RAIPUR. इधर 5 राज्यों में विधानसभा के चुनाव के लिए राजनीतिक दल जी-जान लगाकर तैयारी में जुटे हैं और उधर दिल्ली में लोकसभा में विरोधी दलों द्वारा केन्द्र की मोदी सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। एकाएक पिछले सप्ताह सारा राजनीतिक विमर्श लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर होने वाली बहस पर केन्द्रित हो गया। यह उम्मीद थी कि इस विमर्श से मणिपुर में शांति की स्थापना के लिए कोई राह निकलेगी और उस राह से विशेषकर छत्तीसगढ़ और मिजोरम के आदिवासी क्षेत्रों की चुनावी तैयारियों का नया रूप सामने आएगा। बहरहाल, ऐसा नहीं हुआ।
अरविंद नेताम ने की कांग्रेस छोड़ने की घोषणा
दिल्ली से आदिवासी क्षेत्रों के लिए कोई संकेत नहीं मिला और यहां सर्व आदिवासी समाज के नेता और पूर्व केन्द्रीय राज्य मंत्री अरविन्द नेताम ने कांग्रेस छोड़ने की घोषणा कर दी। उन्होंने एक नया राजनीतिक दल बनाकर चुनाव लड़ने की बात कही है। अरविन्द नेताम ने यह भी कहा है कि वे सी.पी.आई, सी.पी.एम गोंडवाना गणतंत्र पार्टी जैसे दलों से तालमेल बैठाकर छत्तीसगढ़ में 50 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। वे मध्यप्रदेश में भी आदिवासी बहुल क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की सोचते हैं। अरविन्द नेताम द्वारा कांग्रेस छोड़ना, कोई चौंकाने वाली बात नहीं थी क्योंकि वे व्यावहारिक रूप से कांग्रेस से अलग ही थे। पिछले कुछ वर्षों में वे कई राजनीतिक दलों में आवागमन करते रहे हैं और कहीं प्रभावी नेता नहीं बन सके थे। कांग्रेस को मालूम ही था कि अरविन्द नेताम कांग्रेस के विरूद्ध मोर्चे बंदी में लगे हुए हैं। कांग्रेस का आरोप है कि वे बीजेपी के लिए कार्य कर रहे हैं।
धरमजीत सिंह ने थामा बीजेपी का दामन
चुनाव से पहले अपने राजनीतिक भविष्य की तलाश में पार्टी बदलने के दौर में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के विधायक और वरिष्ठ राजनीतिज्ञ धरमजीत सिंह ने जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के ही एक पूर्व महापौर ने भी बीजेपी में प्रवेश लिया है। इसी पार्टी के एक और विधायक प्रमोद शर्मा भी किसी और दल में जा सकते हैं। अब जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ की एक ही विधायक, रेणु जोगी ही पार्टी में बची हैं। इस तरह अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़, जिसने 2018 के विधानसभा के चुनाव में ठीक-ठाक प्रदर्शन किया था, 2023 के चुनाव के पहले ही प्रदेश में लगभग प्रभाव शून्य हो गई है।
कांग्रेस और बीजेपी की तैयारियां
जहां तक कांग्रेस और बीजेपी की चुनावी तैयारियों का मुद्दा है, दोनों ही दल अपने संगठन को सक्रिय करने के लिए विभिन्न स्तरों की समितियों के गठन और कार्यकर्ताओं की बैठकें आयोजित करने में लगे हैं। यह थोड़ा आश्चर्यजनक है, कि इस बार समितियों के गठन करने में और बूथ स्तर तक के सम्मेलन करने में कांग्रेस कहीं आगे दिखाई दे रही है। कारण शायद यह है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के मामलों में निर्णय लेने के लिए भूपेश बघेल सबसे सशक्त नेता हैं, जबकि छत्तीसगढ़ बीजेपी को हर बात के लिए अपने हाईकमान के निर्देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। 15 वर्ष तक राज करने के बाद, इस समय बीजेपी का कोई भी प्रांतीय नेता छत्तीसगढ़ के सर्वमान्य नेता के रूप में उभरकर नहीं आ सका है। प्रांतीय स्तर पर स्थिति को और भी घुमावदार बना दिया गया है। पहले तो छत्तीसगढ़ से बीजेपी का एक राष्ट्रीय उपाध्यक्ष था, अब एक की जगह पर 3 राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हो गए हैं।
