भइया का गुस्सा, लेकिन वक्त और हालात..
सब ठीक ठाक मसला हो लिया था, कर्नाटक में सरकार बदली और केस से शेड्यूल अफेंस हट गया। भइया बयान भी दे दिए कि जब मेन मसला खत्म तो बचत कार्रवाई का लेना देना नहीं। लेकिन तू डाल डाल तो मैं पात पात का खेल हो गया। भइया जोर गुस्साए तो हैं, लेकिन अब अभी क्या ही करें ? वैसे ये सब जानते हैं हमाए भइया का मतलब ‘धम धम धम धड़ैया रे, सबसे बड़े लड़ैया रे’, लेकिन वक्त और हालात भी तो कोई चीज है, गोविंदा जी ने फिलिम में इसे यूं ही थोड़ी कहा था।
आईजी के साथ तीन एसपी के बदलाव करीब-करीब तय
भइया की सरकार को लेकर विरोधी मौज लेते हैं कि आखिर में फैसला कौन लेता है, यह समझ नहीं आता। इसलिए जब तक मामला हो ना जाए, तब तक कुछ भी फाइनल समझने का कोई मतलब नहीं। अब जैसे कि यह समां बंधा है कि जल्द ही रेंज में आईजी और जिलों में कुछ एसपी बदले जाने तय हैं। रेंज आईजी का मसला तो खैर चुनावी है क्योंकि यदि आईजी स्तर के अधिकारी मौजूद हैं तो इलेक्शन कमीशन सीधा सवाल कर देगा कि फुल फ्लैश है तो पोस्टिंग क्यों नहीं? लेकिन एसपी के तबादलों को लेकर संकेत हैं कि यह विशुद्ध भइया की सरकार का मसला है। लेकिन वही है कि भइया की सरकार में जब तक कुछ हो ना जाए तब तक सब कल्पना मानिए और हो जाए तो भी यह तय मानिए कि अंतिम आदेश जब तक सार्वजनिक ना हो, तब भी आखिरी क्षण में नाम जुड़ जाते हैं या नाम हट जाते हैं। कुल जमा मसला यही है कि इत्मीनान से बैठ कर लिस्ट का इंतजार करिए।
ए दे ले
पीएससी मसले को लेकर शाह जी अपने भाषण में बोल गए घोटाला है। अब इसे लेकर भइया के विरोधी दल के फायर ब्रांड लीडर फिर मौज ले रहे हैं। इन नेताजी को पुलिस साहब बुला कर बयान लिया और नेताजी ने बयान ऐसा थमाया कि नकल भी नहीं मिल रही। अब वही युवा नेता पूछ रहा है- हम घोटाला लिखे तो बयान के लिए बुलाए साहब.. अब देश का गृह मंत्री बोल के गया है तो उसे भी बुलाएंगे क्या बयान के लिए? बयान का कॉपी नई भेंटाने को लेकर भी फायर ब्रांड लीडर ने बोला है - ‘थाना के दुरा मा धरना धरे वाला हो, मोला देत नई हे मोर कॉपी।’
आदिवासी नाराज, सतनामी नाराज, साहू नाराज.. अब यादव समाज भी क्रोध में?
बिलासपुर के डॉ. सोमनाथ यादव बहुते जोर रिसाए हैं। उनका ग़ुस्सा व्यापम के उस सवाल पर है जिसमें यादव समाज के जातीय नृत्य को इस रूप में पूछा गया कि राउत नाचा किस प्रदेश के आदिवासी समुदाय का नृत्य है। सोमनाथ भैया गुस्सा गए हैं और यादवी संस्कृति का अपमान बताकर जवाब मांग रहे हैं। सोमनाथ भैया अभाविप के खांटी कार्यकर्ता रहे हैं। इधर, इस मसले पर अपने वाले “भइया” को देखना चाहिए, आदिवासी नाराज, सतनामी नाराज, साहू नाराज अब यादव समाज भी क्रोध में ना आ जाए।
डॉक्टर साहब और अरुण भैया का जलवा, नो डाउट
शनिचरी डॉक्टर साहब का माहौल फुल टाइट है। डॉक्टर साहब बीजेपी के नंबर टू अमित शाह जी के दौरे में जिस तरह जलवा फरोश हुए वह उनके पार्टी के भीतर उनका रिटायरमेंट सोच रहे लोगों के लिए तुषारापात ही है। सभा में शाह जी के भाषण में भी डॉक्टर साहब छाए रहे। जलवा अरुण भईया का भी मुकम्मल था। शाह जी के साथ पूरी कदमताल।बहुत सी परेशानी से ग़ुस्सा गोसाईं मोड में चल रहे भईया को भी यह दिखा होगा, और ज़ोर ग़ुस्साए होंगे, लेकिन वही वक्त और हालात का मसला है।
मोहन भइया का स्लिप में कैच, मसला थर्ड अंपायर को
