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छत्तीसगढ़ के बस्तर का अबूझमाड़ कभी देश के सबसे दुर्गम और पिछड़े इलाकों में गिना जाता था। अब यह क्षेत्र तेजी से बदल रहा है। केन्द्र और राज्य सरकार के साझा प्रयासों और नक्सलवाद के कमजोर पड़ने के बाद अब अबूझमाड़ अबूझ नहीं रहेगा। यहां रहने वाले आदिवासी परिवारों के लिए विकास की नई राह खुल रही है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में शुरू की गई पीएम जनमन योजना, धरती आबा ग्राम उत्कर्ष अभियान और राज्य सरकार की नियद नेल्लानार योजना ने यहां की तस्वीर बदलनी शुरू कर दी है। अब यहां सड़कों का जाल बिछ रहा है, पक्के मकान बन रहे हैं और गांव-गांव तक शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं पहुंचाई जा रही हैं।
गौरतलब है कि बस्तर का अबूझमाड़ इलाका हमेशा से घने जंगलों, दुर्गम पहाड़ियों और विशेष पिछड़ी जनजातियों के कारण चर्चा में रहा। बरसात के मौसम में यहां के लोग कच्चे घरों में किसी तरह जीवन गुजारते थे, लेकिन मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की अगुआई में हालात बदलने लगे हैं। केन्द्र और राज्य सरकार की संवेदनशीलता और योजनाओं के दम पर आदिवासी परिवारों को पक्के आवास, स्वास्थ्य सुविधा और सुरक्षित पेयजल जैसी सुविधाएं मिल रही हैं।
अबूझमाड़ के विकास में पीएम जनमन योजना और धरती आबा ग्राम उत्कर्ष अभियान की बड़ी भूमिका है। प्रधानमंत्री जनजातीय जन विकास मिशन के तहत यहां विशेष पिछड़ी जनजातियों को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसर दिए जा रहे हैं। स्कूलों, छात्रावासों और अस्पतालों का विकास किया जा रहा है ताकि आदिवासी बच्चों को अच्छी पढ़ाई और इलाज घर के पास मिल सके।
आदर्श बन रहे अब गांव
धरती आबा ग्राम उत्कर्ष अभियान के तहत गांवों में सड़क, बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं पहुंचाई जा रही हैं। इसके अलावा कौशल विकास और स्वरोजगार योजनाओं के जरिए गांवों के युवाओं को काम के मौके भी मिल रहे हैं।
राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी नियद नेल्लानार योजना का असर सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर और कांकेर जिलों में साफ दिखाई देने लगा है। इस योजना के तहत कुल 8 विकासखंडों के 23 सुरक्षा कैंपों के आसपास के 90 गांवों को आदर्श ग्राम बनाया जा रहा है।
स्वास्थ्य सुविधाएं और शिक्षा की अलख
नियद नेल्लानार योजना के तहत बस्तर के सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर और कांकेर जिलों में स्थित 55 सुरक्षा कैंपों के 10 किलोमीटर क्षेत्र में आने वाले 328 गांवों को विकास की मुख्यधारा में जोड़ा गया है। इन गांवों में 16 विभागों के समन्वय से 25 व्यक्तिमूलक योजनाएं और 18 सामुदायिक सुविधाएं पहुंचाई जा रही हैं।
शिक्षा और स्वास्थ्य की लौ जलने लगी है। बीते दो वर्षों में बंद पड़े 41 स्कूल फिर से खोले गए। अबूझमाड़, सुकमा, बीजापुर में शिक्षा के प्रति उत्साह बढ़ा है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य शिविर, टीकाकरण, पोषण आहार वितरण नियमित रूप से हो रहे हैं। महतारी वंदन योजना, पेंशन, प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी सुविधाएं अब हर घर तक पहुंच रही हैं।
आदिवासियों के लिए पक्के मकान
अबूझमाड़ जैसे सुदूर वनांचल में रहने वाले आदिवासी परिवार अक्सर कच्चे और कमजोर घरों में रहते थे, जिनमें बारिश के मौसम में रहना बेहद मुश्किल होता था। अब उनके लिए पक्के मकान बन रहे हैं। केन्द्र और राज्य सरकार के समन्वित प्रयासों से आदिवासी परिवारों को सुरक्षित छत और सम्मानजनक जीवन मिल रहा है।
अबूझमाड़ और बस्तर की जैव विविधता और ऐतिहासिक धरोहर भी किसी खजाने से कम नहीं। नक्सलवाद के कमजोर पड़ने के बाद अब ये इलाके पर्यटकों के लिए भी खुलने लगे हैं। राज्य सरकार का मानना है कि आने वाले वक्त में बस्तर देश का सबसे बड़ा टूरिस्ट डेस्टिनेशन बन सकता है। यहां के जंगल, झरने और अनछुए पर्यटन स्थल अब नई कनेक्टिविटी के जरिए देश-दुनिया से जुड़ेंगे। इससे स्थानीय युवाओं को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे और इलाके की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।
नक्सली अब कर रहे आत्मसमर्पण
सरकार की आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति- 2025 और नियद नेल्लानार योजना के सकारात्मक परिणाम अब सामने आने लगे हैं। बीजापुर जिले में सुरक्षाबलों के समक्ष कुल 87 लाख 50 हजार रुपये के इनामी 24 हार्डकोर नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर समाज की मुख्यधारा में लौटने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है। इनमें से 20 नक्सलियों पर 50 हजार से लेकर 10 लाख तक के इनाम घोषित थे।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का कहना है कि मार्च 2026 तक देश-प्रदेश से लाल आतंक का समूल नाश निश्चित है। यह आत्मसमर्पण उसी निर्णायक यात्रा की एक कड़ी है। अब नक्सली भी समझ चुके हैं कि हिंसा का रास्ता अंतहीन विनाश की ओर ले जाता है। अब नक्सली उग्रवाद की राह छोड़कर समाज की मुख्यधारा से जुड़ रहे हैं। हम इन आत्मसमर्पित साथियों के पुनर्वास और पुनरुत्थान के लिए पूर्णतः प्रतिबद्ध हैं।
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