46 साल बाद फिर जागी उम्मीद की किरण, बोधघाट परियोजना से 269 गांवों को मिलेगा पानी, बनेगी बिजली

छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के लिए खुशखबरी है क्योंकि 46 साल से अटकी बोधघाट सिंचाई परियोजना को फिर से शुरू किया जाएगा। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से चर्चा कर इस परियोजना को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया है।

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छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के लोगों के लिए बड़ी खुशखबरी आई है। लंबे समय से अटकी बोधघाट सिंचाई परियोजना को आखिरकार फिर से शुरू करने की घोषणा कर दी गई है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से विस्तार से चर्चा कर इस परियोजना को आगे बढ़ाने की मजबूत पहल की है। इससे बस्तर के दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा जैसे दूरस्थ जिलों को सिंचाई और बिजली के साथ पर्यटन के क्षेत्र में फायदा मिलेगा।

बोधघाट परियोजना कोई नई योजना नहीं है। इसकी नींव 1979 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने रखी थी। नक्सल समस्या और संवेदनशील हालात के चलते यह प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में चला गया। आजादी के बाद के दशकों में बस्तर विकास की दौड़ में पिछड़ता चला गया। अब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के प्रयासों से 46 साल बाद उम्मीद की किरण जगी है।

यह बहुउद्देशीय बांध परियोजना दंतेवाड़ा जिले की इंद्रावती नदी पर बनाई जाएगी। इंद्रावती, गोदावरी नदी की बड़ी सहायक नदी है। इस बांध से तीन जिलों के 269 गांवों को सीधा फायदा होगा। यहां के किसानों को स्थायी सिंचाई सुविधा मिलेगी, बिजली बनेगी और मछली पालन को भी बढ़ावा मिलेगा।

49 हजार करोड़ से होगा काम 

सरकार ने इस प्रोजेक्ट पर करीब 49 हजार करोड़ रुपए खर्च करने की योजना बनाई है। इसमें बोधघाट बांध के अलावा इंद्रावती-महानदी इंटरलिंकिंग प्रोजेक्ट भी शामिल है। अकेले बोधघाट परियोजना पर करीब 29 हजार करोड़ खर्च होंगे, जबकि इंटरलिंकिंग प्रोजेक्ट पर करीब 20 हजार करोड़ का निवेश होगा।

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का कहना है कि बस्तर को नक्सलवाद से निकालकर विकास की राह पर लाना ही उनकी प्राथमिकता है। आज बस्तर में जहां कभी गोलियों की आवाज गूंजती थी, वहां अब स्कूलों की घंटियां बज रही हैं। आने वाले समय में बोधघाट परियोजना से यहां के खेतों को पानी मिलेगा, बिजली बनेगी और लोगों को रोजगार भी मिलेगा।

कृषि, ऊर्जा और रोजगार...तीनों में लाभ

इस परियोजना से 125 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा, जिससे दूर-दराज के गांवों में भी रोशनी पहुंचेगी। साथ ही 3 लाख 78 हजार 475 हेक्टेयर खेतों में सिंचाई की सुविधा होगी। बांध से हर साल करीब 4 हजार 824 टन मछली का उत्पादन भी होगा, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा। इतना ही नहीं, लगभग 49 मिलियन क्यूबिक मीटर पेयजल भी मिलेगा।

इंटरलिंकिंग से सिंचाई रकबा होगा दोगुना

इंद्रावती-महानदी इंटरलिंकिंग प्रोजेक्ट से कांकेर जिले समेत कई इलाकों में सिंचाई क्षमता बढ़ेगी। इस प्रोजेक्ट से कांकेर के 50 हजार हेक्टेयर सहित कुल 3 लाख हेक्टेयर से ज्यादा खेतों को पानी मिलेगा। इससे खरीफ और रबी दोनों सीजन में फसलें लहलहाएंगी।
बोधघाट परियोजना के शुरू होने से बस्तर में पर्यटन की भी नई संभावनाएं पैदा होंगी। बड़ी जलराशि, सुंदर जलप्रपात और जलाशयों से यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी। इससे स्थानीय युवाओं को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे।

इतिहास भी बताएगा नया भविष्य

बोधघाट का इतिहास अपने आप में खास है। दंतेवाड़ा जिले के गीदम ब्लॉक के बारसूर गांव से 8 किलोमीटर दूर और जगदलपुर से 100 किलोमीटर की दूरी पर यह परियोजना बनेगी। केंद्र सरकार ने 1979 में बोधघाट के साथ आंध्र प्रदेश की पोलावरम परियोजना को भी मंजूरी दी थी। पोलावरम तो लगभग पूरा हो गया, लेकिन बोधघाट नक्सली समस्याओं के कारण अटका रहा। अब नक्सलवाद कमजोर पड़ने और हालात बेहतर होने से उम्मीद है कि बस्तर के लोग इस बार अपने हक का पानी जरूर पाएंगे।

सीएम विष्णुदेव साय का कहना है कि अब बस्तर विकास की मुख्यधारा में शामिल हो चुका है। बोधघाट बांध और इंद्रावती-महानदी लिंक परियोजना से यहां के खेत हरे-भरे होंगे, गांवों में रोशनी पहुंचेगी और लोग आत्मनिर्भर बनेंगे। 

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