किसी का दर्द, किसी की मुस्कुराहट; लक्ष्मण के शब्द बाण, उमंग की चिट्ठी और राणा जी की चिंता

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Harish Divekar
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किसी का दर्द, किसी की मुस्कुराहट; लक्ष्मण के शब्द बाण, उमंग की चिट्ठी और राणा जी की चिंता

दर्द भुलाने नेताजी सत्संग में जुटे, मामा की टेंशन अलग लेवल की

हरीश दिवेकर @ BHOPAL.

किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार,

किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार

किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार

जीना इसी का नाम है....

ये तो गीत का एक मुखड़ा भर है। तनिक रुकिए तो… हम कुछ और बताना चाह रहे हैं। अनाड़ी फिल्म में राज कपूर साहब पर फिल्माया गया यह गीत राजनीति और अफसरशाही में बिल्कुल उल्टा है। यहां कोई किसी का दर्द उधार नहीं लेता, बल्कि दर्द देता है। अब यही मामला देख लीजिए। प्रदेश की सबसे बड़ी मैडम जब पूरे पॉवर में आईं तो उनके दफ्तर से घोटाले की फाइल बाहर आ गई। बात यहीं नहीं रुकी। घोटाले के कागजात सोशल मीडिया तक पर वायरल हो गए।

दूसरा दर्द बुंदेलखंड के एक दिग्गज भाजपा नेता से जुड़ा है। नेताजी अपना दर्द भुलाने के लिए सत्ता से दूर सत्संग कर रहे हैं। भगवा चोला धारण कर अब अपनी पहचान मानो कथावाचक के रूप में बनाना चाह रहे हैं। करीबी कहते हैं कि भाईसाहब का राजनीति से मोहभंग हो गया है, जबकि दूसरा धड़ा मान रहा है कि पार्टी ने भाईसाहब को साइड लाइन कर दिया। इसलिए वे अपनी ताकत का अहसास कराने के लिए इस तरह के प्रकल्प कर रहे हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ये नेता जी खुद को प्रदेश के मुखिया बनने की दौड़ में बता रहे थे, लेकिन मंत्री पद भी नहीं मिला। बाद में उनके कई ऐसे बयान भी सामने आए, जिसमें उनका दर्द साफ.साफ नजर आया।

चलिए ये तो हो गई अपने-अपने सियासी और प्रशासनिक दर्द की बात। आप तो नीचे उतर आईए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।

वीरा का दुश्मन कौन

वीरा राणा जैसे ही कार्यवाहक मुख्य सचिव से मुख्य सचिव बनीं, वैसे ही उनके कार्यकाल में हुई कंम्प्यूटर खरीदी घोटाले की शिकायत सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। दरअसल, प्रशासनिक खेमे में माना जा रहा था कि मैडम को मुख्य सचिव बनाकर उनके रिटायरमेंट से पहले उन्हें 6 माह का एक्सटेंशन दिलाने की तैयारी है। ऐसे में मुख्य सचिव की कुर्सी के दावेदारों का इंतजार लंबा हो रहा था, इसलिए कम्प्यूटर खरीदी घोटाले का बम फोड़ा गया। अंदरखाने से ये भी खबर आ रही है कि अगले घोटाले का बम निर्वाचन आयोग के गलियारे से आने वाला है। उपचुनाव में आयोग ने करोड़ों की सेंट्रलाइज खरीदी और पब्लिसीटी के टेंडर जारी किए थे। अब खबर है कि इस घोटाले में ग्वालियर के मनोज की भूमिका अहम रही है। वहीं माशिमं में अविनाश बाबू सक्रिय रहे हैं। अब ये कौन है मनोज और अविनाश ये हर कोई जानना चाहता है। हमने तो इशारा कर दिया, आगे का काम सरकार की इंटेलीजेंस और जांच एजेंसियों का है।

डीजीपी साहब खुश हैं...

सीएम से खुलकर क्या बात हुई, उसके बाद से डीजीपी साहब का चेहरा खिला- खिला सा है। पुलिस मुख्यालय के बड़े अफसरों का कहना है कि सीएम ने डीजीपी को आश्वासन दिया है कि उन्हें बीच में नहीं हटाया जाएगा। यानी डॉक्टर साहब ने उनका दर्द उधार ले लिया है। कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर डीजीपी को बदलने की अफवाह जोरों पर थी। पीएचक्यू के बड़े अफसरों का कहना है कि इस खबर के बाद डीजीपी बैचेन हो गए थे। उनके दिल्ली जाने की खबरें भी आने लगी थीं, लेकिन सीएम की मुलाकात के बाद अफवाहों पर विराम लग गया। अब साहब की कुर्सी उनके रिटायरमेंट यानी अक्टूबर तक फेविकॉल के जोड़ वाली मानी जा सकती है।

अगला सीएस हमारी कॉलोनी का बने...

