BHOPAL: 2023 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए गेम चेंजर मानी जा रही लाड़ली बहना योजना शुरू होने के 4 महीने के भीतर ही शिवराज सरकार के जी का जंजाल बन गई है। दरअसल, महिला वोटर्स को लुभाने के चक्कर में शिवराज सरकार ने 1.25 करोड़ महिलाओं के बैंक खातों में 1 हजार रुपए डालने की शुरुआत तो कर दी है, लेकिन इस लोक लुभावन योजना के चलते सरकार के ऊपर वित्तीय बोझ बढ़ता जा रहा है। ये काफी नहीं था कि शिवराज सरकार आए दिन और भी नई-नई मुफ्त की योजना की घोषणा करती जा रही है। इन मुफ्त की स्कीमों के वित्तीय बोझ से निबटने के लिए शिवराज सरकार अब अलग-अलग तरह के तिकड़म भिड़ा रही है। कभी वो अनुपूरक बजट से पैसा जुगाड़ रही है, तो कभी विभिन्न विभागों को अपना रेवेन्यू कलेक्शन बढ़ाने के लिए फरमान दें रही है और कभी वो क़र्ज़ ले रही है। हालत यह हैं कि पिछले 1 साल में मध्य प्रदेश के सरकारी कर्ज के ग्राफ में 1 लाख करोड़ रु की बढ़ोत्तरी हुई है। पढ़िए लाड़ली बहना योजना और अन्य फ्री की योजनाओं के चलते मध्य प्रदेश के बढ़ते क़र्ज़ का पूरा किस्सा...
लाड़ली बहना योजना का अंकगडित
योजना लांच करते वक़्त मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी इस महत्वाकांक्षी और क्रांतिकारी योजना का लाभ अधिकतम 1 करोड़ महिलाओं को देने की बात की थी। यानी महीने में 1000 करोड़ रुपए और सालभर में 12000 करोड़ रुपए का खर्चा। लेकिन योजना में उम्मीद से ज्यादा रेजिस्ट्रेशन हुए और 1 करोड़ 25 लाख 5 हज़ार 9 सौ 47 महिलाएं योजना के लिए पात्र हुई। यानी उम्मीद से करीब 25 लाख ज्यादा पात्र। लिहाजा उसे हर महीने 1250 करोड़ रुपए के बजट की जरूरत होगी और सालाना 15 हजार करोड़ रुपए की। अब 1 मार्च, 2023 को जो राज्य बजट पेश हुआ था, उसमें लाडली बहना योजना के लिए सिर्फ 8 हजार करोड़ रुपये ही तय हुए थे। जो कि पहले ही योजना की सालभर की जरुरत से कम थे...सिर्फ 8 महीने (जनवरी 2023) तक के लिए। उसपर हितग्राही बहनो की संख्या बढ़ने से शिवराज सरकार पर करीब सवा करोड़ यानी 1 करोड़ 25 लाख महिलाओं के खाते में हर महीने 1 हजार डालने का दबाव आ गया है। लिहाजा अब उसे हर महीने 1250 करोड़ रुपए के बजट की और सालाना 15 हजार करोड़ रुपए के बजट की जरुरत है। हाल ही में शिवराज ने घोषणा की है कि योजना की राशि धीरे-धीरे 3000 रुपए प्रति हितग्राही प्रतिमाह तक बढ़ा दी जाएगी...अगर ऐसा हुआ तो ऐसी स्थिति में सरकार को हर महीने सवा करोड़ महिलाओं के लिए 3 हजार 750 करोड़ रुपए की जरुरत होगी और सालाना 45 हजार करोड़ रु. का खर्च। अब इसी जरुरत को पूरा करने के लिए अनुपूरक बजट, रेवेन्यू टारगेट बढ़ाने और सरकार क़र्ज़ जैसे हर जरुरी तरीके अपना रही है।
मानसून सत्र में लाडली बहना योजना के लिए सवा 4 हजार करोड़ रुपये प्रस्तावित
