BHOPAL. इतिहास के पन्नों में दफन हुई एक जंग अब मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में फिर नजर आने वाली है। ये जंग है एक महाराज और एक राजा के बीच। महलों की चारदिवारी के बीच पुश्तों से चली आ रही जंग खुलकर चुनावी मैदान में होगी। जिसका बिगुल फूंका जा चुका है। जंग का आगाज विधानसभा चुनाव के साथ हुआ है, लेकिन इसे लोकसभा चुनाव तक जारी रखने की तैयारी है। इस युद्ध में एक टीम राजा है और दूसरी टीम महाराजा है। मामला प्रदेश का है इसलिए शिवराज भी इसका हिस्सा बन ही चुके हैं। ये जंग उस सीट पर छिड़ी है जिसे भेदना हमेशा से बीजेपी का सपना रहा है। खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक बार पहले यहां किस्मत आजमा चुके हैं। अब ज्योतिरादित्य सिंधिया की ताकत की आजमाइश है।
दिग्विजय की सीट पर ताकत झौंकने की तैयारी में है बीजेपी
ये बेहद आकांक्षी सीट है राघौगढ़। जहां शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एक साथ जाकर चुनावी बिगुल फूंक दिया है। इससे ये साफ हो गया है कि बीजेपी एक बार फिर दिग्विजय सिंह की सीट पर ताकत झौंकने की तैयारी में है। राघौगढ़ सीट से फिलहाल दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह विधायक हैं। वो कमलनाथ सरकार में मंत्री भी रहे हैं।
माधवराव सिंधिया, दिग्विजय को मानते थे अपना राजनीतिक दुश्मन
दिग्विजय सिंह के घराने और सिंधिया घराने की दुश्मनी राजा रजवाड़ों के दौर से ही चली आ रही है। तथ्यों की पुष्टि तो नहीं हो सकती, लेकिन ये दुश्मनी पूरे दो सौ साल पुरानी बताई जाती है। साल 1802 में ग्वालियर के महाराज दौलतराव सिंधिया ने राघोगढ़ रियासत के सातवें राजा जय सिंह को पराजित किया था। इसके बाद राघोगढ़ राजघराना ग्वालियर रियासत के अधीन आ गया था। दोनों परिवारों के संबंधों में खटास की शुरुआत यहीं से मानी जाती है। राघोगढ़, ग्वालियर रियासत के अधीन था। इसलिए दुश्मनी कभी खुलकर सामने नहीं आई। राजनीति में भी सिंधिया परिवार और दिग्विजय के रिश्ते ऐसे ही रहे हैं। ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया, दिग्विजय को अपना राजनीतिक दुश्मन मानते थे। माधवराव सिंधिया कभी दिग्विजय पर भरोसा नहीं करते थे, लेकिन वे खुलकर इस बारे में कभी नहीं बोलते थे। पुरानी दुश्मनी के बावजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह कभी एक दूसरे के क्षेत्र में दखल देने की कोशिश नहीं की। सिंधिया गुना से लोकसभा का चुनाव लड़ते थे, लेकिन उन्होंने कभी राघौगढ़ की सियासत में हस्तक्षेप नहीं किया। जबकि दिग्विजय सिंह सिंधिया के प्रभाव वाले क्षेत्र से दूर रहते थे। यहां एक कहावत भी चलती थी कि ‘चौपेट के इस पार सिंधिया, उस पार दिग्विजय’, लेकिन जब सिंधिया बीजेपी में आए तो यहां की रवायत बदल गई।
कमलनाथ को छिंदवाड़ा में घेरने बीजेपी के दिग्गज लगा रहे चक्कर
अब राजा और महाराजा दोनों एक दूसरे के गढ़ में सेंध लगाने के लिए बेताब हैं। अपने गढ़ को बचाने के लिए दिग्विजय सिंह के पास कार्यकर्ताओं की फौज हो सकती है, लेकिन सिंधिया का साथ देने के लिए पूरी बीजेपी है। जो वैसे भी इस बार अपनी पूरी ताकत कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की सीट पर झौंक देने की फिराक में दिख रही है। कमलनाथ को छिंदवाड़ा में ही घेरने के लिए बीजेपी के दिग्गज छिंदवाड़ा के चक्कर लगा रहे हैं। अब राघोगढ़ में दिग्विजय सिंह को घेरने के लिए सिंधिया और शिवराज ने बिसात बिछानी शुरू कर दी है। 2019 के आजमाए हुए फॉर्मूले से ही महाराज और शिवराज दिग्विजय सिंह को उन्हीं के गढ़ में शिकस्त देने की तैयारी कर रहे हैं।
