BHOPAL. अपने ही नेताओं की उम्मीदों पर बीजेपी ने खुद ही पानी फेर सकती है। ये साल आधे से ज्यादा गुजर चुका है और तकरीबन इतना ही वक्त अब चुनावी नतीजों के आने में बचा है। साल की शुरूआत से ही बीजेपी के कुछ विधायक इंतजार की च्युंगम चबा रहे हैं। अब च्युंगम का स्वाद तो आप जानते ही हैं। शुरूआत में मीठी लगती है या किसी फ्लेवर से लबरेज होती है। धीरे-धीरे मिठास कम होती है और कड़वापन लगने लगता है। अब अपन ठहरे आम लोग च्युंगम का स्वाद खत्म होते ही उसे फेंक देते हैं, लेकिन मध्यप्रदेश के विधायक जिस च्युंगम को चबा रहे हैं उसे चबाते रहना मजबूरी है। फिर भले ही वो बेस्वाद हो जाए या उसे चबाते-चबाते दांतों में दर्द ही क्यों न हो जाए। जब तक उम्मीद है च्युंगम में मिठास रहेगी। लेकिन अब प्रदेश आलाकमान के एक फैसले से ये उम्मीद खत्म होती हुई नजर आ रही है।
बीजेपी क्या टूटी आस लेकर विधायकों को दोबारा जितवा सकेगी
इस उम्मीद के टूटने का असर क्या होगा। एक-एक सीट जीतने के लिए अलग-अलग प्रभारी और कार्यकर्ता तैनात कर रही बीजेपी क्या टूटी आस लेकर बैठे विधायकों को दोबारा जितवा सकेगी। ये आस जुड़ी थी मंत्रिमंडल विस्तार से। अब तक ये संभावनाएं जताई जा रही थीं कि जिन अंचलों को मंत्रिमंडल में कम वेटेज मिला है। उन अंचलों के कद्दावर विधायकों को मंत्रिमंडल में मौका मिल सकता है, लेकिन हाल ही में हुई बैठकों में भी शिवराज मंत्रिमंडल पर कोई चर्चा नहीं हुई। जिसकी वजह से ये उम्मीदें टूटती नजर आ रही हैं।
बीजेपी का बड़ा सवाल- किसे निकाले, किसे जोड़े, किसका कद घटाएं और किसे बढ़ाएं
मंत्रिमंडल यानी मुश्किल आसान या फिर जी का जंजाल। ये वो सवाल है जिसके बीच बीजेपी उलझी हुई है। आमतौर पर चुनावी साल में मंत्रिमंडल विस्तार इसलिए होता है कि बिगड़े समीकरण संभाले जा सकें। किसी तबके की नाराजगी दूर हो या किसी क्षेत्र से गिले शिकवे मिट सकें, लेकिन इस बार का विस्तार शिवराज सिंह चौहान सहित पूरी बीजेपी के लिए काम बनाने से ज्यादा काम बिगाड़ने वाला साबित हो सकता है। किसे निकाले, किसे जोड़े, किसका कद घटाएं और किसे बढ़ाएं। इन सवालों के जवाब किसी मधुमक्खी के छत्ते से कम नहीं है। जिसे जरा सा छुआ भी तो हालात बदतर हो सकते हैं। क्या यही डर बीजेपी को खाए जा रहा है। हाल ही में शिवराज मंत्रिमंडल न सही लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल में परिवर्तन की खबरें जरूर आ रही हैं। जिसके बाद फिर मध्यप्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार की उम्मीद को हवा मिल रही है।
मंत्री बनने अपनी बारी का इंतजार कर रहे विधायक निराश
मंत्रिमंडल विस्तार बीजेपी के लिए ऐसा तीर था जिससे एक साथ कई निशाने साधने थे। कैबिनेट से बीजेपी जातीय समुदाय के समीकरण बैठाने की जुगत में थी। लगी हुई है। साथ ही क्षेत्रीय संतुलन भी बनाना था, लेकिन महाराज भाजपा और शिवराज भाजपा में उलझी बीजेपी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है और देखते ही देखते चुनावी साल के सात माह बीत चुके हैं। अब तक मंत्रिमंडल विस्तार तो दूर की बात उसकी कोई हवा भी नहीं है। जाहिर है इससे उन विधायकों को निराशा जरूर होगी जो अब तक अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे हैं।
