दवा निशुल्क जांच सहित कई लोक लुभावन योजनाएं चला रखी थी। लेकिन इनका कोई फायदा कांग्रेस को नहीं हुआ और उसे चुनाव में पार्टी की सबसे करारी हार हुई। इस बार फिर गहलोत मुख्यमंत्री हैं और₹500 में उज्ज्वल का सिलेंडर, महिलाओं को निशुल्क मोबाइल फोन, 100 यूनिट तक फ्री बिजली, एक करोड़ से ज्यादा परिवारों को राशन किट, 20 नए जिले और हर छोटे बड़े समुदाय का अलग बोर्ड गठित कर उन्होंने हर वर्ग को लुभाने की कोशिश की है और अब इन्हीं घोषणाओं के दम पर चुनाव मैदान में उतर रहे हैं। ऐसे में नजर इस बात पर रहेगी की गहलोत की यह पॉपुलर योजनाएं कांग्रेस को फिर से सत्ता दिलाती है या गहलोत एक बार फिर फेल साबित होते हैं।
गहलोत बनाम मोदी का चुनाव
राजस्थान का यह चुनाव गहलोत बनाम मोदी का चुनाव होता दिख रहा है। एक तरफ गहलोत अपनी योजनाओं और सरकार के काम के दम पर चुनाव मैदान में है वहीं भारतीय जनता पार्टी ने क्योंकि राजस्थान में कोई चेहरा घोषित नहीं किया है इसलिए प्रधानमंत्री मोदी ही पार्टी का चेहरा बनकर सामने हैं। मोदी पिछले 1 साल में राजस्थान के 10 से ज्यादा दौरे कर चुके हैं। इस दौरान उन्होंने राजस्थान को केंद्र सरकार की ओर से हजारों करोड रुपए की सौगातें भी दी है और अब हर सभा में वह मोदी की गारंटी के नाम पर जनता से वोट मांग रहे हैं। ऐसे नहीं है मुकाबला गहलोत बनाम मोदी होता जा रहा है।
कोई दिखती हुई लहर नहीं है
इस बार राजस्थान के चुनाव में किसी एक पार्टी के पक्ष में कोई दिखती हुई लहर नजर नहीं आ रही है। दोनों पार्टियों की आंतरिक गुटबाजी, अलग-अलग पॉकेट में तीसरे मोर्चे के दलों की मौजूदगी और दोनों ही दलों में कोई स्पष्ट चेहरा सामने नहीं होने के कारण इस बार का चुनाव काफी रोचक और फंसा हुआ चुनाव होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। आचार संहिता लगने के बाद दोनों दलों के प्रत्याशियों का फैसला होगा और उसके बाद चुनाव की सरगर्मी अपने चरम पर पहुंचेगी। ऐसे में स्थितियां कुछ बदल सकती हैं। इनमें क्या बदलाव होगा इस पर सब की नजर बनी रहेगी।
आज यह है राजस्थान में विधानसभा की स्थिति
दिसंबर 2018 में जब चुनाव हुआ था तब कांग्रेस पार्टी बहुमत से एक सीट पीछे रह गई थी। कांग्रेस ने 100 सीटों पर और और बीजेपी ने 73 सीटों पर जीत हासिल की थी। बाकी 27 सीटें। निर्दलीयों और अन्य के हाथों में थी। 5 साल के दौरान उपचुनाव हुए और इनमें बीजेपी 2 सीट गंवा बैठी। वहीं नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया असम के राज्यपाल बना दिए गए इसके चलते एक सीट रिक्त हो गई और इस पर दोबारा चुनाव नहीं हुआ। बसपा के 6 विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए इसलिए 100 सीटों पर जीती कांग्रेस आज की स्थिति में 108 सीटों पर दिख रही है।
राजस्थान में कितने विधायक है?
राजस्थान विधानसभा |
कुल विधायक- 200 |
रिक्त |
1 |
बीजेपी |
70 |
सीपीआई |
2 |
निर्दलीय |
13 |
इंडियन नेशनल कांग्रेस |
108 |
रालोद |
1 |
आरएलटीपी |
3 |
बीटीपी |
2 |