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Impact Feature
Raipur. कभी नक्सलवादियों के डर की परछाई में जीने वाला बस्तर अब नई सुबह के साथ जाग रहा है। जिन इलाकों में शाम ढलते ही सन्नाटा पसर जाता था, जहां न सड़क थी, न बिजली, न स्कूल और न अस्पताल, वहां अब विकास की रोशनी सीधे आमजन के घरों तक पहुंच रही है। यह बदलाव अचानक नहीं हुआ। इसके पीछे मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की वह सोच है, जिसने सुरक्षा और विकास को एक ही धागे में पिरोकर बस्तर को आगे बढ़ाने का रास्ता चुना है।
नियद नेल्लानार योजना बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाकों में बदलाव की सबसे बड़ी पहचान बनकर उभरी है। यह योजना सिर्फ सरकारी कागजों तक सीमित नहीं रही, बल्कि उसने शासन और आम लोगों के बीच वह भरोसा खड़ा किया, जो दशकों से टूटता चला आ रहा था। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का मानना है कि केवल सुरक्षा कैंप बना देने से शांति स्थायी नहीं होती। शांति तब आती है, जब सरकार गांव के भीतर तक पहुंचती है और लोगों की रोजमर्रा की जरूरतों को समझती है। इसी सोच के तहत बस्तर के पांच जिलों सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा और कांकेर में नए सुरक्षा शिविर स्थापित किए गए हैं।
इन शिविरों के 10 किलोमीटर के दायरे में आने वाले 300 से ज्यादा गांवों को चिन्हित किया गया है। इन गांवों को हर उस योजना से जोड़ा जाएगा, जो बाकी प्रदेश के लोगों को मिलती है। यह फैसला उन इलाकों के लिए उम्मीद की किरण लेकर आया, जहां कभी सरकारी कर्मचारी जाने से भी कतराते थे।
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शिक्षा से बदली सोच, बच्चों के हाथ में आए सपने
इन गांवों में सबसे बड़ा बदलाव शिक्षा के क्षेत्र में दिख रहा है। जहां कभी बच्चे स्कूल का मतलब नहीं जानते थे, वहां अब नई पीढ़ी किताबें लेकर पढ़ाई की ओर बढ़ रही है। नियद नेल्लानार योजना के तहत 31 नए प्राथमिक विद्यालयों को मंजूरी दी गई है। इनमें से 13 स्कूलों में पढ़ाई शुरू हो चुकी है। इसके साथ ही 185 आंगनबाड़ी केंद्रों की स्थापना का फैसला हुआ है, जिनमें से 107 केंद्र चालू हो चुके हैं। इन केंद्रों से बच्चों को पोषण, प्रारंभिक शिक्षा और सुरक्षा एक साथ मिल रही है।
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जंगलों तक पहुंचीं स्वास्थ्य सेवाएं
बस्तर के सुदूर इलाकों में बीमारी हमेशा बड़ा संकट रही है। पहले मामूली इलाज के लिए भी लोगों को कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था। अब हालात बदल रहे हैं। सरकार ने 20 उप-स्वास्थ्य केंद्रों को मंजूरी दी, जिनमें से 16 केंद्रों में सेवाएं शुरू हो चुकी हैं।
इन केंद्रों से गर्भवती महिलाओं को सुरक्षित प्रसव की सुविधा मिल रही है। बच्चों का टीकाकरण गांव में ही हो रहा है और बीमार लोगों को प्राथमिक इलाज के लिए शहर नहीं भागना पड़ता। यह बदलाव छोटे कदम जैसा दिख सकता है, लेकिन बस्तर के लिए यह जीवन बदलने वाला साबित हो रहा है।
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सड़क, मोबाइल और उजाले से जुड़ा बस्तर
छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की प्राथमिकताओं में कनेक्टिविटी सबसे ऊपर रही है। उनका मानना है कि जब तक सड़क और संचार नहीं होगा, तब तक विकास टिक नहीं सकता। इसी दिशा में 119 मोबाइल टावरों की योजना बनाई गई, जिनमें से 43 टावर चालू हो चुके हैं। अब कई गांव ऐसे हैं, जहां पहली बार मोबाइल नेटवर्क पहुंचा है।
