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Photograph: (the sootr)
रायपुर। छत्तीसगढ़ का बस्तर पिछले तीन दशक से नक्सली हिंसा की आग में झुलसता रहा। बंदूक और बारूद की यह लड़ाई ना सिर्फ बस्तर के जंगलों में चली, बल्कि इसने यहां के हजारों परिवारों की खुशियां भी निगल लीं। गांव के गांव वीरान हुए। स्कूल सूने पड़ गए। बच्चों से किताबें छिन गईं। महिलाओं की गोद उजड़ गई, लेकिन अब यह अंधेरा खत्म हो रहा है। बस्तर में विकास का नया सबेरा हो रहा है।
छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय सरकार ने मार्च 2026 तक बस्तर को नक्सल मुक्त बनाने का संकल्प लिया है। हाल के महीनों में माओवाद के खिलाफ सरकार ने कई निर्णायक कार्रवाई की हैं। इससे यह उम्मीद और मजबूत हुई है कि आने वाले वक्त में बस्तर में सिर्फ ढोल-मांदर की थाप गूंजेगी, गोलियों की आवाज नहीं। विकास होगा, बारूद नहीं।
लाल आतंक की कमर टूटी
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का कहना है कि हम तब तक चैन से नहीं बैठेंगे, जब तक छत्तीसगढ़ से नक्सलवाद पूरी तरह खत्म नहीं हो जाता। यह सिर्फ बयान नहीं है, बल्कि जमीनी हकीकत भी है। बीते डेढ़ साल में सीएम साय की अगुआई में सुरक्षाबलों ने अदम्य साहस दिखाते हुए 438 नक्सलियों को ढेर किया है। 1 हजार 515 माओवादियों को पकड़ा गया है। 1 हजार 476 को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया गया है।
सरकार को सबसे बड़ी सफलता मई 2025 में अबूझमाड़ के जंगलों में तब मिली, जब मोस्ट वांटेड सरगना बसव राजू समेत 26 नक्सली मारे गए। बसव राजू पर सवा तीन करोड़ का इनाम था। वह माओवादी आंदोलन की कमान संभाल रहा था। तीन दशक में पहली बार किसी जनरल सेक्रेटरी रैंक के माओवादी को मार गिराया गया है। इसके बाद जून में 1 करोड़ का इनामी नक्सली सुधाकर भी पुलिस मुठभेड़ में मारा गया। इन घटनाओं ने नक्सलियों की रीढ़ तोड़ दी है।
बारिश में भी ऑपरेशन नहीं थमेंगे
22 जून 2025 को केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बस्तर में सुरक्षा बलों की तारीफ करते हुए कहा था कि बरसात में जो नक्सली आराम किया करते थे, इस बार उन्हें भी चैन की नींद नसीब नहीं होगी। यानी इस बार बारिश में भी जंगलों में ऑपरेशन चलते रहेंगे, ताकि जो बचे-खुचे नक्सली हैं, वे भी या तो आत्मसमर्पण करें या खत्म कर दिए जाएं।
छत्तीसगढ़ सरकार ने नक्सल उन्मूलन की लड़ाई को सिर्फ बंदूक तक सीमित नहीं रखा है। इसके पीछे सुनियोजित विकास मॉडल भी खड़ा है। नक्सल प्रभावित गांवों में ‘नियद नेल्ला नार’ योजना चलाई जा रही है। इसके तहत सुरक्षा कैम्पों के आसपास पांच किलोमीटर के दायरे में आने वाले गांवों में 17 विभागों की 59 योजनाओं को जमीन पर उतारा जा रहा है।
इससे लोगों को घर, अस्पताल, स्कूल, सड़क, पुल-पुलिया, बिजली-पानी जैसी सुविधाएं मिल रही हैं। मुख्यमंत्री ने नक्सल प्रभावित जिलों के बच्चों के लिए तकनीकी और व्यावसायिक पढ़ाई के लिए ब्याजमुक्त लोन की भी घोषणा की है।
