लो जी, अब योगीराज बनाम मोहन राज...
हरीश दिवेकर@ Bhopal.
चिंता मत करो, बस अब भाई साहब मंत्री बन रहे हैं। भाजपा दफ्तर के आसपास चले जाओ तो हर नेता अपने बड़े नेताजी को मंत्री बनाने के लिए आतुर मिलता है। मजे की बात तो यह है कि अपनी बात को सही साबित करने के लिए वह तमाम तर्क भी देता है। हां, भाई फिलहाल तो ऐसे ही मुंह जुबानी भाजपा में 150 मंत्री हो गए हैं। क्योंकि मोदी है तो मुमकिन है। सभी विधायक इस आस में हैं कि उन्हें ही मंत्री बनाया जाएगा। बड़े भाई साहब से मेल- मुलाकातें चल रही हैं।
अब पूरा खेल मोहन को खुश करने का चल रहा है। उनकी तुलना यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से की जाने लगी है। यानी योगीराज बनाम मोहनराज...। नेता हों, अफसर हों या फिर दलाल...सब अपने अपने अंदाज में सीएम का 'खास' बनने की जुगत में हैं। सूत्रों के अनुसार, सीएम उज्जैन में कैबिनेट बैठक के बाद प्रशासनिक सर्जरी के लिए फाइल बुला सकते हैं। तो तैयार रहिए, साहब...
इधर, प्रदेश में कमल खिलने के बाद कमलनाथ ने पद छोड़ दिया है। जीतू पटवारी अगले पीसीसी चीफ होंगे। पक्की खबर यह है कि कमलनाथ ने 4 दिसंबर को ही इस्तीफा दे दिया था। अब सवाल यह है कि वे किस भूमिका में होंगे। इसी के साथ देश- प्रदेश में खबरें तो और भी हैं, पर आप तो सीधे नीचे उतर आइए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।
निजाम क्या बदला...
मध्यप्रदेश में निजाम क्या बदला, हवाओं का रुख भी बदल सा गया है। अभी तक एमपी की फिजा में सिर्फ हार्डकोर हिन्दुत्व की बातें भाषणों में दिखती थीं, जब से मोहन ने मुखिया की कुर्सी संभाली है, तब से हार्डकोर हिन्दुत्व भाषणों से निकलकर जमीन पर भी नजर आने लगा। कहते हैं न कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं। ऐसे ही संघ से दीक्षित मुखिया के आते ही विशेष वर्ग में सीधा संदेश चला गया है। बहरहाल, ये भय प्रदेश की आबोहवा के लिए कितना मुफीद होगा, ये आने वाला समय ही बताएगा।
सीनियर चिंता में, जूनियर उत्साह में
बीजेपी में जमाने से उल्टी बयार चल रही है। नेता हों या सरकारी- प्राईवेट कर्मचारी, सबको अपने- अपने संस्थान में सीनियरटी का लाभ मिलता है, जो जितना सीनियर, उसका उतना बड़ा कद, लेकिन अब बीजेपी ने नया फॉर्मूला लागू किया है कि यहां कोई सीनियर- जूनियर नहीं होगा। जूनियर में आगे जाने की काबिलियत है तो उसे सीनियर का बॉस बनाकर बैठा दिया जाएगा। आलाकमान के इस प्रयोग से सीनियर नेता चिंता में आ गए हैं। अब वो मंत्री बनने के लिए ये दावा करने से भी डरने लगे हैं कि वे इतनी बार के विधायक हैं या फिर लगातार चुनाव जीत रहे हैं। वहीं जूनियर उत्साह में हैं। बस उसका संघ से दीक्षित होना या संघ की परिपाटी को फॉलो करना जरूरी है। उसमें यदि ये गुण हैं तो प्रमोशन होना तय है।
भितरघातियों ने बदली अपनी चाल
चुनाव में अपने साथी को हराने के लिए भितरघात करने वाले नेताओं ने हालात देखकर चाल बदल ली। प्रदेश में मोदी की सुनामी देखने के बाद यही भितरघाती अपने साथी की जीत का जश्न मना रहे हैं, जिसे कल तक अंदरखाने में विरोध कर निपटाने में लगे हुए थे। इतना ही नहीं, संगठन के पदाधिकारियों और प्रदेश अध्यक्ष से मिलकर ये दावा भी ठोक रहे हैं कि उन्होंने अपने साथी को जिताने के लिए जी- तोड़ मेहनत की। भितरघातियों को ये नहीं पता कि संगठन पहले ही उनकी कुंडली तैयार कर चुका है, उन्हें रिटर्न गिफ्ट देने के लिए बस समय का इंतजार कर रहा है।
