9 महीने में भी जिताऊ उम्मीदवार नहीं बन पाए पीसीसी चीफ दीपक बैज, बस्तर से कटा और कांकेर से नहीं मिला टिकट

मप्र के मुकाबले कांग्रेस की राजनीतिक स्थिति छत्तीसगढ़ में थोड़ी बेहतर है, लेकिन गुटबाजी और अंतर्कलह का मर्ज कमोबेश एक जैसा है। अध्यक्ष बनने के इस समय के दौरान बैज अपने आपको जिताऊ उम्मीदवार साबित नहीं कर सके।

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अरुण तिवारी @ रायपुर
छत्तीसगढ़ कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ( CG PCC CHIEF DEEPAK BAIJ  ) के लिए ये लोकसभा चुनाव नाक का सवाल बन गया है। इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन उनके राजनीतिक भविष्य के लिए भी बेहद अहम माना जा रहा है। दीपक बैज को पीसीसी अध्यक्ष बने 9 महीने हो चुके हैं। इस दौरान कांग्रेस विधानसभा चुनाव हार चुकी है। खुद बैज का टिकट बस्तर से कट चुका है और कांकेर से भी उन्हें जिताऊ उम्मीदवार नहीं माना गया। 

बैज के वजूद पर सवाल

मप्र के मुकाबले कांग्रेस की राजनीतिक स्थिति छत्तीसगढ़ में थोड़ी बेहतर है, लेकिन गुटबाजी और अंतर्कलह का मर्ज कमोबेश एक जैसा है। 9 महीने से पीसीसी चीफ दीपक बैज भी इसी मुश्किल से गुजर रहे हैं। अध्यक्ष बनने के इस समय के दौरान बैज अपने आपको जिताऊ उम्मीदवार साबित नहीं कर सके। बैज बस्तर के सांसद थे, लेकिन उनका टिकट काट दिया गया। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण उनकी विधानसभा चुनाव में हार मानी गई। वे चित्रकोट से विधानसभा चुनाव लड़े और हार गए। लिहाज़ा वे बस्तर से जिताऊ उम्मीदवार नहीं रह गए। उनकी टिकट काटकर पूर्व मंत्री और विधायक कवासी लखमा को दे दी गई। कयास लगाए गए कि उनको कांकेर से टिकट मिलेगी, लेकिन वे वहां से भी जिताऊ उम्मीदवार नहीं माने गए। वहां भी उनके हाथ खाली रहे। बैज कहते हैं कि उनका फोकस सारी 11 सीटों पर है। इसलिए वे चुनाव लड़ने से ज्यादा कांग्रेस की जीत को महत्व दे रहे हैं। बीजेपी की स्थिति प्रदेश में खराब है इसलिए हार के डर से फ़िज़ूल की बातें कर रही है।

कांकेर में किसने बिछाए कांटे

इस बार छत्तीसगढ़ में भी दिग्गज नेताओं को चुनाव लड़ाने की रणनीति पर काम किया जा रहा था। भूपेश बघेल को राजनांदगांव भेजा गया। इसी तर्ज पर दीपक बैज को कांकेर से लड़ाने की चर्चा थी, लेकिन पार्टी के सर्वे में दीपक बैज की स्थिति कमजोर मानी गई। लिहाजा यहां से उनका दावा कमज़ोर पड़ गया। यहां से पार्टी ने एक बार फिर बीरेश ठाकुर को उम्मीदवार बनाया है। बीरेश ठाकुर पिछला चुनाव 6900 वोटों से हारे थे। बीरेश ठाकुर ने टिकट मिलने के बाद बड़े नेताओं का आभार जताया लेकिन दीपक बैज का नाम नहीं लिया।। अब बात यहाँ गुटबाज़ी की है। यदि बस्तर और कांकेर में गुटबाजी आड़े नहीं आई और पूरी पार्टी एकजुट होकर चुनाव लड़ी तो नतीजे बेहतर हो सकते हैं। यही काम दीपक बैज को करना है। दीपक बैज के लिए ये ज़रूरी इसलिए भी है क्योंकि यदि चुनाव परिणाम अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहे तो ये बैज के लिए आत्मघाती स्थिति हो सकती है।

 


 
 


 

 

 

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