शिवपुरी में बैंक के चपरासी ने किया 80 करोड़ का गबन, बैंक हुआ कंगाल, 1 लाख खाताधारकों का भुगतान रुका, ऑनलाइन लेनदेन ठप

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Chandresh Sharma
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शिवपुरी में बैंक के चपरासी ने किया 80 करोड़ का गबन, बैंक हुआ कंगाल, 1 लाख खाताधारकों का भुगतान रुका, ऑनलाइन लेनदेन ठप

Shivpuri. शिवपुरी के सहकारी बैंक की कोलारस शाखा के चपरासी ने ऐसा दिमाग दौड़ाया कि परलोक में बैठी हर्षद मेहता की आत्मा भी अपने इस चेले की कारस्तानी पर खुशी से आशीर्वाद देने से खुदको रोक न पाई होगी, कहा होगा कि ‘वाह बेटा, खेल गए। । दरअसल राकेश पाराशर नाम के इस चपरासी ने अपने ही बैंक में 80 करोड़ रुपयों का गबन कर डाला। इस कारस्तानी से न सिर्फ बैंक कंगाल हो चुका है बल्कि वह अपने खाताधारकों का पैसा तक नहीं लौटा पा रहा है। ऑनलाइन लेनदेन ठप हो चुका है क्योंकि बैंक के सेंट्रल सर्वर में एमाउंट ही नहीं है। 



पढ़े-लिखे कैशियर भी अचरज में




दरअसल राकेश पाराशर था तो चपरासी लेकिन बैंक उससे कैशियर का काम भी कराता था। उसके आंखों के सामने जब लाखों रुपए नगद इधर से उधर होता तो उसका मन डोल गया, उसने पैसा बनाने के लिए काफी शातिर प्लान बनाया। उसने अपने भाई, रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ-साथ भरोसेमंद लोगों के एकाउंट अपने बैंक में खोले। इन खातों में वह फर्जी वाउचर के जरिए रकम डालता, जबकि हकीकत में कोई कैश होता ही नहीं था। वाउचर की एंट्री से खाते में पैसा जमा होना और बैंक के कैश बैलेंस में पैसा केवल कागजों में ही दिखता था। ठीक उसी तरह जैसा कभी हर्षद मेहता ने किया था। 




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  • रोज डालता था फर्जी एंट्री



    चपरासी राकेश पाराशर इन खातों में रोज 4 से 5 फर्जी एंट्री डालता, फर्जी रकम को एसबीआई में सहकारी बैंक के खातों में जमा दिखा देता। फिर बैंक के जनरल लेजर(बीजीएल) खाते में इसकी एंट्री कर देता था, ताकि हेड ऑफिस को रिकॉर्ड में अंतर न दिखे। इसके बाद फर्जी तरीके से जमा किए गए पैसे को निकालने के लिए अपनी बैंक की जिला मुख्यालय शाखा पर ग्राहकों द्वारा पैसा निकालना बताकर नकद रकम की डिमांड भेज देता था। जिस कारण कोलारस शाखा में एसबीआई राशि भेज देता था। इस पैसे को राकेश खुद रख लेता था। 



    2013 से चल रहा था फर्जीवाड़ा




    राकेश पाराशर साल 2013 से इसी फर्जीवाड़े को अंजाम दे रहा था। साल 2021 के समय उसे पकड़े जाने का भय सताने लगा, इस फर्जीवाड़े को छिपाने के लिए बीजीएल को दुरुस्त किया जाना जरूरी था। उसमें 37 करोड़ रुपए डेबिट हो चुका था, जो उसने एसबीआई में जमा दिखाए थे, जबकि असल में वहां 37 पैसे भी नहीं थे। इसे छिपाने राकेश ने लुकवासा सोसायटी के कृषि ऋण खाते को डेबिट कर बीजीएल में 37 करोड़ जमा करा दिए। लेकिन यह राशि बैंक की कृषि ऋण की मांग वसूली में आ गई। जिसके बाद मामले का भंडाफोड़ हो गया। 



    सोने के बिस्तर पर सोता था चपरासी




    बैंक के मामूली से कर्मचारी की लाइफस्टाइल से जब पर्दा उठा तो बैंक के बड़े अधिकारी भी अचकचा गए। राकेश पाराशर ने अपने सोने के लिए गोल्ड की चारपाई बनवाई थी, वह खाना भी सोने की थाली में खाता था, जब नातेदार पूछते तो कहता था कि गड़ा धन मिला है। राकेश ही नहीं बल्कि उसके पूरे परिवार की लाइफस्टाइल हाई फाई है। उसकी पत्नी और बच्चे भी सोने से लदे रहते थे। 



    अपेक्स बैंक भोपाल के एमडी पीएस तिवारी ने बताया कि इस घोटाले में जिन लोगों के खातों से ट्रांजेक्शन हुआ है, उन पर केस दर्ज करने के लिए महाप्रबंधक और प्रशासक को हमने चिट्ठी लिख दी है। खाताधारकों के पैसे लौटाने की लगातार कोशिश जारी है। 


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