इकबाल सिंह मुख्य सचिव बने तो बिशनखेड़ी की बदहाल सड़कों की हालत बदल गई। आज वहां शहर के आउटर में आपको चमचमाती सड़क मिल जाएगी। अब वीरा राणा मुख्य सचिव बनीं तो जाटखेड़ी एरिया चमन हो गया। यहां की सड़क भी लंबे समय से बदहाल थी। करोड़ों के बंगले और आलीशान फ्लैट वाले एरिया में रहने वाले बड़े-बड़े लोग नगर निगम से गुहार लगाकर थक गए थे। इनमें खुद वीरा राणा भी शामिल हैं, लेकिन सड़क नहीं बन रही थी। फिर मैडम जैसे ही हॉट सीट पर बैठीं, वैसे ही रातों रात चमचमाती सड़क बन गई। अब बदहाल सड़कों वाली कॉलोनी के लोग अगले मुख्य सचिव का नाम आईएएस ग्रेडेशन लिस्ट में तलाश रहे हैं, जिससे वे उन्हें अपनी कॉलोनी में रहने के लिए मना सकें। क्योंकि जैसे ही वो मुख्य सचिव बनेंगे, वैसे ही कॉलोनी की चमचमाती सड़क बन जाएगी। बताईए है न मजेदार तथ्य।

उमंग बाबू से चिट्ठी लिखवाई या लिखी

आपने ये दोहा तो सुना ही होगा कि

तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान।

भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण।।

ये इस समय शिवराज सिंह चौहान पर फिट बैठ रहा है। जब तक सीएम की कुर्सी पर थे तो उनकी वाहवाही होती थी। कुर्सी क्या गई, अपने ही दुश्मन बनने लगे। हाल ही में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार ने चिट्ठी लिखकर 9बी बंगले की डिमांड की है। उन्होंने उस बंगले में अपनी बुआ की यादें बताते हुए उसे आवंटित करने का आग्रह किया है। अब सबको पता है कि मामा ने पॉवर में रहते हुए बी-8 और बी-9 की बीच की दीवार तोड़कर एक बंगला बना लिया था। अब ऐसे में उस बंगले की डिमांड करना कई सवाल खड़े करता है। लोग तो ये भी कह रहे हैं कि उमंग ने ये चिट्ठी खुद लिखी है कि बीजेपी में ही मामा के चाहने वालों ने लिखवाई है! क्योंकि 15 महीनों के कार्यकाल में उमंग को अपनी बुआ की यादों वाला बंगला याद नहीं आया।

यादव हो तो योग्य हो ही

मंत्रालय में ये जुमला चल पड़ा है कि आप यादव हो तो योग्य हो। दरअसल 2016 बैच के प्रमोटी आईएएस अफसर पीएन यादव को नागरिक आपूर्ति निगम का एमडी बनाए जाने के बाद सीनियर खासकर डायरेक्ट आईएएस अफसर नाराज हैं। क्योंकि अभी 2014 बैच के ही तीन आईएएस कलेक्टर नहीं बन पाए हैं और 2015 बैच के अफसर नई लिस्ट में कलेक्टरी का इंतजार कर रहे हैं। ऐसे में एक प्रमोटी जूनियर अफसर सीधे प्रदेश स्तर की पोस्ट पर पदस्थ हो गया। क्योंकि वो यादव है। हमारा तो मानना है कि जलने वाले तो जलते रहेंगे। सरकार को इसकी परवाह नहीं करना चाहिए। आखिर पीएन यादव ने सीएम के उच्च शिक्षा मंत्री रहते हुए ओएसडी रहकर जमकर सेवा जो की है, उसका इनाम तो मिलना ही चाहिए।

सुरा महकमा के पंडित जी की चर्चा

सुरा महकमे में विवादों में रहने वाले पंडित जी इन दिनों फिर हाईलाइट हो गए हैं। दरअसल विभाग से दीपाली रस्तोगी के जाते ही पंडित जी सक्रिय हो गए हैं। वे मंत्री के ओएसडी बनने की जुगाड़ में लग गए हैं। पंडित जी उज्जैन, धार, ग्वालियर, जबलपुर और भोपाल में सहायक आबकारी आयुक्त रहे हैं। अब पंडित जी नई बैटिंग करने की तैयारी में हैं। बहरहाल, इन पंडितजी को रोकने के लिए दूसरे अफसर लामबंद हो रहे हैं, क्योंकि सबको पता है कि पंडित जी मंत्री के यहां पदस्थ हो गए तो सबसे पहले विभाग के अफसरों के लिए ही गड्ढे खोदेंगे। तो कहिए फिर कि जीना इसी का नाम है।

लक्ष्मण के शब्द बाण

लक्ष्मण के शब्द बाण कांग्रेस को चुभ रहे हैं। जी हां, हम पूर्व विधायक लक्ष्मण सिंह की बात कर रहे हैं। लक्ष्मण ने हाल ही में कहा, ’कांग्रेस तय कर ले कि कार्यकर्ताओं से चलेगी या सत्ता के दलालों से’। इस बयान से बवाल मचा हुआ है। अपने भाई दिग्विजय सिंह के उलट लक्ष्मण ने ईवीएम की पैरवी की। बोले, हम असल में कर गलत रहे हैं और दोष ईवीएम को भी दे रहे हैं। लक्ष्मण ने दिग्विजय का नाम लिए बिना कहा कि उनका नाम बंटाधार रखा गया है। यह सुनने में मुझे बुरा लगता है।

कंगाल होती जा रही सरकार

नए वित्तीय वर्ष का बजट तैयार करने के लिए राज्य सरकार माथापच्ची कर रही है। इस बीच सरकार को विकास कार्यों के लिए बजट कम पड़ गया। ऐसे में अब फिर 2500 करोड़ रुपए का कर्ज लिया गया है। चालू वित्तीय वर्ष में सरकार 10 बार कर्ज ले चुकी है। कर्ज बढ़ते बढ़ते बजट से ज्यादा हो गया है। राज्य का बजट 3.14 लाख करोड़ का है, जबकि कर्ज 3.31 लाख करोड़ तक जा पहुंचा है। लगातार कर्ज लेने से बोझ और बढ़ रहा है।



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