पीढ़ीगत बदलाव के लिए बीजेपी ने राजस्थान में लिए सबसे दुस्साहसिक फैसले, अब लोकसभा पर नजर

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Pratibha Rana
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पीढ़ीगत बदलाव के लिए बीजेपी ने राजस्थान में लिए सबसे दुस्साहसिक फैसले, अब लोकसभा पर नजर

मनीष गोधा, JAIPUR. 2023 जाते-जाते आखिर राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने पूर्ण आकार ले ही लिया। राजस्थान में जीत के बाद हर फैसला लेने में भारतीय जनता पार्टी ने लंबा टाइम लिया और जितने दुस्साहसिक फैसला राजस्थान में नजर आए उतने मध्य प्रदेश में ना दिखे ना छत्तीसगढ़ में नजर आए। भारतीय जनता पार्टी ने राजस्थान में सत्ता और संगठन दोनों में ही पीढ़ीगत बदलाव का स्पष्ट संदेश दिया है। चुनाव से पहले सीपी जोशी के रूप में एक बेहद युवा नेता को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया और चुनाव जीतने के बाद पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता के रूप में पहचान बन चुके भजनलाल शर्मा को पहली बार विधायक बनने के साथ ही मुख्यमंत्री बनाया। मंत्रिमंडल गठन में पार्टी ने लगभग 27 दिन का समय लिया और जो मंत्रिमंडल बनाया उसमें 25 में से 19, चेहरे ऐसे हैं जो पहली बार मंत्री बने हैं। इनमें खुद मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा भी शामिल है। यही नहीं एक विधायक प्रत्याशी को मंत्री बनाकर नई परंपरा भी डाल दी, जो नैतिक रूप से भले ही गलत है, लेकिन कानूनी रूप से गलत नहीं मानी जा रही। राजस्थान में पार्टी के इन फैसलों की देशभर में चर्चा है।

2003 में BJP ने किया पहला बड़ा पीढ़ीगत परिवर्तन

दरअसल राजस्थान में 20 साल बाद फिर एक नई करवट ली है। राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी का अब तक का इतिहास दो बड़े नेताओं के इर्द-गिर्द घूमता रहा है। पहले देश के उपराष्ट्रपति रहे भैरों सिंह शेखावत, जिन्हें 2003 तक राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी का पर्याय माना जाता था। 2003 में भारतीय जनता पार्टी ने राजस्थान में पहला बड़ा पीढ़ीगत परिवर्तन किया जब वसुंधरा राजे को राजस्थान में स्थापित किया गया। इसके लिए शेखावत जैसे वटवृक्ष को दिल्ली में उपराष्ट्रपति बनाया गया और राजस्थान में पूरे दमखम के साथ वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री बनवाया गया। इसके बाद 2018 तक यानी पूरे 15 साल तक पार्टी पर वसुंधरा राजे का एक छात्र राज रहा। इस दौरान भी दो बार मुख्यमंत्री, पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष तीनों अहम पदों पर रहीं।

पार्टी ने दिया जनरेशन चेंज का संदेश

2018 में चुनाव हारने के बाद पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर दिल्ली में सक्रिय करने का प्रयास किया, लेकिन वह राजस्थान में बनीं रही। प्रदेश की जनता के बीच पूरे 5 साल एक मास लीडर के रूप में बनी रहीं। राजस्थान ने हर बार सत्ता परिवर्तन की अपनी परंपरा को कायम रखा और 2023 में एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में लौटी। जनता के बीच अपनी लोकप्रियता और चुनाव में की गई मेहनत को देखते हुए वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री पद की स्वाभाविक दावेदार मानी जा रही थी, लेकिन ठीक बीस साल बाद पार्टी ने एक बार फिर सत्ता और संगठन दोनों में जनरेशन चेंज यानी पीढ़ी का बदलाव का संदेश दिया और उन लोगों के हाथ में सत्ता और संगठन के बाद डोर सौंपी जिनके बारे में कल्पना भी नहीं की जा रही थी।

वो फैसले जो बताते हैं कि पार्टी ने सत्ता और संगठन दोनों में पीढ़ीगत बदलाव किया

- पार्टी ने राजस्थान में पीढ़ीगत बदलाव का पहला संदेश फरवरी 2023 में दिया, जब विधानसभा सत्र के दौरान ही नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया को असम का राज्यपाल बनाकर भेज दिया गया।

