हर साल 30 हजार लोगों की जान ले रहा कैंसर, ट्रीटमेंट की कमी भी बन रही मौत की वजह, मेल से ज्यादा फीमेल हो रही शिकार

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Pooja Kumari
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हर साल 30 हजार लोगों की जान ले रहा कैंसर, ट्रीटमेंट की कमी भी बन रही मौत की वजह, मेल से ज्यादा फीमेल हो रही शिकार

संजय शर्मा, BHOPAL. कैंसर वह मर्ज है जिसका नाम सुनते ही शरीर में सिहरन दौड़ जाती है। प्रदेश में कैंसर से होने वाली मौतों का सालाना आंकड़ा 30 हजार तक पहुंच रहा है। साल 2023 में इंदौर के एमवाय हॉस्पिटल में ही 11 हजार से ज्यादा कैंसर पेशेंट ट्रीटमेंट के लिए पहुंचे थे, जिन्हें भर्ती किया गया जबकि 3500 मरीज ओपीडी से ही लौट गए। हर साल बढ़ती कैंसर पेशेंट की यह संख्या और मौतों का आंकड़ा चिंता में डालने वाला है। इस बीमारी की गिरफ्त में आने वाले मरीज को महंगे इलाज और ट्रीटमेंट के दौरान जो कष्ट झेलना पड़ता है, वह देख और सुनकर ही हालत खराब हो जाती है। लेकिन कैंसर लाइलाज नहीं बल्कि इसका उपचार संभव है। जरुरत है तो बस समय रहते जांच और ट्रीटमेंट कराने की। अक्सर लोग कैंसर का पता चलते ही घबरा जाते हैं और समय रहते डॉक्टर से ट्रीटमेंट नहीं कराते और ये डिसीज जानलेवा बन जाती है। वर्ल्ड कैंसर डे पर हम आपको बता रहे है की प्रदेश में कैंसर की क्या स्थिति है और समय रहते ट्रीटमेंट लेने से इस डिसीज को कैसे मात दी जा सकती है।

प्रदेश में कैंसर की बीमारी कितनी तेजी से फैल रही है

प्रदेश में कैंसर की बीमारी कितनी तेजी से फैल रही है इसे प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग द्वारा बीते साल भेजी गई रिपोर्ट में दर्ज देता से समझा जा सकता है। कैंसर की चपेट में आने वाले मरीजों में मेल से ज्यादा संख्या फीमेल पेशेंटों की है। सेंट्रल गवर्नमेंट को भेजी गई रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में हर साल 3500 से 4000 कैंसर पेशेंट की डेथ हो रही है। रिपोर्ट कहती है की प्रदेश में हर महीने तीन से चार हजार मरीज कैंसर की चपेट में आकर जान गंवा रहे हैं। जबकि हर साल इससे कहीं ज्यादा लोग कैंसर की गिरफ्त में आ रहे है। कैंसर पेशेंटों का आंकड़ा इतना बड़ा होने के बाद भी प्रदेश में इस बीमारी के ट्रीटमेंट के पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं।

मेडिकल कॉलेजों में नहीं कैंसर ट्रीटमेंट की सुविधा

मध्यप्रदेश में केवल तीन मेडिकल कॉलेजों में ही कैंसर ट्रीटमेंट की सुविधा उपलब्ध है। इंदौर के अलावा ग्वालियर और जबलपुर में ही मरीज कैंसर का इलाज करा पा रहे हैं। जबकि राजधानी भोपाल के जीएमसी में ही कैंसर ट्रीटमेंट नहीं होता। भोपाल के जवाहरलाल नेहरू कैंसर हॉस्पिटल में भी कैंसर स्पेशलिस्ट सर्जन की कमी है। इस वजह से यहां प्रदेश के अलग - अलग जिलों से आने वाले मरीजों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और कई बार तो बिना इलाज के ही वापस लौटने मजबूर हो जाते हैं।

डराने वाला है कैंसर के फैलते जाल का दायरा

स्वास्थ्य विभाग के डेटा के मुताबिक साल 2018 से 2020 के बीच तीन साल में मध्यप्रदेश में कैंसर के करीब सवा 2 लाख से ज्यादा मरीजों का पता लगा था। समय पर बीमारी का पता नहीं लगने, ट्रीटमेंट नहीं करा पाने के कारण इनमें से आधे से ज्यादा यानी सवा लाख पेशेंटों की जान चली गई थी। कैंसर से मरने वालों का यह डेटा इतना बड़ा है जिसे देखकर माथे पर चिंता की रेखाएं उभर आती हैं। साल 2018 में कैंसर से 40 हजार, 2019 में 41 हजार और साल 2020 में 42 हजार से ज्यादा पेशेंटों की मौत हुई है।

महिलाओं में तेजी से फैल रहा कैंसर का मर्ज

मध्यप्रदेश में कैंसर पेशेंटों में मेल से ज्यादा संख्या फीमेल मरीजों की है। महिलाओं में सबसे ज्यादा ओबेरियन कैंसर (बच्चादानी का कैंसर), ब्रेस्ट कैंसर, सर्बिकल कैंसर बढ़ रहे हैं। इन कैंसर डिसीज से हर साल करीब पांच हजार मरीजों की मौतें हो रही है। पिछले दो सालों में महिलाओं के साथ ही टीनएजर भी कैंसर की गिरफ्त में आ रही हैं।

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