साहब छोड़िए शिकायत शुक्रिया अदा कीजिए...और नए साल में नए काम कीजिए
हरीश दिवेकर @ BHOPAL
अब भी चाहत है कि खुश रहें दुश्मन मेरे
कदम धीमे जरूर हैं, मगर खयालात वही।
लो जी, साल के 365 दिन बीत गए। प्रदेश में कुछ अच्छा, कुछ बुरा घटा। राजनीति में किसी का कद बढ़ा तो कोई गुमनाम सा हो गया। खैर, अब बीत गया जो साल उसे भूल जाइए और इस नए साल को गले लगाइए। सियासी घटनाक्रम भी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। एमपी में मंत्रियों को विभागों का बंटवारा होने के बाद अब काम पटरी पर आएगा। मंत्रालय में फाइलें फिर दौड़ने लगेंगी। पूरी जमावट लोकसभा चुनाव के हिसाब से होगी।
डॉक्टर साहब ने जब से मुखिया की कुर्सी संभाली है, तब से वे बस ऑपरेशन क्लीन में लगे हैं। पद पर आने के बाद उन्होंने एक ही नियुक्ति की है, लेकिन बड़े- बड़े दिग्गजों को लूप लाइन में भेजकर सख्त संदेश दे दिया कि अब उनके हिसाब से ही काम होगा।
कांग्रेस नए साल में फिर खड़े होने की कोशिश में है। कांग्रेस के नए कप्तान जीतू पटवारी पूरी ताकत से 'सेना' को एकजुट करने में जुट गए हैं। अफसरों का अलग ही दर्द है साहब। नए साल में वे सैर पर नहीं जा पाए। मंत्रालय में कमरा नंबर 507 की लड़ाई चल रही है।
देश- प्रदेश में खबरें तो और भी हैं, पर आप तो सीधे नीचे उतर आइए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।
फॉर्म में चल रहे हैं डॉक्टर साहब
पुराने मुखिया के साथ पुरानी रवायतें खत्म हो गई हैं। डॉक्टर साहब की मुरली के सुर बाहर आने लगे हैं। खाकी वाले साहब अब तक जो एसी कमरों में बैठकर जुगाली करते रहते थे, वे अब थानों की खाक छानकर जनहितैषी दिखने की कोशिश में लगे हैं। वहीं, कल तक जो अफसर शिव स्रोत का जाप करते नजर आते थे, आज वे मुरली मनोहर के गीत गा रहे हैं। ये पॉवर का खेल है बाबू...इसमें बने रहने के लिए मंत्र-जाप समय के हिसाब से बदलते रहते हैं।
धरा रह गया नए साल का एन्जॉय
सूबे में निजाम क्या बदला, अफसरों के नए साल का एन्जॉय भी धरा रह गया। दरअसल, हर दिसंबर में प्रदेश के अधिकतर आईएएस, आईपीएस और आईएफएस नया साल मनाने निकल लेते हैं। कोई विदेश जाता है तो कोई पहाड़ों में सैर- सपाटा करता है। हर साल की तरह इस बार भी कई अफसरों ने टूर एंड ट्रैवल्स की एडवांस बुकिंग करवा दी थी। डॉक्टर साहब के एक्शन मोड को देखते हुए अफसरों ने चुपचाप अपनी बुकिंग कैंसिल करवा ली। उन्हें डर है कि इधर नया साल मनाने निकले, उधर उनकी मलाई वाले पद की कुर्सी खिसक गई तो क्या होगा! अब सब अफसर अपने हिसाब से मैनेजमेंट करने की जुगाड़ में लग गए हैं।
वो कमरा नंबर 507...