मध्य प्रदेश में विधानसभा का मानसून सत्र 10 जुलाई से शुरू होने जा रहा हैं - मध्य प्रदेश में नवंबर-दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के कारण इस वर्ष शीतकालीन सत्र नहीं होगा। सरकार इस सत्र में द्वितीय और बजट सत्र में तृतीय अनुपूरक बजट प्रस्तुत करती है। तो वहीँ अप्रैल-मई में लोकसभा चुनाव के कारण वर्ष 2024-25 के आम बजट के स्थान पर लेखानुदान प्रस्तुत होगा - इस 5 दिवसीय सत्र में सरकार वित्तीय वर्ष 2023-24 का पहला अनुपूरक बजट पेश करेगी। यह लगभग 25 हजार करोड़ रुपये का हो सकता है। इसमें सवा 4 हजार करोड़ रुपये अकेले मुख्यमंत्री लाडली बहना योजना के लिए प्रस्तावित हैं।
आधा दर्जन विभागों के टारगेट में बढ़ाई 10 फीसदी राशि
अनुपूरक बजट के बावजूद योजना के बजट में कुछ कमी न रह जाए, इसके लिए वित्त मंत्रालय ने सरकार के 6 अलग-अलग विभागों से अपना रेवेन्यू कलेक्शन टारगेट 10 फीसदी तक बढ़ाने की बात कही है। इन विभागों में जो मुख्य हैं - परिवहन विभाग, ऊर्जा विभाग, राजस्व विभाग, लोकसंपत्ति प्रबंधन विभाग, कमर्शियल टैक्स विभाग, और माइनिंग विभाग।
अन्य लोकलुभावन फ्री स्कीम्स और सरकार पर बढ़ता बोझ
जैसा हमने पहले बताया कि सरकार ने सिर्फ लाड़ली बहनों के लिए ही अपना ख़ज़ाना नहीं खोला है, बल्कि समाज के अन्य वोटरवर्ग के वोट बटोरने के लिए लाड़ली बहना योजना जैसी ही कई और भी लोकलुभावन फ्री स्कीम्स की घोषणा की है। लाड़ली बहना योजना की तरह इन घोषणाओं का भी सरकारी खजाने पर भारी-भरकम असर पड़ा है...
28 जून 2023 को शिवराज सरकार का ग्राम रोजगार सहायकों को दोगुना वेतन देने के ऐलान का असर
- मप्र में रोजगार सहायकों की संख्या- 23 हजार
23 जून 2023 को कर्मचारियों का डीए 4 परसेंट बढ़ाने के ऐलान का असर
- मप्र में कर्मचारियों की संख्या- 7.5 लाख
किसान सम्मान निधि योजना में किसानों को 6 हजार रु. देने की घोषणा का असर
- योजना के पात्र किसानों की संख्या- 87 लाख
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की वेतन बढ़ोत्तरी
प्रदेश में 97135 आंगनबाड़ियों में: 96028 कार्यकर्त्ता और 83183 सहायिका हैं। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के मानदेय में ₹3000 की प्रतिमाह बढ़ोतरी की घोषणा हुई है और अब आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को ₹13000 प्रति माह मिलेगा। इसके अलावा आंगनबाड़ी सहायिकाओं के मानेदय में 750 की बढ़ोतरी की है, अब यह मानदेय बढ़कर 5,750 रुपए प्रतिमाह हो गया है। इससे बढ़ोत्तरी से सरकार पर करीब 35 करोड़ 4 लाख 37 हज़ार का भार सरकार पर हर महीने बढ़ेगा। यानी साल भर का 420 करोड़ रु का भार।
उपरोक्त मुफ्त और वेतनवृद्धि की घोषणाओं के अलावा स्वतंत्रता संग्राम और लोकतंत्र सेनानियों को 25 हजार की जगह 30 हजार रु. हर महीने, दिवंगत सेनानियों के परिवार को 5 हजार रु. की जगह 8 हजार रु. हर महीने, 12 वीं में फर्स्ट आने वाली छात्राओं को ई स्कूटी, गांव की बेटी और प्रतिभा किरण योजना के तहतत स्कॉलरशिप, बैगा, भारिया, सहरिया जनजाति की महिलाओं के लिए आहार अनुदान योजना जैसी कई योजनाओं का ढेर लगा हुआ है। विपक्षी दल कांग्रेस भी घोषणाएं करने में पीछे नहीं है। कांग्रेस ने भी घोषणाएं की है, जैसे - नारी सम्मान योजना के तहत 1500 रु. हर महीने, 500 रु. में गैस सिलेंडर, 100 यूनिट तक 100 रु. बिजली बिल, पुरानी पेंशन योजना और किसानों की कर्जमाफी आदि।