दिग्विजय को 2019 की तर्ज पर घेरने की तैयारी में है बीजेपी
2018 के नतीजे देखने के बाद बीजेपी ये समझ चुकी है कि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह दो ही सही, लेकिन उनसे निपटना आसान नहीं है। खासतौर से दिग्विजय सिंह जिनकी नर्मदा यात्रा ने 2018 के चुनाव से पहले कांग्रेस को संगठित किया और चुनावी फिजा बदल दी थी। इस बार दिग्विजय सिंह 66 सीटों के सर्वे में जुटे हुए हैं। ये वो सीटें हैं जिस पर कांग्रेस लंबे समय से खाता नहीं खोल सकी है। बीजेपी ये समझ चुकी है कि इस बार जीतना है तो सबसे पहले दिग्विजय सिंह को रोकना होगा। सो 2019 की तर्ज पर उन्हें घेरने की तैयारी है।
दिग्गी को घेरने की बीजेपी की रणनीति
- दिग्विजय के मुख्यमंत्री कार्यकाल को जनता के बीच प्रचारित किया जा रहा है।
2019 के चुनाव में प्रज्ञा भारती के खिलाफ चुनाव लड़ रहे दिग्विजय सिंह को हराने के लिए ये रणनीति तैयार की गई थी। कमोबेश यही रणनीति इस बार दिग्विजय सिंह को कमजोर करने के लिए इस्तेमाल की जाएगी। बीते कुछ दिनों के बीजेपी के नेताओं के भाषण या बाइट्स सुनेंगे तो दिग्विजय सिंह के खिलाफ बयान आसानी से सुनने को भी मिल जाएंगे।
पहले खास आदमी को बीजेपी में शामिल करवाया अब गढ़ छीनने की तैयारी
दिग्विजय सिंह के गढ़ में सेंध लगाने पिछले दिनों शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया एक साथ राघोगढ़ गए थे। इससे कुछ समय पहले भी राघोगढ़ में एक सभा कर दिग्विजय सिंह के खास आदमी हीरेंद्र सिंह को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी में शामिल करवाया था। अब उनके गढ़ को ही छीनने की तैयारी है। शिवराज सिंधिया के दौरे पर जयवर्धन सिंह ने उन्हें मेहमान बताया था। हालांकि, कांग्रेस ने ये साफ नहीं किया है कि उन्हें रोकने के लिए क्या रणनीति होगी।
राघोगढ़ जीतने का बीजेपी का सपना सिंधिया पूरा कर पाएंगे
वैसे दिग्विजय सिंह को उनके गढ़ में ही घेरने का ये पहला मौका नहीं है। इससे पहले साल 2003 में शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें चुनौती दी थी। उनके अलावा बीजेपी के दिग्गज नेता उमा भारती और सुंदरलाल पटवा भी उन्हें चुनावी टक्कर दे चुके हैं, लेकिन राघोगढ़ जीतने बीजेपी के लिए सपना ही रहा है। इस बार इस सपने को पूरा करने का जिम्मा उठाया है ज्योतिरादित्य सिंधिया ने। तो, क्या दिग्विजय सिंह के साथ एक ही पार्टी में रहे सिंधिया वो कर पाएंगे जो बीजेपी कभी नहीं कर सकी।
ये चुनावी चुनौती 2023 में ही खत्म नहीं हो जाएगी। ये 2024 तक चल सकती है क्योंकि दिग्विजय सिंह इस बार फिर चुनाव लड़ने को तैयार हैं और कह चुके हैं कि पार्टी का आदेश हुआ तो सिंधिया के खिलाफ लोकसभा चुनाव जरूर लड़ेंगे।
आप डेविल के पीछे और डेविल आपके पीछे टू मच फन
असल इम्तिहान किसका है बीजेपी का जो एक बार फिर लाव लश्कर लेकर दिग्विजय सिंह को हराने में जुट गई है। ज्योतिरादित्य सिंधिया का जो हर हाल में दिग्विजय सिंह को हराने पर अमादा हैं। या, फिर दिग्विजय सिंह का जिन्हें अपना गढ़ भी बचाना है। अपने तजुर्बे से कांग्रेस को संगठित करना है और ग्वालियर का किला भी भेदना है। इस सिचुएशन को सलमान खान के डायलॉग से ज्यादा आसानी से समझ सकते हैं। आप डेविल के पीछे और डेविल आपके पीछे टू मच फन। अब देखना ये है कि चुनावी किक लगाने में कौन सा डेविल कामयाब होता है और कौन फेल।