इंदौर में एक रासुका पर पूर्व कलेक्टर सिंह-इलैयाराजा और टीआई जूनी इंदौर की कार्रवाई घेरे में, कोर्ट ने कलेक्टर को जांच के आदेश दिए

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Pratibha Rana
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इंदौर में एक रासुका पर पूर्व कलेक्टर सिंह-इलैयाराजा और टीआई जूनी इंदौर की कार्रवाई घेरे में, कोर्ट ने कलेक्टर को जांच के आदेश दिए

संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर के तत्कालीन कलेक्टर मनीष सिंह द्वारा 31 मार्च 2022 को लगाई गई एक रासुका की कार्रवाई पर कोर्ट में सवाल खड़े हो गए हैं। यह कार्रवाई जूनी इंदौर के तत्कालीन टीआई अभय नेमा की रिपोर्ट पर पुलिसा उपायुक्त के प्रतिवेदन पर सिंह द्वारा की गई थी। जिसे गृहविभाग नई दिल्ली ने ही खारिज कर दिया। यह कार्रवाई जिस रिपोर्ट के आधार पर हुई उसकी जांच के लिए पीड़ित ने कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा को आवेदन दिया, जिसे खारिज कर दिया गया। अब इसी मामले में पीड़ित ने कोर्ट में गुहार लगाई तो उन्होंने पूर्व कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी द्वारा दिए गए आदेश को त्रुटिपूर्ण, अशुद्ध, औचित्यहीन मानी। साथ ही कलेक्टर को आदेश दिए हैं कि वह खुद या सक्षम मजिस्ट्रेट से आवेदनकर्ता के आवेदन की जांच कराएं। यह आदेश 11 जनवरी को जिला न्यायाधीश मुकेश नाथ ने दिए हैं। मनीष माटा आरटीआई एक्टिविस्ट है। पुलिस व प्रशासन के पास कुछ लोगों ने मौखिक कहा था कि वह जानकारी मांगते हैं और फिर परेशान करते हैं। इसके बाद यह कार्रवाई हुई थी।

यह है पूरा मामला

- 28 मार्च 2022 को जूनी इंदौर टीआई अभय नेमा ने रोजनामचा में रिपोर्ट लिखी कि- मैं मोबाइल से क्षेत्र में भ्रमण कर रहा था। महाकाल चौराहा खातीवाला टैंक पहुंचा तो चर्चा पर बताया गया कि वह अवैध वसूली करता है, क्षेत्र में उसका आतंक इतना है कि दुकान बंद कर गायब हो जाते हैं। वह सूचना प्राप्त कर ब्लैक मेल करता है। अवैध वसूली करता है। बैराठी कलोनी, खातीवाला टैंक, सिंधी कॉलोनी में उसका आतंक है।

- यह रिपोर्ट एसपी अभिनव विश्वकर्मा के पास गई, उन्होंने मनीष माटा के पुराने केस का भी विवरण लिखकर कलेक्टर सिंह के पास रासुका लगाने के लिए भेजा और सिंह ने 31 मार्च 2022 को रासुका लगा दी।

-मनीष माटा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। परिजनों के आवेदन पर गृह विभाग नई दिल्ली ने रासुका को 6 मई 2022 को निरस्त कर दिया। इसके बाद वह 11 मई को जेल से बाहर आ सका।

-इसके बाद मनीष माटा ने कलेक्टर के पास आवेदन लगाया और कहा कि रोजनामचे की जांच कराई जाए जिस आधार पर रासुका लगाई है, उसमें काल्पनिक बात लिखी गई है और इसका कोई आधार नहीं है। लोकसेवक को झूठी जानकारी देकर झूठी कार्रवाई कराई गई है।

- लेकिन कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी ने यह कहकर 9 अगस्त 2023 को आवेदन खारिज कर दिया कि गृह विभाग द्वारा रासुका रद्द करने का जो आदेश दिया था इसमें इस तरह की कोई तथ्य नहीं थे और साथ ही रासुका एक्ट में कार्रवाई करने वाले अधिकारी पर कार्रवाई के कोई प्रावधान नहीं है।

