जगन्नाथपुरी से जुड़ा है बस्तर गोंचा पर्व का इतिहास, 617 साल से मनाया जा रहा गोंचा पर्व

बस्तर में आज से गोंचा पर्व की शुरुआत हो रही है। जगदलपुर के जगन्नाथ मंदिर में चंदन जात्रा विधान से इसकी शुरुआत होगी। इसके बाद 26 दिनों तक रथ परिक्रमा समेत अलग-अलग विधान किए जाएंगे...

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Deeksha Nandini Mehra
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 बस्तर में गोंचा पर्व
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Bastar Gocha Festival 2024 : छत्तीसगढ़ के बस्तर में आज से गोंचा पर्व की शुरुआत हो रही है। इस पर्व को बस्तरवासियों द्वारा बड़े हर्ष और उल्लास से मनाया जाता है। इस पर्व को यहां लगभग 617 साल से लगातार मनाया जा रहा है। माना जाता है कि बस्तर गोंचा पर्व का इतिहास ओडिशा के जगन्नाथपुरी से जुड़ा हुआ है। आइए इस स्टोरी में जानते हैं बस्तर की सबसे पुरानी पाराम्परिक परंपरा के बारे में...

जगन्नाथपुरी से बस्तर कैसे आई ये परंपरा 

615 साल पहले बस्तर के तत्कालीन महाराजा पुरुषोत्तम देव बस्तर से पदयात्रा करके जगन्नाथपुरी गए थे। तब पुरी के तत्कालीन महाराजा गजपति द्वारा बस्तर के राजा को रथपति की उपाधी दी गई थी। 

महाराजा पुरुषोत्तम देव को उनकी भक्ति के फलस्वरूप देवी सुभद्रा का विशालकाय रथ दिया गया था। प्राचीन समय में बस्तर के महाराजा रथ यात्रा के दौरान इस रथ पर सवार होते थे। तब से ही बस्तर में यह पर्व पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता रहा है।

पंरपरानुसार रथयात्रा के बाद भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा और बलभद्र को अपने साथ गुंडेचा मंदिर (जनकपुरी ) ले जाकर सात दिनों तक वहां विश्राम करते है। बस्तर के राजकुमार कमलचंद भंजदेव आज भी इस रथयात्रा से पूर्व भगवान जगन्नाथ की पूजा पूरे विधि-विधान से करते हैं।

बस्तर गोंचा पर्व का इतिहास

बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव ने बताया कि साल 1400 में महाराज पुरुषोत्तम देव जगन्नाथ पुरी से भगवान जगन्नाथ की मूर्तियां लेकर आए थे। 

इनको जगदलपुर के जगन्नाथ मंदिर में स्थापित किया गया। इसके बाद से ही जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर यहां भी रथ यात्रा निकाली जाती है। इस दौरान प्रभु जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र रथ पर भ्रमण के लिए निकलते है और  शहरवासियों द्वारा इनकी पूजा की जाती है। 

राजा और यहां के माटी पुजारी होने के नाते कमलचंद भंजदेव चांदी के झाड़ू से छेरा पोरा रस्म अदा करते हैं। जगन्नाथपुरी में सोने के झाड़ू से इस रस्म की अदायगी के बाद ही बस्तर में यह रस्म अदा की जाती है।

जगदलपुर के जगन्नाथ मंदिर में सारी तैयारियां कर ली गईं हैं।

16 पहियों वाले रथ के किये तीन हिस्से 

बस्तरवासियों ने बताया कि बस्तर के महाराजा पुरुषोत्तम देव श्री कृष्ण के भक्त थे। जगन्नाथपुरी से उन्हें रथपति की उपाधि देकर 16 पहियों वाला रथ प्रदान किया गया था।

उन दिनों बस्तर की सड़कें इतनी अच्छी नहीं थीं कि 16 पहियों वाला रथ आसानी से खींचा जा सके। इसलिए सुविधा अनुसार 16 पहिए वाले रथ को तीन हिस्सों में बांटा गया था।

चार पहिया वाला पहला रथ गोंचा के अवसर पर खींचा जाता है। चार पहियों वाला दूसरा रथ बस्तर दशहरा में फूल रथ के नाम से 6 दिनों तक खींचा जाता है और 8 पहियों वाला तीसरा रथ भीतर और बाहर रैनी के दिन खींचा जाता है।

7 जुलाई को रथ परिक्रमा होगी।

आज से शुरू होगा ये पर्व 

बस्तर में शनिवार 22 जून से प्रसिद्ध गोंचा पर्व शुरू हो रहा है। जगदलपुर के जगन्नाथ मंदिर में चंदन जात्रा विधान किया जाएगा। 26 दिनों तक रथ परिक्रमा समेत अलग-अलग विधान किए जाएंगे। Jagannath Rath Yatra

जगन्नाथ मंदिर में बनाए गए मुक्ति मंडप में देव विग्रहों को अनसर काल के दौरान यहां रखा जाएगा। भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र के 22 विग्रह को रखेंगे।  Gocha Festival History

तुपकी से दी जाएगी सलामी

गोंचा पर्व पर जिस दिन रथ परिक्रमा होगी, उस दिन बस्तर में रथ को तुपकी से सलामी दी जाती है। यह परंपरा सिर्फ बस्तर में ही निभाई जाती है। इस अनोखी परंपरा को देखने के लिए भारत देश के अलावा विदेशों से भी पर्यटक बस्तर पहुंचते हैं।

गोंचा पर्व में तुपकी का भी एक अलग महत्व है। गर्मी के बाद जब बारिश का मौसम आता है तो कई तरह की बीमारियां होती है। तुपकी में जिस पेंग का इस्तेमाल किया जाता है, वह एक औषधि मानी जाती है। उसकी महक लाभदायक होती है। पेंग की सब्जियां भी बनाई जाती है।

इस दिन होंगे ये विधि-विधान

  • 22 जून को देव स्नान पूर्णिमा चंदन जात्रा विधान।
  • 23 जून को जगन्नाथ भगवान का अनसर काल प्रारंभ।
  • 6 जुलाई को नेत्रोत्सव विधान
  • 7 जुलाई को गोंचा रथ यात्रा
  • 10 जुलाई को अखंड रामायण पाठ
  • 11 जुलाई को हेरा पंचमी
  • 12 जुलाई को 56 भोग अर्पण
  • 17 जुलाई को सामूहिक उपनयन संस्कार
  • 15 जुलाई को बाहुड़ा गोंचा
  • 17 जुलाई को देवशयनी एकादशी

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