GWALIOR. दिव्यांगता के आधार पर नौकरी हासिल करने वाले सभी अभ्यर्थियों की दोबारा मेडिकल बोर्ड में जांच होगी। हाईकोर्ट ने आदेश जारी कर कहा कि सभी दिव्यांगता प्रमाण पत्र की जांच कराए। अगर जरूरत पड़े तो वह पुलिस की भी मदद ले सकते है। अब सभी दिव्यांग अधिकारी और कर्मचारियों को कराना होगा।
जांच के लिए पुलिस की भी ले सकते है मदद
दरअसल जस्टिस मिलिंग रमेश फड़के ने ग्वालियर में रहने वाले धर्मेंद्र रावत की याचिका को खारिज कर दिया है। जस्टिस ने कहा कि आयुक्त लोक शिक्षण संचालनालय का आदेश न्यायहित में है। जांच करना जरूरी है, स्पेशलवी उनके लिए जो वास्तविक रूप से दिव्यांग हैं। सरकार के लिए जरूरी है कि वह दिव्यांगता प्रमाण पत्र द्वारा हासिल हुई नौकरी वाले अभ्यर्थियों की डिटेल में जांच कराएं। इसमें वह पुलिस की भी मदद ले सकते है।
कोर्ट ने किया याचिका को खारिज
बता दें, आयुक्त लोक शिक्षण संचालनालय की आयुक्त अनुभा श्रीवास्तव ने 13 जून को एक आदेश जारी किया था। इसे चुनौती देते हुए धर्मेंद्र ने हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच में याचिका दायर की थी। धर्मेंद्र ने कहा था कि 16 दिसंबर 2019 को ग्वालियर की मेडिल अथॉरिटी ने दिव्यांगता प्रमाण पत्र जारी किया। एक बार नियुक्ति होने के बाद कानून में दिव्यांगता प्रमाण पत्र को पुन: जांचने या फिर मेडिकल बोर्ड के समक्ष टेस्ट देने का प्रावधान नहीं है। कोर्ट को बताया गया कि याचिकाकर्ता का विदिशा जिले के ब्लॉक लटेरी शिक्षक के पद पर सिलेक्शन हुआ है। अतिरिक्त महाधिवक्ता विवेक खेडकर ने मुरैना में हुए फर्जीवाड़े की जानकारी दी। बताया गया कि लगभग 75 लोगों के खिलाफ फर्जी दिव्यांगता प्रमाण पत्र मामले में एफआईआर दर्ज कराई गई है। सभी पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।