मध्यप्रदेश में मोहन कैबिनेट में पकी नए-पुराने चेहरों की खिचड़ी, पीएम मोदी के एक मिशन को पूरा करने में चूकी मोहन सरकार?

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश में मोहन कैबिनेट में पकी नए-पुराने चेहरों की खिचड़ी, पीएम मोदी के एक मिशन को पूरा करने में चूकी मोहन सरकार?

BHOPAL. सीएम बनने के बारह दिन बाद मोहन ब्रिगेड बन कर तैयार है। मोहन केबिनेट के चेहरे कितने हैं और कौन हैं ये तो अब तक आप टीवी पर देख ही चुके होंगे। अब हम आपको बताते हैं केबिनेट के अंदर की बाद। वैसे तो सीएम बनने के बाद केबिनेट बनती ही है, ये एक आम प्रक्रिया है, लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले बने मोहन केबिनेट का डिटेल एनालिसिस समझ लेना जरूरी है। तब आप समझेंगे कि चुनावी बिसात पर कितना खरा उतरा है ये केबिनेट और पीएम मोदी के किस महत्वाकांक्षी मिशन पर ही पिछड़ गया है।

अलग-अलग खेमों में तालमेल बिठाने की कोशिश

सबसे पहले तो ये समझे कि मोहन केबिनेट के नाम पर नए पुराने चेहरे, अंचल और जातिगत समीकरणों की खिचड़ी पका दी गई है। अब खिचड़ी तो डिश ही ऐसी है जो किसी को लजीज लगती है तो किसी को बीमारों का खाना। मोहन केबिनेट भी कुछ ऐसा ही जिसमें नए और पुराने चेहरों के साथ ही अलग-अलग खेमों का तालमेल बिठाने की पूरी कोशिश की गई है। दिग्गजों को मौका दिया गया है तो कुछ नए चेहरों से ताजगी लाने की कोशिश भी की गई है। लोकसभा चुनाव में इस खिचड़ी का जायका कितना महक पाता है बस उसे ही समझाने की कोशिश करते हैं। पहले कुछ मोटी मोटी बातें फिर से याद दिला देते हैं।

28 चेहरों के कुनबे में सिर्फ 5 महिलाओं को जगह

मोहन मंत्रिमंडल में कुल 28 नए चेहरों ने शपथ ली है। जिसमें 18 मंत्री हैं। 6 स्वतंत्र प्रभार और चार राज्य मंत्री बनाए गए हैं। कुल 28 चेहरों के इस कुनबे में सिर्फ 5 महिलाओं को जगह मिली है। शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में सीना तान कर चलने वाले मंत्रियों का सूपड़ा साफ है और सिंधिया के खेमे के भी बस पुराने चेहरों को ही जगह मिली है। खेमे तो सधे हैं, लेकिन शिवराज खेमा पूरी तरह से बाहर है। शिवराज के करीबी रहे या उनके कार्यकाल में दमखम वाले मंत्री सभी चेहरे केबिनेट से बाहर कर दिए गए हैं। शिवराज सरकार में 33 मंत्री थे। जिनमें से 31 को ही टिकट मिला था। उनमें से 12 मंत्रियों की हार हुई। 19 जीते हुए मंत्रियों में से मोहन यादव सीएम बन चुके हैं। राजेंद्र शुक्ल और जगदीश देवड़ा उपमुख्यमंत्री बनाए गए हैं। दस को सीधे-सीधे मंत्रिमंडल से विदा कर दिया गया है। जिसमें गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह, मीना सिंह, प्रभु राम चौधरी, उषा ठाकुर, ओमप्रकाश सखलेचा, हरदीप सिंह डंग, बृजेंद्र सिंह यादव, बृजेंद्र प्रताप सिंह और बिसाहू लाल शामिल हैं। इसमें भूपेंद्र सिंह शिवराज के बेहद करीबी मंत्रियों में से एक थे। प्रभु राम चौधरी सिंधिया खेमे के खास व्यक्ति हैं।

सिंधिया खेमे से 3 विधायकों को मिला मौका

जिन 6 विधायकों को नई सरकार में मौका मिला है उसमें तुलसी सिलावट, गोविंद सिंह राजपूत, प्रद्युम्न सिंह तोमर सिंधिया खेमे के हैं। इसके अलावा विश्वास सारंग फिर मंत्री बनने में कामयाब हुए हैं, जबकि भोपाल से सबसे ज्यादा वोटों से जीते रामेश्वर शर्मा को मौका नहीं मिला है। वो भी शिवराज के खास रहे हैं। इनके अलावा इंदर सिंह परमार की भी कुर्सी बरकरार रही है।