1 साल में सरकारी कर्ज के ग्राफ में 1 लाख करोड़ रु की बढ़ोत्तरी
उपरोक्त सभी फ्री की योजनाओ के चलते ही पूरे प्रदेश के का बजट बिगड़ गया है। वित्त विभाग के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2022 की स्थिति में सरकार के ऊपर 2 लाख 95 हजार करोड़ रुपये का ऋण था। इसके बाद जून 2022 से नवंबर 2022 तक 12 हजार करोड़ रुपए का कर्ज़ा और लिया गया। फिर जनवरी 2023 में 2000 करोड़ का कर्ज़ा लिया और फरवरी में 3 बार में 9 हजार करोड़ रुपये का कर्ज लिया गया। वर्तमान में सरकार 3 लाख 85 हजार करोड़ के (उसके कुल बजट 3 लाख 14 हजार करोड़ से ज्यादा) भारी भरकम कर्ज के बोझ तले दबी है। कर्ज इतना है कि सरकार हर साल केवल 24 हजार करोड़ का ब्याज भर रही है। अब पहले ही इतने भारी क़र्ज़ तले दबी सरकार ने हाल ही में 14 जून, 2023 को रिजर्व बैंक के मुम्बई कार्यालय के माध्यम से अपनी गवर्मेन्ट सिक्युरिटीज बेच कर बाजार से 4 हजार करोड़ रुपये का नया कर्ज़ा भी उठाया है। ये सरकार द्वारा 2023-24 के वित्तीय वर्ष में लिया दूसरा बड़ा क़र्ज़ है।
2023 के पहले 6 महीनें में ही लिया 30 हजार करोड़ का कर्ज
मध्य प्रदेश सरकार इस साल के 6 महीनों में अब तक अलग-अलग तारीखों पर 11 बार कर्ज ले चुकी है। जनवरी, फरवरी, मार्च, मई और जून में सरकार ने RBI से लोन लिया है।
- जनवरी में 2 हजार रुपए करोड़ का कर्ज
तारीखों से हिसाब से लोन
- 25 जनवरी 2023- 2000 करोड़
चुनाव तक जारी रहेगा क़र्ज़ लेने का सिलसिला
लाड़ली बहना और अन्य मुफ्त सुविधाओं की घोषणाओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए क़र्ज़ लेने का ये सिलसिला यही नहीं रुकने वाला है, बल्कि RBI (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) के एक बुलेटिन में ये खुलासा हुआ है कि मप्र सरकार आगामी नवम्बर के चुनाव की आचार संहिता लगने से पहले RBI से जुलाई से सितंबर माह के बीच 3 माह में 10 हजार करोड़ का लोन लेगी। अक्टूबर माह के पहले सप्ताह में चुनाव की आचार संहिता लग जाएगी। इसके पहले 2 हज़ार करोड़ का एक लोन जुलाई माह में, फिर अगस्त महीने में 2 हजार करोड़ के दो लोन और सितंबर माह में भी 2 हजार करोड़ के दो लोन लिए जाएंगे। लोन लेने कि प्रक्रिया को लेकर MP सरकार ने RBI से बातचीत भी कर ली है।
कब-कब लेगी मप्र सरकार कर्ज
- 18 जुलाई- 2 हजार करोड़ रुपए
यानी कुल मिलाकर सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ाने की पूरी तैयारी है। अब सवाल खड़ा हो रहा है कि एक आम आदमी पर इसका कितना असर हो रहा है? इसका जवाब बड़ा सीधा सा है। अपनी कमाई से जब आप बचत ही नहीं कर पाएंगे और जब आपके परिवार में खर्चों में कटौती होने लगेगी तब इसका एहसास होता है। कैसे? समझिये...
