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Impact Feature
Raipur. छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद वर्षों तक केवल बंदूक और बारूद की कहानी नहीं रहा, बल्कि यह आम लोगों के जीवन पर छाया ऐसा साया बन गया था, जिसने विकास की हर किरण को रोक दिया। बस्तर, दण्डकारण्य और आसपास के इलाकों में सड़कें अधूरी रहीं। स्कूल सूने पड़े रहे। स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंच मुश्किल थी और रोजगार की जगह डर ने ले ली। हिंसा, अविश्वास और प्रशासन से दूरी ने पूरा सामाजिक ताना-बाना कमजोर कर दिया।
इसी चुनौतीपूर्ण हालात में छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में सरकार ने नक्सल समस्या को नए नजरिए से देखने का फैसला किया। इसी सोच से जन्म हुआ ‘पूना मारगेम’ अभियान का, जिसका सीधा अर्थ है... नए रास्ते की ओर लौटना। यह अभियान केवल सुरक्षा कार्रवाई तक सीमित नहीं है, बल्कि संवाद, विश्वास और पुनर्वास पर आधारित ऐसी पहल है, जो हिंसा से भटके लोगों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश करती है।
बंदूक से बाहर निकलने का रास्ता
‘पूना मारगेम’ की बुनियाद इस सोच पर रखी गई है कि हर समस्या का समाधान केवल सख्ती से नहीं होता। इस अभियान के जरिए नक्सल संगठनों से जुड़े लोगों को यह संदेश दिया गया है कि सरकार उन्हें दुश्मन की तरह नहीं, बल्कि भटके हुए नागरिक के रूप में देख रही है। हिंसा छोड़ने वालों के लिए सम्मानजनक जीवन का रास्ता खोला गया है।
सरकार का मानना है कि जब तक डर का माहौल रहेगा, तब तक विकास जमीन तक नहीं पहुंच सकता। इसलिए सुरक्षा के साथ-साथ संवाद को प्राथमिकता दी गई है। ग्रामीण इलाकों में प्रशासन की मौजूदगी बढ़ी, स्थानीय भाषा और संस्कृति के माध्यम से बात की गई और यह भरोसा दिलाया गया कि मुख्यधारा में लौटने पर उन्हें अकेला नहीं छोड़ा जाएगा।
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2025 में दिखा अभियान का असर
वर्ष 2025 इस नीति के लिए निर्णायक साबित हुआ। बस्तर और दण्डकारण्य क्षेत्र में बड़ी संख्या में नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया। अक्टूबर 2025 में 210 से अधिक नक्सलियों का एक साथ आत्मसमर्पण इस अभियान की सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में सामने आया है। यह घटना केवल आंकड़ा नहीं थी, बल्कि उस भरोसे का संकेत थी, जो धीरे-धीरे सरकार और स्थानीय समाज के बीच बन रहा है।
यह भी साफ हुआ कि जब सुरक्षा के साथ मानवीय दृष्टिकोण अपनाया जाता है तो हिंसा के रास्ते पर चल रहे लोग भी लौटने को तैयार होते हैं। लंबे समय से जंगलों में रह रहे लोगों के लिए समाज में वापस आना आसान नहीं होता, लेकिन ‘पूना मारगेम’ ने इस डर को काफी हद तक कम किया है।
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पुनर्वास से जुड़ा सम्मानजनक भविष्य
अभियान की सबसे अहम खासियत यह रही कि आत्मसमर्पण करने वालों को केवल कानूनी सुरक्षा देकर छोड़ नहीं दिया गया। सरकार ने उनके पुनर्वास के लिए ठोस व्यवस्था की। आर्थिक सहायता, कौशल प्रशिक्षण, आवास सुविधा और रोजगार से जोड़ने की योजनाएं बनाई गईं हैं।
आज कई पूर्व नक्सली सड़क निर्माण, जल परियोजनाओं और स्थानीय विकास कार्यों में श्रमिक या प्रशिक्षु के रूप में काम कर रहे हैं। इससे एक ओर उन्हें सम्मानजनक आजीविका मिली, वहीं दूसरी ओर उन इलाकों में विकास कार्यों को भी गति मिली, जो कभी नक्सल प्रभाव के कारण ठप पड़े रहते थे।
सुरक्षा सुधरी, विकास ने पकड़ी रफ्तार
‘पूना मारगेम’ का सीधा असर जमीन पर दिखने लगा है। जिन इलाकों में पहले प्रशासन का पहुंचना मुश्किल माना जाता था, वहां अब स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, आंगनबाड़ी और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं पहुंचने लगी हैं। सुरक्षा स्थिति में सुधार के साथ सरकारी योजनाएं तेजी से लागू हो रही हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि वर्षों बाद उन्हें सामान्य जीवन की अनुभूति हो रही है। बच्चों की पढ़ाई फिर से शुरू हुई है, बीमारों को इलाज मिलने लगा है और बाजारों में रौनक लौट रही है। यह साफ करता है कि शांति और विकास एक- दूसरे से जुड़े हुए हैं।
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टूटता डर, लौटता भरोसा
सामाजिक स्तर पर भी इस अभियान का असर गहरा रहा है। लंबे समय तक भय और अविश्वास में जी रहे ग्रामीणों के मन में सरकार के प्रति भरोसा बढ़ा है। संवाद आधारित नीति ने यह संदेश दिया कि सरकार केवल दंड देने वाली संस्था नहीं है, बल्कि सुधार और पुनर्वास का अवसर देने वाली संवेदनशील व्यवस्था भी है।
ग्रामीण अब खुलकर अपनी समस्याएं रख पा रहे हैं। प्रशासन और जनता के बीच संवाद की दूरी कम हुई है। यह बदलाव धीरे-धीरे सामाजिक स्थिरता की ओर बढ़ता कदम माना जा रहा है।
दूसरे राज्यों के लिए बन सकता है मॉडल
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‘पूना मारगेम’ यह साफ करता है कि नक्सल हिंसा का स्थायी समाधान संवाद, संवेदनशीलता और विकास में छिपा है। छत्तीसगढ़ सरकार की यह पहल एक ऐसा मॉडल पेश करती है, जहां सुरक्षा, मानवता और विकास एक साथ चलते हैं। यदि इस नीति को इसी मजबूती से लागू किया जाता रहा, तो यह न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि देश के अन्य नक्सल प्रभावित राज्यों के लिए भी प्रभावी उदाहरण बन सकता है। बस्तर में बदलती तस्वीर यह दिखा रही है कि जब सरकार और समाज मिलकर नए रास्ते पर चलते हैं, तो वर्षों पुरानी समस्याओं का समाधान भी संभव हो पाता है।
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