छत्तीसगढ़ में इन दिनों अपराध और होम मिनिस्टर के ओएसडी दोनों अनकंट्रोल हैं। गृहमंत्री के ओएसडी अनंत साहू के हाथों में पूरा पुलिस महकमा खिलौने की तरह खेल रहा है। पुलिस महकमें को डीजीपी नहीं बल्कि ओएसडी चला रहे हैं। हालत तो ये है कि डीजीपी को बायपास कर पुलिस अफसरों का ट्रांसफर,पोस्टिंग तक हो रही है। यहां तक कि डीजीपी को भनक नहीं लगी और एक एडिशनल एसपी को सस्पेंड तक कर दिया गया।
प्रदेश में अपराधों की स्थिति तो ये हो गई है कि गृह मंत्री विजय शर्मा के गृह जिले में ही बड़े कांड हो गए हैं। कांड भी इतना बड़ा कि जिसमें सीएम ने कलेक्टर- एसपी के साथ ही पूरे थाने को हटा दिया। अनकंट्रोल क्राइम की हालत ये है कि राज्यपाल खुद जिलों में जाकर बैठक ले चुके हैं। गृहमंत्री रेंज में जाकर आईजी के साथ रेंज के सभी एसपी की बैठक बुला रहे हैं। अब पुलिस जैसे विभाग को डीजीपी की जगह ओएसडी चलाएंगे तो ऐसा ही होगा।
ओएसडी की अनंत मनमानी
गृहमंत्री विजय शर्मा के ओएसडी अनंत साहू जो खुद एडिशनल एसपी स्तर के अधिकारी हैं, वे पूरा पुलिस महकमा चला रहे हैं। पुलिस अफसरों के मुताबिक अनंत ने सभी एसपी और आईजी के वाट्सएप ग्रुप बना रखे हैं। गृहमंत्री के बंगले से सीधे एसपी और आईजी को मैसेज जाते हैं। इतना ही नहीं अनंत सीधे आईजी से रिपार्ट भी तलब कर रहे हैं। यानी जो काम डीजीपी अशोक जुनेजा को करना चाहिए वो सारा काम गृह मंत्री के ओएसडी कर रहे हैं।
मजे की बात ये भी है कि डीजीपी को तो पुलिस से जुड़े कई फैसलों की भनक तक नहीं लग पा रही है। हाल ही में कवर्धा में हुई घटना इसका ताजा उदाहरण है। सूत्र बताते हैं कि गृह मंत्री विजय शर्मा से चर्चा करने के बाद अनंत साहू ने कवर्धा एएसपी को सीधे सस्पेंड करवा दिया। एएसपी के सस्पेंड होने के बाद डीजीपी को इसकी जानकारी लगी। कवर्धा मामले को शांत करने के लिए जांच कराई गई तो पता चला एएसपी तो दोषी थे ही नहीं। इसके बाद एसपी और कलेक्टर को तत्काल प्रभाव से हटाया गया। सूत्र बताते हैं कि अब एएसपी को वापस बहाल करने की फाइल चल रही है।
क्या सिर्फ नाम के हैं डीजीपी
डीजीपी अशोक जुनेजा क्या सिर्फ नाम के लिए पुलिस मुखिया की कुर्सी पर बैठे हैं। यह सवाल प्रशासनिक गलियारों में तेजी से उठ रहा है। वो इसलिए क्योंकि उनका एक्सटेंशन तो राज्य सरकार की मर्जी के इतर दिल्ली की मर्जी से हुआ है। तो फिर डीजीपी आखिर इतने दबाव में क्यों हैं। जिस डीजीपी की तारीफ नक्सल कंट्रोल के लिए होती रही है वे क्यों उनसे बहुत जूनियर पुलिस अधिकारी से कंट्रोल हो रहे हैं। क्या सिर्फ इसलिए कि वे मंत्री के ओएसडी हैं। डीजीपी क्या अपने रिटायरमेंट का इंतजार कर रहे हैं इसलिए उनको बायपास कर लिए जा रहे फैसलों पर आपत्ति तक नहीं जता पा रहे हैं। सवाल यही है कि डीजीपी क्या सिर्फ नाम के लिए कुर्सी पर बैठे हैं।
मुश्किल में मंत्री
इन सब हालातों से कहीं गृहमंत्री के सितारे गर्दिश में तो नहीं आ गए हैं। एक कहावत है कि आगे पाट,पीछे सपाट। कुछ यही स्थिति इन गृहमंत्री की हो रही है। एक तरफ तो वे अपने कामों पर खुद की पीठ थपथपा रहे हैं तो दूसरी तरफ उनके गृह जिला ही उनके उपलब्धियों को मुंह चिढ़ा रहा है। ऐसा होना उनके लिए अच्छी बात नहीं कही जा सकती। उनको चिंता है कि कहीं ये घटनाएं उनको मुश्किल में न डाल दें। सीएम वैसे ही फॉर्म में नजर आ रहे हैं। सीएम के इस एक्शन से मंत्री टेंशन में है। वैसे भी कांग्रेस उनको मेकअप वाला मंत्री कहकर चिढ़ाने लगी है।
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