संजय गुप्ता, INDORE. मप्र शासन के सीनियर आईएएस और एसीएस (अपर मुख्य सचिव) स्वास्थ्य हाईकोर्ट इंदौर से जमानती वारंट जारी होने से बाल-बाल बच गए। वारंट जारी होने की खबर सरकारी वकील को मिलने पर वह तत्काल वहां पेश हुए और जवाब पेश करने के लिए कुछ दिन की मोहलत मांगी। इसके बाद हाईकोर्ट ने रोक लिया, लेकिन आदेश में इसका जिक्र भी कर दिया।
यह है मामला ?
दरअसल एक डॉक्टर की याचिका पर एसीएस मोहम्मद सुलेमान को पक्षकार बनाया गया था। कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने पर हाई कोर्ट इंदौर ने एसीएस को अवमानना नोटिस जारी किया गया था। नोटिस मिलने के बाद भी एसीएस उपस्थित नहीं हुए। हाईकोर्ट इंदौर में सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति विजयकुमार शुक्ला द्वारा जमानती वारंट जारी किया जा रहा था। तभी शासकीय अधिवक्ता विशाल सनोठिया उपस्थित हुए और उन्होंने अदालत से निवेदन किया कि वे जल्द ही अदालत के आदेश का पालन प्रतिवेदन कोर्ट में पेश कर देंगे। इसलिए जमानती वारंट जारी नहीं किया जाए। इस पर कोर्ट ने सरकारी वकील का आग्रह मानते हुए एसीएस के खिलाफ जमानती वारंट रोक दिया।
कोर्ट ने छह सप्ताह में मांगी थी रिपोर्ट
शासकीय चिकित्सक डॉ. जितेंद्रकुमार सेठिया ने अपने निलंबन के खिलाफ हाईकोर्ट इंदौर में याचिका लगाई थी। सुनवाई करते हुए कोर्ट ने शासन को छह सप्ताह में याचिकाकर्ता डॉक्टर के अभ्यावेदन पर निराकरण के आदेश दिए थे। कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने पर याचिकाकर्ता डॉक्टर की ओर से उनके वकील ने अवमानना याचिका लगाई थी। इसपर कोर्ट ने एसीएस को अवमानना का नोटिस जारी कर जवाब देने के निर्देश दिए थे। ताजा सुनवाई में एसीएस उपस्थित नहीं हुए। इस पर कोर्ट एडीएस के खिलाफ जमानती वारंट जारी करने वाली थी।
कोर्ट ने आर्डर में भी लिखा
कोर्ट ने जमानती वारंट रोक लिया। कोर्ट ने अपने ऑर्डर में यह भी लिखा कि कोर्ट एडीएस के खिलाफ जमानती वारंट जारी कर रही थी, लेकिन सरकारी वकील ने वारंट रोकने का आग्रह करते हुए कहा है कि वह जल्द ही कोर्ट के आदेश का पालन कर प्रतिवेदन पेश करेंगे। यह आग्रह स्वीकार करते हुए वारंट रोका जाता है।