मंत्रालय की पांचवीं मंजिल का कमरा नंबर बी-507 भारी डिमांड में है। इस कमरे का इतिहास ही कुछ ऐसा है कि जो भी इसमें बैठा वो मुख्यमंत्री का आंख- नाक- कान माना गया। सबसे पहले इस कमरे में प्रवीण कक्कड़ बैठे थे। सरकार गिरने के बाद शिवराज सरकार में ये कमरा मिला नीरज वशिष्ठ को। अब मुख्यमंत्री मोहन यादव हैं, ऐसे में इस कमरे में बैठने वालों में खींचतान मच गई है। संघ और मुख्यमंत्री के करीबियों ने इस कमरे में बैठने की जुगत लगाना शुरू कर दी है। ये कमरा किसे मिलेगा, ये तो मुख्यमंत्री और उनके प्रमुख सचिव तय करेंगे, लेकिन ये तय मान लीजिए कि जिसे भी मिलेगा वो मुख्यमंत्री का आंख- नाक और कान ही होगा।
समधी के कारण बच गए ठाकुर साहब
दो विभागों की जिम्मेदारी संभाल रहे प्रमुख सचिव को एक दिन पहले सुबह अचानक हटा दिया गया। केवल हटाया ही नहीं, उन्हें सजा के रूप में ग्वालियर राजस्व मंडल में पदस्थ भी कर दिया। वजह तलाशी गई तो पता चला कि इन साहब ने पहले की सरकार में लाल- फीताशाही दिखाकर डॉक्टर साहब को नियम कायदे बताकर उनके काम अटकाए थे। इनके साथ इनके जूनियर साथी ठाकुर साहब भी थे, जो एक संस्था के कमिश्नर हैं। दोनों ने डॉक्टर साहब के कामों की जलेबी बनाकर परेशान किया था। डॉक्टर साहब पावर में आते ही इन पर निगाह रखे हुए थे। एक मामले में प्रमुख सचिव को तो चलता कर दिया, लेकिन कमिश्नर साहब बच गए। बताते हैं कि कमिश्नर साहब के समधी बड़े न्यायाधीश हैं, दिल्ली तक इनकी पैठ है। अब लोग कहते फिर रहे हैं कि समधी के कारण बच गए ठाकुर साहब।
नया प्रशासनिक मुखिया कौन
मंत्रालय ही नहीं पुलिस मुख्यालय, वन मुख्यालय से लेकर मैदानी प्रशासनिक अमला भी जानना चाहता है कि आखिर हमारा नया प्रशासनिक मुखिया कौन होगा। अभी मैडम इस हॉट सीट को संभाल रही हैं, लेकिन वे मानसिक रूप से तैयार हैं कि कभी भी नए मुखिया का आदेश जारी हो सकता है। नया मुखिया दिल्ली से आएगा या फिर डॉक्टर साहब प्रदेश के नव रत्नों में से ही किसी को इस हॉट सीट पर बैठाएंगे, यह सस्पेंस बना हुआ है। दिल्ली वाले साहब के नाम से गाहे बगाहे इतनी खबरें छप गईं कि साहब भी खुद समझ नहीं पा रहे कि ये उनके लिए बेहतर है या उन्हें साइड लाइन करने के लिए प्री-पब्लिसिटी करवाई जा रही है।
नेता जी की इज्जत का सवाल था
जिसका अंदाजा था, आखिर वही हुआ। एक नेताजी मंत्री बनने की चाह लिए अपने 'भाईसाहब' से मिले। बोले, इज्जत का सवाल है बस मंत्री बनवा दो। विभाग जो चाहे मिल जाए, उसकी परवाह नहीं है। 'भाईसाहब' की हां के बाद नेता जी मंत्री तो बन गए, लेकिन विभाग 'जो चाहे' ही मिला। खैर, अंत भला तो सब भला। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ये नेता जी एक केंद्रीय मंत्री के बड़े खास हैं।
अब प्रशासनिक जमावट की तैयारी
मंत्रियों को विभाग आवंटन के साथ ही अब डॉक्टर साहब की टीम तैयार हो गई है। जल्द ही प्रशासनिक जमावट का दौर भी शुरू होने वाला है। पक्की खबर है कि करीब एक दर्जन से ज्यादा जिलों के अफसरान बदले जाएंगे। इनकी पहली सूची तैयार भी हो गई है। मंत्रियों के हिसाब से कुछ बदलाव हो सकते हैं। मंत्रालय में भी फेरबदल होंगे।
योगी बनाम मोहन की चर्चा
डॉक्टर साहब के कमान संभालने के बाद एमपी में भी यूपी फॉर्मूला की खूब चर्चा हो रही है। पहले दो डिप्टी सीएम। फिर योगी की तर्ज पर लाउड स्पीकर का आदेश आया और अब सीएम डॉ. मोहन यादव ने अपने पास गृह विभाग जैसा महत्वपूर्ण विभाग रखा है। माना जाता है कि यूपी में अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए योगी ने गृह विभाग अपने पास रखा है। अब एमपी में भाजपा सरकारों के कार्यकाल में यह पहली बार है जब गृह विभाग मुख्यमंत्री ने अपने पास रखा है।