अपने मोहन भइया स्लिप में कैच हो गए हैं। उन्होंने पीसीसी की टॉप टीम में बदलाव कर दिया। ये बदलाव हुआ और भूपेश भइया फिर रिसा गए। दिल्ली से दीदी आईं तो फिर से मोहन भइया की शिकवा शिकायत हुई। दीदी ने चिट्ठी जारी की और कहा चलो सब लिस्ट कैंसिल और रवि दादा को फुल वॉल्यूम पोस्टिंग दे डालो। मोहन भइया तो मोहन भइया ठहरे, बोले- कि हां बोलीं तो हैं, देखते हैं। मोहन भइया का ये कहना था कि छोटे बयान का बड़ा तिरपाल तन गया। आनन-फानन में देर शाम फिर खबरनवीसों को बुलाया गया। उसमें मोहन भइया ने साफ-साफ कहा कि जो दीदी बोली हैं, अक्षरशः पालन होगा। लेकिन तब तक दीदी तक मसाले के साथ मामला पहुंचा दिया गया। बताने वालों का मानना है कि इस बार मोहन भइया स्लिप में कैच आउट ही थे, लेकिन आखिरी वक्त में जो मैनेजमेंट हुआ, उससे शायद मसला फिर संभल जाए। बहरहाल मामला यही है कि एक पक्ष कह रहा है, स्लिप में साफ कैच है, मोहन भइया आउट हैं, क्रीज से बाहर करो। दूसरा खेमा कह रहा है कि गेंद बैट से टकराई ही नहीं थी। दूसरा खेमा फिलहाल इतना तो सफल हुआ कि तुरंत आउट के मसले को थर्ड अंपायर तक पहुंचा गया है। अब तो रीप्ले से साफ होगा कि गेंद बल्ले को टच की थी या नहीं।
साढ़े चार साल... ये टेक्नीक क्यों नहीं थी?
दीदी आईं और फिर बैठक हुई। बैठक को लेकर खबरें हैं कि भइया ने बोला, जो सबकी राय, वो ही मेरी राय है। तय करें, जो जैसा, मैं वैसा ही करूंगा। लेकिन मीटिंग खत्म हुई तो बैठक में मौजूद एक सीनियर लीडर की टिप्पणी आई- ये बीते साढ़े चार ऐसी वाली टेक्नीक क्यों नहीं थी? हर इलाके में अपना आदमी अपने लोग को फिट कर क्षत्रपों को डिस्टर्ब करने का आइडिया किसका था और इंप्लीमेंट कौन कराता था? बताने वाले बताते हैं कि दीदी को भी इन मासूम जिज्ञासाओं से अवगत कराया गया है।
...तो घोषणा पत्र समिति में मोहम्मद अकबर?
किस्सेबाजों का छोड़ा किस्सा है कि दीदी वाली बैठक में चुनाव समितियों पर भी चर्चा हुई। समितियों की चर्चा हुई तो एक सीनियर ने चिर परिचित तरीके से हाथ जोड़ लिए। शांत सरल सहज और असीम धैर्य के साथ सियासत में बेहद पगे इस सीनियर ने ही प्रस्ताव दे दिया कि घोषणा पत्र समिति अकबर भाई देख लें। बाकी समिति में भी नए लोगों को मौका मिले। ये सब भइया चुपचाप देख रहे थे, क्योंकि वही वक्त और हालात का मसला। सयानी दीदी इस विनम्रता से इनकार के दूर तक के मायने साफ समझ गई होंगी।
अजय भैया गजबे बाण मार रहे हैं
अजय भैया याने डाला भैया के ट्वीट रोज बुमाबूम चल रहे हैं। और हर ट्वीट पर सीधे ‘भइया’ से सवाल चाहे सलाह। अब एक सलाह अपने अजय भैया ने दी है, बोले कि कांग्रेस प्रशिक्षण में विशेषज्ञ भाषण ऐसा भी हो कि हर कार्यकर्ता जान सके कि अनवर कैसे बनें, ये भी कि एजाज हो। डाला भैया ने अनवर और एजाज का मतलब भी लिखा है। अनवर मतलब भगवान को समर्पित अधिक उज्ज्वल और एजाज मतलब चमत्कार। लेकिन केवल ‘भइया’ ही नहीं बल्कि सब समझ रहे हैं कि अजय भैया कहां बाण मार रहे हैं।
शौक-ए-दीरार है तो नज़र पैदा कर
ये तस्वीरें एक ही विधानसभा से है। बताने वाले बता रहे हैं कि ठेला भर के नाम और भी हैं, सब दीवार पोते पड़े हैं। ये अंबिकापुर विधानसभा की दीवारों का किस्सा है। लग रहा है टीएस सिंहदेव के चुनाव लड़ेंगे, नहीं लड़ेंगे, सोचेंगे वाले बयान को बेहद सीरियस ले लिए हैं।
सुनो भई साधो
- डीआईजी रेंज से हटेंगे वाली खबर पर खुश होने वाले रेंज वालों को क्या गंभीर चिंतित होना चाहिए, क्यों कह रहे हैं आने वाले का नाम जान जाओगे तो बुखार धर लेगा?