बस्तर में बदलाव की सबसे बड़ी कहानी; जिन गांवों में कभी गोलियां गूंजती थीं, अब वहां विकास की गूंज

बस्तर, जो कभी नक्सल प्रभावित और हिंसा का गढ़ माना जाता था, अब विकास की नई दिशा में बढ़ रहा है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में बस्तर में कई सकारात्मक बदलाव आए हैं।

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रायपुर: कभी देश के सबसे संवेदनशील और नक्सल प्रभावित इलाकों में गिने जाने वाला बस्तर आज नई पहचान बना रहा है। घने जंगलों, दुर्गम पहाड़ियों और सीमित संपर्क वाले इस क्षेत्र में लंबे समय तक शासन-प्रशासन की पहुंच नहीं थी। स्कूल खाली पड़े रहते थे। सड़कें अधूरी थीं। आम आदमी का जीवन हमेशा डर के साए में गुजरता था।

बस्तर का नाम आते ही हिंसा, खामोशी और दहशत की तस्वीर उभर आती थी, लेकिन अब वही बस्तर बदल रहा है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में एक ऐसी यात्रा शुरू हुई है, जिसने इस क्षेत्र की तस्वीर और तकदीर दोनों को नया मोड़ दिया है। लोग कहने लगे हैं कि बस्तर अब डर नहीं, विकास की नई कहानी है। 

बड़ेसट्टी: बस्तर का पहला नक्सलमुक्त गांव 

सुकमा जिले का बड़ेसट्टी गांव आधिकारिक रूप से बस्तर संभाग की पहली नक्सलमुक्त ग्राम पंचायत घोषित हुआ है। यह घोषणा सिर्फ एक प्रशासनिक फैसला नहीं, बल्कि उन हजारों परिवारों के सपनों की जीत है, जिन्होंने वर्षों तक भय और संघर्ष के बीच जीवन बिताया। स्थानीय लोगों की भूमिका, सुरक्षाबलों की प्रतिबद्धता और सरकार की रणनीति ने इस परिवर्तन को संभव बनाया है। गांवों में लौटती मुस्कानें इस बात का संकेत हैं कि बस्तर आज खुद को नई दिशा दे रहा है।

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अब सिर्फ तीन जिले गंभीर श्रेणी में

प्रदेश सरकार के अनुसार, पहले छत्तीसगढ़ में छह जिले गंभीर रूप से नक्सल प्रभावित श्रेणी में थे। अब यह संख्या घटकर तीन रह गई है। इन जिलों में बीजापुर, सुकमा और नारायणपुर शामिल है।

यह गिरावट सिर्फ आंकड़ों की कहानी नहीं है। यह उस लंबे और कठिन अभियान का परिणाम है, जिसके तहत सुरक्षा बलों ने लगातार अभियान चलाए। प्रशासन ने गांव-गांव जाकर विश्वास बहाली का काम किया। सरकार ने बसवराजू और हिडमा जैसे इनामी नक्सलियों का खात्मा किया, जो कई हिंसक घटनाओं के लिए जिम्मेदार माने जाते थे।

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय 31 मार्च 2026 तक छत्तीसगढ़ को पूरी तरह नक्सलमुक्त बनाने के अभियान में जुटे हैं। उनकी 100 से अधिक बस्तर यात्राएं बताती हैं कि यह सिर्फ घोषणा नहीं, धरातल पर लगातार जारी मिशन है।

477 नक्सली ढेर, 2110 ने किया आत्मसमर्पण 

बस्तर के जंगलों में चल रहे सुरक्षा अभियानों ने नक्सली नेटवर्क को बड़ा झटका दिया है। पिछले 22 महीनों में 477 नक्सली मारे गए। 2110 ने आत्मसमर्पण किया। 1785 गिरफ्तार किए गए। 

ये आंकड़े संकेत हैं कि अब बस्तर में बंदूक की धमक नहीं, सुरक्षा की मजबूती और प्रशासन की पहुंच का असर है। DRG, CRPF और अन्य सुरक्षा एजेंसियों ने कठिन परिस्थितियों में लगातार अभियान चलाए। कई ऑपरेशन ऐसे इलाकों में हुए जहां कभी सरकारी वाहन तक पहुंचना मुश्किल था। 