- इसके बाद मार्च 2023 में युवा नेता और चित्तौड़गढ़ से सांसद सीपी जोशी को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया।

- चुनाव के दौरान राजस्थान के इतिहास में पहली बार पार्टी बिना मुख्यमंत्री चेहरे के चुनाव मैदान में उतरी।

- पहली बार सात सांसदों को टिकट दिए गए।

- चुनाव में जीत के बाद पहली बार के विधायक भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया।

- पहली बार ही साथ में दो उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी और प्रेमचंद बैरवा को भी शपथ दिलाई गई।

- मंत्रिमंडल के गठन में पार्टी ने 14 दिन का समय लिया और पहली बार में ही एक साथ 22 मंत्रियों को शपथ दिलाई गई।

- 22 में से 16 ऐसे हैं, जो पहली बार मंत्री बने हैं। इनमें दोनों उपमुख्यमंत्रियों और मुख्यमंत्री को भी जोड़ लिया जाए तो

मंत्रिपरिषद के 25 सदस्यों में से 19 ऐसे हैं, जो पहली बार मंत्री पद संभालेंगे।

- इनमें भी मुख्यमंत्री और एक कैबिनेट मंत्री हेमंत मीणा पहली बार के विधायक है।

- पहली बार मंत्री बने विधायकों में से भी ज्यादातर एक या दो बार के विधायक है। सात- आठ बार के विधायक रहे कालीचरण सराफ, प्रताप सिंह सिंघवी, पुष्पेंद्र सिंह राणावत अनीता भदेल को मंत्री पद नहीं दिया गया है।

कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा

पार्टी सूत्रों का कहना है कि जिस तरह के बदलाव इस बार किए गए हैं, वे आश्चर्यजनक है और इनकी चुनौतियां भी कम नहीं है, लेकिन उम्मीद यही है इनसे पार्टी में नई जान आएगी क्योंकि जिन लोगों को मौके दिए गए हैं उनमें से ज्यादातर पार्टी की जमीनी कार्यकर्ता है, जो निचले स्तर पर काम करते हुए आगे बढ़े हैं। यह बदलाव पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और इसका फायदा ना सिर्फ लोकसभा चुनाव बल्कि आगे तक भी मिलता रहेगा।

चुनौतियां बहुत रहेंगी

पार्टी के इन फैसलों की चुनौती भी कम नहीं हैं।

- विधानसभा में इस बार कांग्रेस के पास दिग्गज नेताओं की पूरी फौज है। उनके सामने टिकना चुनौतीपूर्ण रहेगा।

- सीएम का खुद का इस मामले में अनुभवहीन होना एक बड़ी चुनौती है।

- पार्टी में वसुंधरा राजे और उनके खेमे के जिन लोगों को मौका नहीं मिला है, वे पार्टी विधायक दल के भीतर ही एक अंदरूनी विपक्ष की चुनौती पेश कर सकते हैं।

- नए मंत्रियों के लिए अधिकारियों को हावी नहीं होने देना भी एक बड़ी चुनौती रहेगी।

अब लोकसभा पर नजर

पार्टी ने जिस तरह के प्रयोग विधानसभा चुनाव में किए अब इस तरह के प्रयोग लोकसभा चुनाव में भी किए जाने की उम्मीद जताई जा रही है। राजस्थान में लोकसभा के 25 सीटें हैं और इनमें से 6 सीटों के सांसदों को विधानसभा चुनाव में टिकट दे दिया गया था। एक सांसद किरोड़ी लाल मीणा राज्यसभा से हैं। लोकसभा के 6 सांसदों में से तीन जीत कर विधानसभा पहुंच गए हैं और उनमें से दो दिया कुमारी और राज्यवर्धन सिंह राठौड़ मंत्री भी बन गए हैं। बाकी तीन भागीरथ चौधरी, देवजी पटेल और नरेंद्र कुमार जो हर हैं। अब उनका लोकसभा का दावा वैसे ही खत्म हो गया है। यानी 25 में से 6 सीटों पर नए चेहरे सामने आना तय है और बाकी बची 19 सीटों पर भी इस बार अपेक्षाकृत नए चेहरों की उम्मीद की जा रही है।

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