बस्तर में शांति... जहां कभी गोलियों की गूंज थी, अब सुनाई देती है विकास की गूंज

बस्तर, जो कभी नक्सलवाद का केंद्र था, अब विकास का प्रतीक बन चुका है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में नक्सलमुक्त बस्तर अब प्रशासनिक दृष्टि से शांतिपूर्ण क्षेत्र है। केंद्र सरकार ने इसे एलडब्ल्यूई जिलों की सूची से हटा दिया है।

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The Sootr
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Photograph: (The Sootr)

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RAIPUR. कभी लाल आतंक की पहचान बन चुके छत्तीसगढ़ के बस्तर को अब नया नाम मिल गया है...विकास का बस्तर। केंद्र सरकार ने ऐतिहासिक घोषणा करते हुए बस्तर को नक्सलमुक्त घोषित कर दिया है। यह सिर्फ प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि सालों के संघर्ष, दूरदर्शिता और विकास की ठोस नीति का परिणाम है। इस पूरे परिवर्तन के केंद्र में हैं मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, जिनके नेतृत्व और नियद नेल्लानार योजना जैसे विजनरी प्रयासों ने इस बदलाव को संभव बनाया।

1980 के दशक से नक्सल आंदोलन का केंद्र रहे बस्तर में आज हालात पूरी तरह बदल चुके हैं। कोलेंग, तुलसीडोंगरी, दरभा की घाटी जैसी जगहें, जहां पहले फोर्स का पहुंचना तक नामुमकिन था, अब वहां पुलिस कैंप, सड़क, मोबाइल टॉवर और स्कूलों की मौजूदगी सामान्य हो गई है। केंद्र सरकार ने बस्तर को एलडब्ल्यूई (लेफ्ट विंग एक्स्ट्रीमिज्म) जिलों की सूची से हटा दिया है और विशेष सहायता बंद कर दी है। यह इस बात का प्रमाण है कि अब यहां शांति स्थायी हो चुकी है।

नियद नेल्लानार योजना बस्तर के पुनर्जन्म की धुरी

नियद नेल्लानार योजना के तहत ग्राम आलपरस में मूल्यांकन शिविर का हुआ आयोजन। –  Khabren Aapki

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय द्वारा लागू की गई नियद नेल्लानार योजना ने बस्तर में सुशासन की नींव रखी है। आपका आदर्श गांव की भावना से शुरू हुई इस योजना का उद्देश्य था कि जहां कभी बंदूक की आवाज आती थी, वहां अब स्कूल की घंटी सुनाई दे। 

इस योजना के तहत बस्तर के सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर और कांकेर जिलों में स्थित 55 सुरक्षा कैंपों के 10 किलोमीटर क्षेत्र में आने वाले 328 गांवों को विकास की मुख्यधारा में जोड़ा गया है। इन गांवों में 16 विभागों के समन्वय से 25 व्यक्तिमूलक योजनाएं और 18 सामुदायिक सुविधाएं पहुंचाई जा रही हैं।

अब गांजा नहीं, सब्जियां उग रहीं

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बस्तर-ओडिशा सीमा पर जहां पहले नक्सली गांजा की खेती करवाते थे, वहां अब कृषि और बागवानी के जरिये आदिवासी खुशहाल जीवन जी रहे हैं। सब्जियां, धान और फलदार पेड़ उगाकर ग्रामीण आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं। यह बदलाव सिर्फ आर्थिक नहीं, सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का संकेत है। 

शिक्षा और स्वास्थ्य की लौ जलने लगी है। बीते दो वर्षों में बंद पड़े 41 स्कूल फिर से खोले गए। अबूझमाड़, सुकमा, बीजापुर में शिक्षा के प्रति उत्साह बढ़ा है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य शिविर, टीकाकरण, पोषण आहार वितरण नियमित रूप से हो रहे हैं। महतारी वंदन योजना, पेंशन, प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी सुविधाएं अब हर घर तक पहुंच रही हैं। 

सुरक्षा और विश्वास का नया रिश्ता

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बस्तर में सुरक्षा कैंप अब डर का नहीं, भरोसे का केंद्र बन गए हैं। पुलिस और सुरक्षा बलों ने गांववालों से रिश्ता बनाया है...सुनते हैं, मदद करते हैं और सुरक्षा देते हैं। आदिवासी समुदाय का भी रवैया बदला है, वे अब शासन के साथ चलना चाहते हैं, क्योंकि शासन अब उनके दरवाजे तक पहुंचा है।

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय कहते हैं, नियद नेल्लानार योजना न सिर्फ एक प्रशासनिक पहल है, बल्कि यह दिलों को जोड़ने की शुरुआत है। बस्तर का हर बच्चा, हर मां, हर युवा अब खुद को भारत की मुख्यधारा का हिस्सा मान रहा है। 

आपको बता दें कि साय के नेतृत्व में विकास और सुरक्षा का ऐसा मॉडल बना है, जो भविष्य में देश के अन्य संघर्षग्रस्त क्षेत्रों के लिए प्रेरणा बनेगा। छत्तीसगढ़ का बस्तर अब सिर्फ भौगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि साहस, संघर्ष और समाधान की कहानी बन चुका है। यह साबित करता है कि जब नीति में स्पष्टता, नेतृत्व में ईमानदारी और शासन में संवेदनशीलता हो, तो बदलाव असंभव नहीं। CG News

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