रात के अंधेरे को दूर करने के लिए 144 हाईमास्ट लाइटें मंजूर की गईं। इनमें से 92 गांवों में उजाला फैल चुका है। इसके अलावा 173 सड़क और पुल निर्माण परियोजनाएं स्वीकृत की गईं, जिनमें से 26 पूरी हो चुकी हैं। अब गांव से ब्लॉक और जिला मुख्यालय तक पहुंच आसान हो रही है।
मुख्यमंत्री के दौरों से बढ़ा भरोसा
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने बस्तर को दूर से देखने के बजाय बार-बार जाकर समझने का रास्ता चुना। 15 अक्टूबर 2024 को उन्होंने दंतेश्वरी मंदिर में दर्शन किए, मुरिया दरबार में शामिल हुए और विकास कार्यों की समीक्षा की। मई 2025 में बीजापुर और दंतेवाड़ा के दौरे में उन्होंने सुरक्षा और विकास के संतुलन पर जोर दिया। सितंबर 2025 में जगदलपुर में आयोजित Bastar Investor Connect Meet में बस्तर को निवेश के नए केंद्र के रूप में प्रस्तुत किया गया। 11–12 दिसंबर 2025 को Bastar Olympics का उद्घाटन कर उन्होंने यह संदेश दिया कि बस्तर की पहचान अब हिंसा नहीं, प्रतिभा बनेगी।
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निवेश से खुल रहे रोजगार के रास्ते
सितंबर 2025 का Bastar Investor Connect Meet बस्तर के आर्थिक इतिहास में अहम मोड़ साबित हुई है। मुख्यमंत्री ने करीब ₹52,000 करोड़ के निवेश प्रस्तावों की जानकारी दी है। इन प्रस्तावों में खनिज आधारित उद्योग, फूड प्रोसेसिंग, पर्यटन, ऊर्जा और बुनियादी ढांचे से जुड़े प्रोजेक्ट शामिल हैं।
सरकार का फोकस इस बात पर है कि इन निवेशों से स्थानीय युवाओं को रोजगार मिले और आदिवासी समाज विकास की प्रक्रिया का हिस्सा बने। विजन 2047 में बस्तर को विशेष स्थान दिया गया है, जहां सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, डिजिटल कनेक्टिविटी, इको-टूरिज्म और कौशल विकास को प्राथमिकता दी गई है।
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खेल के जरिए बदली सोच
दिसंबर 2025 में आयोजित Bastar Olympics ने बस्तर के युवाओं को नई पहचान दी है। कबड्डी, फुटबॉल, एथलेटिक्स और तीरंदाजी जैसे खेलों के जरिए युवाओं में आत्मविश्वास जगा है।
गौरतलब है कि जब वर्ष 2024 में बस्तर ओलंपिक की शुरुआत हुई थी, तब कई लोग इसे कठिन प्रयोग मान रहे थे। कई लोगों को सवाल था कि क्या ऐसे इलाकों में, जहाँ दशकों से बंदूकें और हिंसा का असर रहा है, वहाँ विशाल खेल आयोजन चल पाएगा?
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पहले साल ही जवाब मिल गया। हजारों युवाओं ने खुद को इस आयोजन से जोड़ा। लोगों का उत्साह देखकर यह साफ हो गया कि बस्तर बदलना चाहता है। वर्ष 2024 में इसे एशिया के सबसे बड़े जनजातीय खेल आयोजनों में गिना गया। वर्ष 2025 में यह आयोजन और भी भव्य होकर सामने आया।
25 अक्टूबर 2025 को शुरू हुए बस्तर ओलंपिक ने इस बार कई नए रिकॉर्ड बनाए हैं। 4 लाख से अधिक खिलाड़ियों ने पंजीकरण कराया। 7 जिलों की 7 टीमें शामिल हुईं। वहीं एक विशेष ‘नुआ बाट’ टीम ने भी शिरकत की। 600 से ज्यादा नुआ बाट खिलाड़ी शामिल हुए। इतनी बड़ी भागीदारी ने यह साबित किया कि बस्तर के युवाओं में ऊर्जा है। प्रतिभा है और खुद को बदलने की प्यास है।
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