बस्तर के बदलते दिन; 'नियद नेल्लानार योजना' बनी छत्तीसगढ़ को अंधेरे से उजाले तक पहुंचाने वाली योजना

बस्तर, जो पहले नक्सल हिंसा और असुरक्षा से जकड़ा था, अब बदलाव की ओर बढ़ रहा है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में ‘नियद नेल्लानार’ (आपका आदर्श गांव) योजना शुरू हुई। यह योजना बस्तर में शांति और विकास के रास्ते खोल रही है।

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छत्तीसगढ़ का बस्तर कभी ऐसा इलाका माना जाता था, जहां जाने भर से लोग डर जाते थे। सालों तक नक्सल हिंसा, गरीबी, अभाव और उपेक्षा ने इस अंचल को जकड़ रखा था। चारों तरफ घने जंगल, कठिन रास्ते, टूटी उम्मीदें और असुरक्षा का माहौल।

गांवों में सड़कें नहीं थीं। अस्पतालों में डॉक्टर नहीं थे। स्कूलों में पढ़ाई ठप रहती थी। कई गांव ऐसे थे, जहां बच्चे किताबों से दूर थे। बीमार लोग शहर तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते थे।

अब बस्तर का माहौल बदल चुका है। यह बदलाव अचानक नहीं आया। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में शुरू हुई नई सोच और निरंतर प्रयासों से अब छत्तीसगढ़ अंधेरे से निकलकर उजाले की ओर कदम बड़ा रहा है।

मुख्यमंत्री साय का मानना है कि किसी क्षेत्र में शांति तभी आती है, जब वहां विकास पहुंचता है। इसी सोच के साथ 15 फरवरी 2024 को शुरू हुई ‘नियद नेल्लानार’ (आपका आदर्श गांव) योजना ने बस्तर के हालात बदलने की दिशा (छत्तीसगढ़ सरकारी योजना) में निर्णायक कदम बढ़ाया है।

बस्तर में शांति लाने का मॉडल

आपको बता दें कि सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा और कांकेर जैसे जिले लंबे समय से नक्सलवाद के केंद्र माने जाते रहे हैं। यहां कई गांव ऐसे थे जहां प्रशासन कभी कदम नहीं रख पाया था।

मुख्यमंत्री साय के निर्देश पर इन क्षेत्रों में 54 नए सुरक्षा शिविर खोले गए। हर शिविर के आसपास 10 किलोमीटर के दायरे में बसे 327 गांवों को चुना गया और तय किया गया कि इन गांवों में योजनाओं का सौ प्रतिशत लाभ पहुंचाना है।

यह फैसला कई गांवों के इतिहास में पहली बड़ी सरकारी पहल बनी। जो गांव कभी मानचित्र में मौजूद तो थे, लेकिन विकास की सूची से गायब थे, वे आज योजनाओं के केंद्र बन रहे हैं।

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अब बच्चे स्कूल जाते हैं

बस्तर की सबसे बड़ी त्रासदी शिक्षा की कमी रही है। स्कूल कई जगह बंद पड़े थे। शिक्षक नहीं थे। बच्चे जोखिम उठाकर दूर-दूर तक पैदल चलते थे। ‘नियद नेल्लानार’ ने यह तस्वीर बदलनी शुरू कर दी है।

योजना के तहत 31 नए प्राथमिक विद्यालयों को स्वीकृति दी गई है, इनमें से 13 स्कूलों में कक्षाएं शुरू की गई हैं। 185 नए आंगनबाड़ी केंद्र मंजूर किए गए हैं। वहीं, 107 आंगनबाड़ी केंद्र चालू कराए गए हैं।

अब इन गांवों में बच्चों की हंसी गूंजती है। किताब, ड्रेस और कक्षाओं को देखकर माता-पिता खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों को पोषण, टीकाकरण और शुरुआती शिक्षा उपलब्ध है। जंगलों में बसे कई गांवों में पहली बार बच्चों को लिखना-पढ़ना सीखते देखना लोगों के लिए गर्व का क्षण बन गया है। 

गांवों तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच 

स्वास्थ्य सेवाओं का पहुंच जाना लोगों की जिंदगी बदल रहा है। पहले बस्तर में किसी बीमारी का मतलब था कि परिवार की परेशानी, लंबी दूरी और अनिश्चितता। एम्बुलेंस मिलना लगभग असंभव था।

डॉक्टरों की उपलब्धता बहुत कम थी। अब सरकारी प्रयासों ने इस स्थिति को काफी हद तक बदला है। बस्तर अंचल में 20 उप-स्वास्थ्य केंद्रों को मंजूरी दी गई है।