258 नक्सलियों ने डाले हथियार 

मुख्यमंत्री साय के नेतृत्व में आत्मसमर्पण की प्रक्रिया तेज हुई है। हाल ही में 258 नक्सलियों ने हथियार डालकर शांति और विकास का रास्ता चुना है। मुख्यमंत्री का कहना है कि हिंसा जीवन को तोड़ती है, आत्मसमर्पण जीवन को नई दिशा देता है। उनकी यह अपील सिर्फ संदेश नहीं, बल्कि उन युवाओं की भावनाओं से जुड़ी है, जो कभी बंदूक उठाने को मजबूर थे और अब सामान्य जीवन की राह तलाश रहे हैं।

नक्सलवादी आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति 2025 के तहत आत्मसमर्पण करने वालों को कानूनी संरक्षण, रोजगार सहायता, शिक्षा, आवास और पुनर्वास की सुविधाएं दी जा रही हैं। सरकार की इस नीति ने कई युवाओं को हिंसा से दूरी बनाने का मौका दिया है।

नियद नेल्ला नार योजना से हो रहा बदलाव 

आज बस्तर में बदलाव की सबसे महत्वपूर्ण वजहों में एक है मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय द्वारा शुरू की गई ‘नियद नेल्ला नार’ योजना। इस योजना के तीन मुख्य उद्देश्य हैं। एक तो सरकार की सीधी पहुंच दूरस्थ आदिवासी क्षेत्रों तक। दूसरा संवाद स्थापित कर जनविश्वास बढ़ाना और तीसरा नागरिक सुविधाओं को गांव-गांव तक पहुंचाना।

अब तक 64 नए सुरक्षा कैंप स्थापित किए जा चुके हैं। पहले जिन गांवों में अधिकारी पहुंचना भी कठिन समझते थे, आज वहीं पर स्वास्थ्य शिविर लगते हैं, अधिकारी ग्रामीणों से बात करते हैं और तुरंत समाधान देते हैं।

स्कूल, आंगनबाड़ी, स्वास्थ्य केंद्र और राशन दुकानों की गतिविधि बढ़ी है। जिन इलाकों में कभी सन्नाटा रहता था, आज वहां बच्चों की आवाज, प्रशासन की मौजूदगी और रोजमर्रा की गतिविधियों की हलचल दिखती है।

अबूझमाड़ और उत्तर बस्तर तक विकास

अबूझमाड़ और उत्तर बस्तर को कभी नक्सलवाद की पनाहगाह कहा जाता था, आज पूरी तरह भयमुक्त घोषित किए जा चुके हैं। मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद इन क्षेत्रों में लोगों का आत्मविश्वास बहुत बढ़ा है।

गांवों में स्कूल खुल रहे हैं, सड़कों पर आवाजाही बढ़ी है और बाजारों में रौनक लौट रही है। बस्तर समाज खुद कह रहा है कि यह बदलाव पिछले कई दशकों में पहली बार देखने को मिला है।

केंद्र और राज्य का मजबूत समन्वय 

नक्सल उन्मूलन अभियान की यह सफलता केंद्र और राज्य के मजबूत तालमेल से संभव हुई है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सार्वजनिक रूप से कहा कि अबूझमाड़ और उत्तर बस्तर पूरी तरह नक्सल मुक्त हो चुके हैं। उन्होंने इसे भारत की आंतरिक सुरक्षा की बड़ी उपलब्धि बताया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्रालय के नेतृत्व में कई संवेदनशील ऑपरेशन सफल हुए। नई तकनीक और आधुनिक उपकरणों की तैनाती हुई और विकास कार्यों को तेजी मिली।

नक्सलमुक्त छत्तीसगढ़ की ओर कदम

छत्तीसगढ़ का बस्तर आज उस मोड़ पर खड़ा है, जहां नक्सलवाद का अंत अब सपना नहीं, बल्कि वास्तविकता के करीब है। सरकार का लक्ष्य है कि 31 मार्च 2026 तक पूरा राज्य नक्सलमुक्त हो जाए।

एक समय गोलियों की गूंज से डरने वाला बस्तर आज विकास, संवाद और उम्मीद की नई कहानी लिख रहा है। गांवों में शांति लौट रही है। किसान खुले मन से खेती कर रहे हैं और लोग बेखौफ होकर जी रहे हैं। 
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मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय छत्तीसगढ़ रायपुर बस्तर
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