बीजेपी के किसी प्रांतीय नेता को नहीं टिकट मिलने का भरोसा
छत्तीसगढ़ में बीजेपी के संगठन का कार्य और चुनावी रणनीतियां पूरी तौर पर उसके केन्द्रीय नेताओं के निर्देशन पर ही संचालित हो रही हैं। विधानसभा के चुनाव के लिए बीजेपी का टिकट मिलने का शत-प्रतिशत भरोसा किसी भी प्रांतीय नेता को नहीं है। यह एक कारण है कि टिकट मांगने वालों की संख्या बहुत बढ़ गई है किन्तु जमीनी आधार पर उनकी तैयारी कमजोर नजर आ रही है। किसानों को खुश करने के बाद अब कांग्रेस शासकीय कर्मचारियों को अधिक से अधिक आर्थिक लाभ देने में जुटी है। इसके साथ-ही-साथ वह युवा वोटरों को लुभाने पर बहुत ध्यान दे रही है। किसान और शासकीय कर्मचारी पहले से ही कांग्रेस के उन वायदों से लाभान्वित हो रहे हैं, जिनसे पार पाना बीजेपी के प्रांतीय नेताओं के लिए एक कठिन समस्या है। बीजेपी के प्रांतीय नेता बार-बार अपने हाईकमान का ध्यान इस ओर आकर्षित करा रहे हैं किन्तु उन्हें कोई ठोस परिणाम मिलता नहीं दिखाई दे रहा है। बीजेपी के प्रांतीय नेता कांग्रेस सरकार की असफलताओं और भ्रष्टाचार के कथित मामलों पर ज्यादा से ज्यादा आक्रमण कर रहे हैं। बीजेपी के नेता इस समय सबसे ज्यादा ध्यान उन 4 विधानसभा क्षेत्रों पर लगा रहे हैं। जहां से बीजेपी कभी भी सफल नहीं हो सकी है। बीजेपी का जोर बस्तर संभाग की 12 सीटों और सरगुजा संभाग की 14 सीटों पर जहां वह 2018 में पूरी तौर पर असफल रही थी। ध्यान देने की एक बात यह है कि कांग्रेस के उस आंतरिक संघर्ष पर बीजेपी की दिलचस्पी अब भी बनी हुई है जिसे कांग्रेस ने कुछ समय पहले समाप्त कर दिया है।
बहुजन समाज पार्टी के लिए चुनौती
छत्तीसगढ़ में एक लंबे समय तक क्षेत्रीय दल के रूप में बहुजन समाज पार्टी प्रभावी रही है। बहरहाल, इधर चुनाव दर चुनाव उसका जमीनी आधार लगातार कमजोर होता गया है। बहुजन समाज पार्टी ने इस बार किसी भी अन्य राजनीतिक दल के साथ गठबंधन न करने की बात की है। उसने 9 विधानसभ क्षेत्रों के लिए अपने उम्मीदवारों की औपचारिक घोषणा कर दी है जिनमें 2 वर्तमान विधायक हैं। अन्य 7 में एक उसके पुराने और प्रभावी नेता दाऊराम रत्नाकर हैं और एक ब्राह्मण हैं। बहुजन समाज पार्टी के लिए यह चुनाव छत्तीसगढ़ में अपने राजनीतिक अस्तित्व को पुनः सिद्ध करने के लिए चुनौती भरा है।
आम आदमी पार्टी के लिए जगह बनाना कठिन
आम आदमी पार्टी दिल्ली और पंजाब में अपनी सरकार की सफलताओं के आधार पर छत्तीसगढ़ के मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रही है। बहरहाल, बिना किसी छत्तीसगढ़ी नेता के चेहरे के आम आदमी पार्टी के लिए यहां जमीन बनाना कठिन सिद्ध हो रहा है। उसके राष्ट्रीय नेताओं के दौरों और रैलियों के बावजूद छत्तीसगढ़ में वह कहीं भी एक दमदार चुनौती प्रस्तुत करने की स्थिति में नहीं आ पाई है। यह बात अलग है कि उसके नेता बहुत आशान्वित नजर आते हैं और दावा करते हैं कि आम आदमी पार्टी यहां अच्छा प्रदर्शन करेगी।
अंत में हम पाते हैं कि 10 बिन्दुओं के चुनावी स्केल पर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस 5.50 और बीजेपी 4.50 पर बनी हुई है।