मोहन यादव केबिनेट में ओबीसी को तवज्जो

ये तो हुई चेहरों की बात अब जरा जातिगत समीकरणों के आधार पर मोहन ब्रिगेड का आकलन करते हैं। 18 मंत्रियों में से 5 ओबीसी हैं, 1 राज्य मंत्री ओबीसी से है और स्वतंत्र प्रभार वाले 6 चेहरों में से 5 ओबीसी कोटे से ही हैं। यानि की ओबीसी वर्ग को मोहन यादव की केबिनेट में भरपूर तवज्जो मिली है। इसके अलावा खुद मोहन यादव भी इसी कोटे से आते हैं।

28 महिला केंडिडेट में से 21 ने जीत दर्ज की

ओबीसी की मुद्दा नेशनल लेवल पर भी जोर पकड़ रहा है। राहुल गांधी लगातार ओबीसी प्रतिनिधित्व का नारा बुलंद कर रहे हैं। ऐसे में एक ओबीसी सीएम की ब्रिगेड में 11 नए ओबीसी चेहरे लाकर बीजेपी आलाकमान ने मध्यप्रदेश में इस मुद्दे को कमजोर कर दिया है, लेकिन एक मुद्दे पर जरूर पिछड़ गए हैं। वो है महिलाओं के प्रतिनिधित्व का मामला। बीजेपी ने इस बार कुल 28 महिला केंडिडेट को टिकट दिया था। अपनी शक्ति दिखाते हुए पूरी 21 महिला प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की और विधानसभा पहुंचीं, लेकिन मंत्रिमंडल के पहले विस्तार में सिर्फ पांच ही महिलाओं को जगह मिली है। ये उसी सरकार की केबिनेट है जो लाड़ली बना योजना की रहनुमा बनी है और महिला वोटर्स को रिझाने के लिए लगातार अलग-अलग वादे कर रही है। लेकिन प्रतिनिधित्व की बात आई तो मोदी सरकार के साथ चलने वाली ये डबल इंजन सरकार उन्हें मौका देना भूल गई।

कैलाश विजयवर्गीय को 8 साल बाद मौका मिला

इस विधानसभा चुनाव में अर्चना चिटनिस जैसी वरिष्ठ नेता भी जीती हैं। इसके अलावा संसद की सदस्यता छोड़कर आईं रीति पाठक, केदारनाथ शुक्ला जैसे पार्टी के बागी को शिकस्त देकर विधानसभा पहुंची, लेकिन अब विधायक भर बन कर रह गईं। जबकि उनके साथ संसद का चुनाव लड़ने वाले प्रहलाद पटेल, राकेश सिंह और राव उदय प्रताप को मोहन ब्रिगेड में शामिल किया गया है। तकरीबन 8 साल बाद कैलाश विजयवर्गीय को भी मंत्रिमंडल में शामिल होने का मौका मिला। हालांकि, वो ये कह चुके हैं कि वो बड़ी जिम्मेदारी की खातिर मध्यप्रदेश में आए हैं। पर लगता है कि उन्हें मंत्रीपद से ही संतोष करना होगा।

नई सरकार नई ऊर्जा से काम करेगी

इन चेहरों के साथ 12 दिन चली माथापच्ची के बाद दिग्गजों और नए चेहरों के तालमेल से मंत्रिमंडल तैयार कर लिया गया है। खुद हाशिए पर आए शिवराज सिंह चौहान अपने अपनों के डाउनफॉल को देखकर भी ये कहने को मजबूर है कि नई सरकार नई ऊर्जा से काम करेगी और मध्यप्रदेश का विकास करेगी। फिलहाल अंचलों का बैलेंस भी सही तरीके से बनाने की कोशिश की गई है। विंध्य से नए चेहरे राधा सिंह और प्रतिमा बागरी को जगह दी गई है। मंडला के आसपास की आदिवासी बेल्ट से फग्गन सिंह कुलस्ते सदन में नहीं पहुंचे तो उस कमी को संपतिया उइके के जरिए पूरा किया गया है जो महिला भी हैं। विजयवर्गीय की मौजूदगी के बावजूद मालवा अंचल की सीटों को फुल इंपोर्टेंस दी गई है। महाकौशल, मध्य और बुंदेलखंड को भी अनदेखा नहीं छोड़ा है।

अब केवल 4 लोगों की जगह शेष

सीएम, डिप्टी सीएम और मंत्रियों की संख्या मिलाकर केबिनेट की संख्या 31 हो चुकी है। अब केवल 4 लोगों की जगह शेष है। हो सकता है लोकसभा चुनाव को देखते हुए मोहन केबिनेट में कुछ चेहरे शामिल कर दिए जाएं। फिलहाल नई ब्रिगेड तैयार है, लेकिन अब विभागों का बंटवारा तय करेगा कि दिग्गज और खेमों में बंटे नेताओं में तालमेल कैसा रहता है।

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