मंत्री बनने की उम्मीद लगाए विधायकों का इंतजार खत्म नहीं हो रहा
वैसे तो मंत्रिमंडल विस्तार या फेरबदल चुनावी साल में कुछ फायदों के मद्देनजर किया जाता है, लेकिन इस बार मध्यप्रदेश में किसी भी मुद्दे पर बीजेपी फैसले पर पहुंच ही नहीं पा रही है। पहले गुजरात चुनाव के बाद ये उम्मीदें थीं कि प्रदेश में फेरबदल होगा, लेकिन कुछ नहीं हुआ। कर्नाटक चुनाव के बाद भी वही सुगबुगाहटों का दौर शुरू हुआ, लेकिन अब तक सन्नाटा ही पसरा हुआ है न कैबीनेट के खाली पड़े चार पदों को भरने के लिए कवायद हो रही है और न ही जिन अंचलों से कोई मंत्री नहीं है उन्हें कैबिनेट में लाने का प्रयास है। महाकौशल और विंध्य क्षेत्र को शिवराज मंत्रिमंडल में वो प्रमुखता नहीं दी गई जिसके वो हकदार थे। इसकी वजह से इन क्षेत्रों में सरकार के खिलाफ बड़ी नाराजगी है। इसी नाराजगी को कम करने के लिहाज से इन क्षेत्रों को कैबिनेट में प्रतिनिधित्व देने की बात कही जा रही है, लेकिन लगातार मंत्री बनने की उम्मीद लगाए विधायकों का इंतजार खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा। इस इंतजार का बीजेपी के पास कोई जवाब नहीं है और कांग्रेस को चुटकी लेने का एक मौका और मिल रहा है।
बीजेपी और कांग्रेस बैक टू बैक
माना जा रहा है कि मंत्रीमंडल विस्तार शिवराज और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच उलझ कर रह गया। कैबिनेट विस्तार को लेकर एक तरफ ये कहा जा रहा था कि संगठन और शिवराज सिंह चौहान के पसंद वाले विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा। वहीं दूसरी तरफ नए मंत्रिमंडल में सिंधिया समर्थक विधायकों को भी जगह दी जाना और जगह बनाए रखना जरूरी है। कई महीनों से सरकार मंत्रालय में किसको शामिल करे इस पर विचार बना पाने में नाकाम साबित हो रही है। ऐसे हालात में मंत्रिमंडल विस्तार करना बीजेपी के लिए ज्यादा घाटे का सौदा साबित हो सकता है। अगर सही चेहरे नहीं चुन सके तो फायदे की जगह नुकसान की आशंका ज्यादा है।
यानी अब कैबिनेट विस्तार की अटकलों के साथ ही नेताओं की उम्मीदें भी ठंडे बस्ते में जा चुकी हैं
बीजेपी की सर्वे रिपोर्ट ही उसके हालात की तरफ इशारा कर रही है
अब बीजेपी का सिर्फ एक ही मकसद है कमजोर सीटों पर पार्टी को मजबूत बनाना, लेकिन ये मजबूती भला कैसे आएगी, कमजोर सीटों की वजह नेताओं और समाजों की नाराजगी है। जिसे कम करने का तरीका हो सकता था मंत्रिमंडल विस्तार। हालांकि, केंद्रीय केबिनेट के विस्तार की खबरों के बीच फिर ये उम्मीद मजबूत होती जा रही है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो समझिएगा कि बीजेपी के तूनीर में एक बाण और कम हो चुका है। वैसे तो कहावत है कि न होगा बांस न बजेगी बांसुरी, लेकिन बीजेपी की सर्वे रिपोर्ट ही बीजेपी के हालात की तरफ इशारा कर रही है। उस स्थिति में क्या बांस और बांसुरी से बचकर निकल जाना मध्यप्रदेश में बीजेपी के लिए फायदेमंद होगा।