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कैसे बदल रहा पूवर्ती गांव
सुकमा जिले का पूवर्ती गांव कभी नक्सलियों का सबसे सुरक्षित गढ़ माना जाता था। यही वो गांव था, जहां से कई बड़े हमलों की साजिश रची गई थी। हिड़मा जैसे कुख्यात नक्सली यहीं से ताल्लुक रखते हैं। यहां सरकार की योजनाएं पहुंचना तो दूर, पुलिस भी कदम रखने से डरती थी। अब पूवर्ती गांव बदल रहा है। यहां सुरक्षा कैम्प खुल चुका है। सड़कें बन रही हैं। बच्चे स्कूल लौट रहे हैं। अब यहां के आमजन कहते हैं, अब हम बंदूक से नहीं, विकास से जुड़ेंगे।
बस्तर ओलंपिक और पंडुम में उम्मीद
बस्तर में बदलाव की बयार सिर्फ सरकारी योजनाओं में नहीं, बल्कि लोगों की भागीदारी में भी दिख रही है। बस्तर ओलंपिक और बस्तर पंडुम जैसे आयोजनों में हजारों युवाओं और ग्रामीणों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है। ये आयोजन खेलभर नहीं हैं, यह संदेश है कि बस्तर अब हिंसा नहीं, उत्सव की धरती बनेगा।
क्यों खास है यह लड़ाई
बस्तर की लड़ाई सिर्फ बंदूक की लड़ाई नहीं है। यह भरोसे की लड़ाई है। तीन दशकों से नक्सलियों ने गरीब आदिवासियों को अपने झूठे विचारों में उलझा रखा था। उन्हें डराकर बंदूक थमाई। बच्चों से उनका बचपन छीना। महिलाएं सबसे ज्यादा पीड़ित हुईं। बेटियां अगवा की गईं, इससे कई परिवार बिखर गए।
अब सरकार ने ठान लिया है कि बस्तर के जंगलों में सिर्फ पेड़ ही नहीं, विकास के नए बीज भी बोए जाएंगे। वहां के युवा बंदूक नहीं, किताब पकड़ेंगे। गांवों में बिजली होगी, इंटरनेट होगा, सड़क होगी और रोजगार के साधन होंगे।
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जवानों का साहस बना ताकत
बस्तर की इस जंग में जवानों की वीरता सबसे बड़ी ताकत है। ऊबड़-खाबड़ जंगलों, घने पहाड़ों और अनजान रास्तों में उन्होंने जान हथेली पर रखकर ऑपरेशन चलाए हैं। हजारों किलोमीटर जंगल में चौकसी बढ़ी है। नई तकनीक, ड्रोन, आधुनिक हथियार और स्थानीय आदिवासियों का समर्थन इस बार लड़ाई में सब कुछ हमारे पक्ष में है।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय कहते हैं, हमारे वीर जवानों का बलिदान बेकार नहीं जाएगा। छत्तीसगढ़ नक्सल मुक्त होकर रहेगा और बस्तर फिर से विकास की मुख्यधारा में लौटेगा।
इस तरह बदल रही तस्वीर
आपको बता दें कि आदिवासी बहुल बस्तर क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है। खनिज, वनोपज, जलस्रोत सब कुछ यहां है। लेकिन नक्सल हिंसा ने विकास की रफ्तार रोक दी थी। अब साय सरकार हर गांव तक सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार ले जा रही है। स्वरोजगार और स्व-सहायता समूहों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
बस्तर के युवा अब स्टार्टअप्स में हाथ आजमा रहे हैं। बेटियां सिलाई-कढ़ाई से लेकर हैंडीक्राफ्ट बना रही हैं। वन उत्पादों के संग्रहण, प्रसंस्करण और मार्केटिंग से लोगों को रोजगार मिल रहा है।
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