- इसी के खिलाफ मनीष माटा ने कोर्ट में याचिका दायर की थी।

कोर्ट ने कार्यशैली पर जताई गहरी नाराजगी

इसमें न्यायाधीश ने कहा कि कलेक्टर केवल इस आधार पर याचिका खारिज नहीं कर सकते कि गृह विभाग के आदेश में नहीं लिखा था। तथ्यों की जांच जरूरी थी क्या पुलिस अधिकारियों ने झूठी जानकारी दी थी, खासकर 28 मार्च को रोचनामचे में प्रविष्ठी झूठी व काल्पनिक थी? इसकी जांच तो होना चाहिए थी। रासुका में कार्रवाई करने वाले पर कानूनी कार्रवाई करने का प्रावधान नहीं है लेकिन रोजनामचे में झूठी प्रविष्ठी करने को किसी भी रूप में उचित नहीं कहा जा सकता। यह भी आदेश में लिखा कि अवलोकन से साफ है कि किसी भी आमजन, दुकानदार का नाम रोजनामचे में नहीं है और ना ही घटना का उल्लेख है। सत्यता की जांच जरूरी है, कलेक्टर ने ऐसी कोई जांच नहीं की जो त्रुटिपूर्ण है।

कलेक्टर का यह कर्त्तव्य था कि वह जांच कराते

कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई लोकसेवक इस आशय से झूठी जानकारी देता है कि उससे किसी को क्षति दी जा सके तो यह गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। पुलिस की इस सूचना से याचिकाकर्ता को दो माह जेल में रहना पड़ा जो मानवाधिकार का गंभीर उल्लंघन है। कलेक्टर का यह कर्त्तव्य था कि वह इस बिंदु पर जांच करते और इसके बाद निष्कर्ष निकालते। यदि जांच में रोचनामचा प्रविष्ठि गलत निकलती तो संबंधित के खिलाफ परिवाद पेश करते। कलेक्टर ने जांच नहीं की और बिना जांच के ही आवेदन खारिज कर दिया जो अशुद्ध और औचित्यहीन प्रतीत होता है। इसलिए कलेक्टर को आदेश दिए जाते हैं कि वह याचिकाकर्ता के आवेदन में तथ्यों पर खुद या अधीनस्थ सक्षम मजिस्ट्रेट से जांच कराएं।

रासुका के बारे में जानिए...

रासुका का पूरा नाम राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम है। यह भारत का एक कानून है जो देश की सुरक्षा को खतरे में डालने वाले व्यक्तियों को बिना किसी आरोप के 12 महीने तक हिरासत में रखने की अनुमति देता है।

रासुका 23 सितंबर, 1980 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा पारित किया गया था। इस कानून के तहत, केंद्र सरकार या राज्य सरकार किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लेने का आदेश दे सकती है यदि उसे लगता है कि वह निम्नलिखित में से किसी एक कार्य को करने वाला है या करने की कोशिश कर रहा है:

  • भारत की सुरक्षा को नुकसान पहुंचाना
  • भारत के विदेशी संबंधों को नुकसान पहुंचाना
  • सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करना
  • आवश्यक सेवाओं की आपूर्ति को बाधित करना
  • ड्यूटी पर तैनात किसी पुलिस कर्मी पर हमला करना
  • रासुका के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति को किसी भी आरोप के बिना 12 महीने तक हिरासत में रखा जा सकता है। इस अवधि के दौरान, उसे किसी भी तरह से प्रताड़ित या परेशान नहीं किया जा सकता है।
  • रासुका एक शक्तिशाली कानून है जिसका इस्तेमाल सरकार द्वारा राजनीतिक विरोधियों को दबाने के लिए किया जा सकता है। इस कानून के खिलाफ कई बार विरोध प्रदर्शन हुए हैं और इसकी आलोचना की गई है।

रासुका के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति के पास निम्नलिखित अधिकार हैं:

  • उसे एक वकील से मिलने का अधिकार है।
  • उसे अपने परिवार से मिलने का अधिकार है।
  • उसे एक चिकित्सा परीक्षा कराने का अधिकार है।
  • उसे सलाहकार समिति के समक्ष पेश होने का अधिकार है।
  • रासुका के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति को 12 महीने के बाद भी हिरासत में रखा जा सकता है यदि केंद्र सरकार या राज्य सरकार उसे एक सलाहकार समिति के सामने पेश करती है और समिति यह रिपोर्ट देती है कि व्यक्ति अभी भी हिरासत में रहने के योग्य है।

रासुका के कुछ फायदे निम्नलिखित हैं:

  • यह देश की सुरक्षा को बढ़ाने में मदद कर सकता है।
  • यह आतंकवाद और नक्सलवाद जैसी समस्याओं से निपटने में मदद कर सकता है।
  • यह सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने में मदद कर सकता है।

रासुका के कुछ नुकसान निम्नलिखित हैं:

  • इसका इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों को दबाने के लिए किया जा सकता है।
  • इसका इस्तेमाल पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को दबाने के लिए किया जा सकता है।
  • इसका इस्तेमाल धार्मिक अल्पसंख्यकों को दबाने के लिए किया जा सकता है।
  • रासुका एक विवादास्पद कानून है। इस कानून के फायदे और नुकसान दोनों हैं।


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