मुफ्त की रेवड़ियां बांटने से बढ़ेगी टैक्स की मार: डॉ मनमेंद्र सिंह सलूजा, इकोनॉमिस्ट
इकोनॉमिस्ट डॉ मनमेंद्र सिंह सलूजा के मुताबिक मुफ्त की रेवड़ियां बांटने का ये कल्चर डायबिटिज बीमारी की तरह है। पता ही नहीं चलता कि कब बीमारी का शिकार हो गए। ऐसे ही कब टैक्स की मार पड़ जाएगी और उसकी जेब खाली हो जाएगी, ये पता भी नहीं चलेगा। क्योंकि इसका तात्कालिक असर नहीं होता। अर्थशास्त्रियों का ये भी कहना है कि जो कर्ज लिया जा रहा है यदि उसका इस्तेमाल सही तरीके से नहीं किया गया तो ये संकट की आहट है।
अब इसे ऐसे समझिए - पिछले दिनों पीएम मोदी ने कहा था कि बीजेपी शासित राज्यों में पेट्रोल की कीमत 100 रु. से कम है। लेकिन मप्र में पेट्रोल की कीमत करीब 109 रु. है। अब मप्र सरकार चाहकर भी इसे कम नहीं कर पा रही क्योंकि ये उसकी आय का साधन है। पेट्रोल की वास्तविक कीमत 57 रु. है और सरकार आम जनता से 51 रु. ज्यादा टैक्स वसूल रही है। इसी तरह से बिजली में 22 हजार करोड़ रु. की सब्सिडी दे रही है। इसका फायदा कुछ वर्ग के लोगों को मिल रहा है। बाकी बचे हुए ईमानदार उपभोक्ता बिजली का बिल भर रहे हैं। लेकिन सरकार इसी तरह से कर्ज लेती रही तो उसे इसकी भरपाई के लिए टैक्स की राशि बढ़ाना पड़ेगी। इतना तो तय है। क्योंकि सरकार की कमाई भी बजट के मुकाबले कम ही होती है। साल 2022-23 में मप्र सरकार की आय थी करीब 2 लाख 4 हजार करोड़ यानी बजट से करीब एक लाख करोड़ रु. कम। अर्थशास्त्री मानते हैं कि चादर से ज्यादा पैर फैलाना हमेशा नुकसानदायक है।
योजनाओं की पूर्ती के लिए सरकार कर्ज ले रही है और लोगों को दिए जा रहे मुफ्त के पैसों को सरकार समाज कल्याण का नाम देती है। लेकिन बगैर किसी काम के यूं ही पैसे दे देना भीख देने के समान ही है। खास बात ये है कि विपक्ष, जो सत्ता में नहीं है वो ऐसी घोषणाएं करें तो समझ आता है, मगर यहां तो सत्ताधारी दल ही इस राह पर चल पड़े हैं। और जो ऐलान किए जा रहे हैं वो राज्य की तरक्की नहीं कर रहे हैं। अगर तरक्की की रफ्तार तेज़ हो तो कर्ज़ लेना और चुकाना मुश्किल नहीं होता है। लेकिन जब तरक्की पर ही सवाल हों और कमाई कम हो रही हो, तो क़र्ज़ गले का फंदा बनने में देरी नहीं करता। खुद पीएम मोदी भले ही कहते हो कि वो फ्री बीज पॉलिटिक्स के लिए फिट नहीं है, लेकिन उन्हीं की पार्टी के नेता इस पॉलिटिक्स में खुद को फिट मानते हैं।
इंदौर इनपुट: संजय गुप्ता