इनमें से 16 केंद्रों में सेवाएं शुरू भी हो चुकी हैं। 46 हजार 172 आयुष्मान कार्ड जारी किए गए हैं, जिससे 5 लाख रुपए तक का मुफ्त इलाज उपलब्ध है। गर्भवती महिलाओं की नियमित जांच और बच्चों का टीकाकरण अब गांवों में ही हो रहा है। 

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स्तर में बुनियादी ढांचे का विस्तार

दुर्गम रास्ते और कच्ची पगडंडियां कभी बस्तर की पहचान हुआ करती थीं। रोशनी की कमी और संचार व्यवस्था न के बराबर थी। आज हालात बदल रहे हैं। अंचल में 173 सड़क एवं पुल निर्माण प्रस्तावित हैं।

116 स्वीकृत किए जा चुके हैं। 26 योजनाएं पूरी हो गई हैं। जिन गांवों में कभी पैदल पहुंचना मुश्किल था, वहां अब पक्की सड़कें बन रही हैं। किसान अपना माल आसानी से बाजार तक ला पा रहे हैं और बच्चे साइकिल से स्कूल जा रहे हैं।

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घरों तक पहुंच रोशनी

बिजली और संचार के मामले में भी इस अंचल में बढ़ोतरी हुई है। 119 मोबाइल टॉवरों की स्वीकृति दी गई है। 43 टॉवर चालू किए जा चुके हैं। 144 हाईमास्ट लाइट्स स्वीकृत हैं, इनमें से 92 लाइटें लग चुकी हैं।

बस्तर के कई गांव अब पहली बार रात में रोशनी से भर उठे हैं। सड़कें और चौक उजाले से जगमगा रहे हैं। संचार सुविधा मिलने से लोगों को दुनिया से जुड़ने का अवसर मिला है। 

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सौर ऊर्जा से चल रहे पंप

सौर ऊर्जा आधारित पंपों के जरिए दूरस्थ गांवों में स्वच्छ पानी पहुंचाया जा रहा है। महिलाएं अब घंटों पैदल चलकर पानी भरने की मजबूरी से धीरे-धीरे मुक्त हो रही हैं। साय सरकार ने बस्तर के परिवारों को सुरक्षित घर उपलब्ध कराने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।

इसके तहत 12 हजार 232 मकानों का लक्ष्य रखा गया है। 5 हजार 984 परिवारों को स्वीकृति प्रदान की गई है। इससे उन परिवारों को राहत मिली है जो बरसात में छप्पर से टपकते पानी से जूझते थे।

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युवा अब भविष्य देख रहे

नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में युवाओं को हथियारों के बजाय रोजगार की जरूरत है और सरकार इसी दिशा में आगे बढ़ रही है। इसके लिए युवाओं को ट्रेनिंग दी जा रही है। वनोपज खरीद को बढ़ावा दिया जा रहा है।

सरकार महिलाओं को SHG के जरिए रोजगार दे रही है। 4 हजार 677 किसानों को किसान सम्मान निधि का लाभ मिल रहा है। 18 हजार 983 महिलाओं को गैस कनेक्शन दिए गए हैं।

इस तरह अब धुएं वाली रसोई की जगह गैस चूल्हे ने ले ली है, जिससे महिलाओं के जीवन में बड़ा सुधार हुआ है।

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लोकतंत्र से जुड़ रहा बस्तर

नियद नेल्लानार योजना का बड़ा असर यह है कि लोगों को उनके नागरिक अधिकार मिल रहे हैं। 70 हजार 954 आधार कार्ड बनाए गए हैं। 11 हजार 133 नए वोटर रजिस्टर्ड हैं। 46 हजार 172 लोगों को आयु प्रमाण पत्र दिए गए हैं। पहले जिन गांवों में लोगों के पास पहचान पत्र तक नहीं थे, वहां आज लोग योजनाओं और चुनावी प्रक्रिया में सक्रिय रूप से हिस्सा ले रहे हैं।

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सरकार और जनता के बीच की दूरी कम

पहले गांवों में सरकारी योजनाओं पर भरोसा नहीं था। अब स्थिति बिल्कुल अलग है। ग्रामीण स्कूल, आंगनबाड़ी, राशन दुकान और स्वास्थ्य केंद्रों की निगरानी खुद कर रहे हैं। लोग सवाल पूछ रहे हैं और खुद को जिम्मेदार मान रहे हैं।

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मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने लगातार बस्तर का दौरा किया, अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए और काम का मौके पर निरीक्षण किया। इससे संदेश गया कि यह योजना केवल कागज तक सीमित नहीं है।
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