बुलेट से तेज चलता है साहब का दिमाग
प्रशासनिक मुखिया की दौड़ में शामिल एक साहब का दिमाग बुलेट ट्रेन से भी तेज चलता है। साहब मेहनती भी बहुत हैं। प्रदेश के मुखिया को खुश करने के लिए साहब न दिन देखते, न रात। अब देखिए न सरकारें बदलीं, निजाम बदला, लेकिन साहब का रुतबा कम नहीं हुआ। प्रदेश का जो मुखिया बना, साहब ने उनके हिसाब से प्रस्ताव तैयार कर सबसे पहला आदेश अपने विभाग का जारी करवाया। अब जलने वाले जलते हैं तो जलते रहें, साहब अपनी मंजिल पाने के लिए मछली की आंख पर फोकस किए हुए हैं।
ठाकुर के सिपहसालार बनते ही खुश हुए ब्यूरोक्रेट्स
ठाकुर वो भी मृदभाषी… वैसे देखा जाए तो ये दोनों शब्द एक- दूसरे के विरोधाभाषी माने जाते हैं। ठाकुर नाम लगते ही शख्सियत में ठसक आ जाती है, लेकिन ब्यूरोक्रेसी में एक ठाकुर साहब ऐसे भी हैं, जो हमेशा प्यार से बोलते ही नहीं, बल्कि सामने वाले का सम्मान भी दिल से करते हैं। प्रदेश के मुखिया ने इन ठाकुर साहब को अपना सिपहसालार क्या बनाया, ब्यूरोक्रेटस खुश हो गए। दरअसल, अब तक जो इस कुर्सी पर विराजमान थे, वो साहब बेहद रूखे थे। मिजाज भी ठीक नहीं था। इसके चलते ब्यूरोक्रेट्स मुखिया तक अपनी बात या नवाचार नहीं पहुंचा पाते थे, लेकिन अब ब्यूरोक्रेट्स इस बात को लेकर राहत की सांस ले रहे हैं कि नए मुखिया तक वे अपने नवाचार को पहुंचा सकते हैं, कम से कम उनकी बात सुनी और समझी जाएगी।
सेठजी को करोड़ों का टेंडर देना चाहते हैं साहब
एक बोर्ड के एमडी जबलपुर के सेठ को 500 करोड़ रुपए का टेंडर देना चाहते हैं। और सेठजी हैं कि टेंडर शर्तों को पूरा नहीं कर पा रहे। उधर एमडी हैं कि उनके लिए रास्ता निकालने में जुटे हुए हैं। एमडी साहब ने बोर्ड के धुंआधार बल्लेबाज को लगा रखा है, जो इस काम में माहिर माना जाता है। एमडी जब से बोर्ड में आए हैं, तब से यहां खेला चल रहा है। अंदरखानों की मानें तो एमडी का पूरा पुलिंदा अब नए मुख्यमंत्री तक पहुंचाने की तैयारी शुरू हो गई है। बस सेठजी को टेंडर देने का इंतजार हो रहा है। जैसे ही सेठजी की कंपनी को टेंडर मिला, वैसे ही एमडी का बहीखाता सीएम तक पहुंचा। हम आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सेठजी का जबलपुर और रीवा में बड़ा मॉल है। वे रियल एस्टेट के कारोबार में भी अच्छा- खासा दखल रखते हैं।
जस्टिस के नाम पर इंजीनियर की दादागीरी
ग्वालियर नगर निगम में एक इंजीनियर एक जस्टिस साहब के नाम पर दादागीरी कर रहे हैं। ये इंजीनियर ग्वालियर के कॉलोनाइजरों में भी अच्छा- खासा दखल रखते हैं। यही वजह है कि कई कालोनियों में इन्हें बेनाम पार्टनर बना रखा है। इंजीनियर का दबदबा इतना है कि निगम के आला अधिकारी चाहकर भी इनके खिलाफ आने वाली शिकायतों पर कार्यवाही नहीं कर पाते। अंदरखानों की मानें तो जस्टिस साहब को ये जानकारी नहीं है कि उनके नाम का इस्तेमाल कर इंजीनियर निगम अफसरों पर भारी दबाव बनाए हुए हैं। बहरहाल चाहने वाले अब पीछे लग गए हैं। जल्द ही जस्टिस साहब के पास बेनामी पत्र भेजकर इंजीनियर का खेला उजागर करेंगे।