डी कंपनी के दबाव में सीएम हाउस, बिना इशारे प्रशासनिक गलियारों में नहीं हिलता पत्ता

छत्तीसगढ़ की सियासत में ''डी कंपनी'' का बढ़ता प्रभाव मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के लिए चिंता का विषय बन गया है। सरकारी कार्यों में बाधा और वसूली के आरोपों से सरकार की छवि प्रभावित हो रही है।

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Arun tiwari
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डी कंपनी
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छत्तीसगढ़ की सियासत में इन दिनों ''डी'' कंपनी की बहुत चर्चा है। चर्चा हो भी क्यों ना, डी कंपनी का प्रभाव और दबाव ही ऐसा है। प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में डी कंपनी की मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता। साय सरकार डी कंपनी के पूरी तरह प्रभाव और दबाव में है। 

डी कंपनी के कर्ताधर्ता सीएम विष्णुदेव साय के राइट हैंड माने जाते हैं। जिस तरह ''एस'' कंपनी ने भूपेश बघेल सरकार का भट्ठा बिठाया था, उसी तरह के हाल ''डी'' कंपनी विष्णु सरकार की कर सकती है। सीएम को इस डी कंपनी से सावधान रहने की बहुत जरुरत है। आखिर कौन है ये डी कंपनी, इसका खुलासा भी द सूत्र जल्द आपके सामने करेगा, लेकिन इसके लिए आपको अगली कड़ी का इंतजार करना पड़ेगा। 

''डी'' कंपनी के इशारों पर चल रही सत्ता 

डी कंपनी के कर्ताधर्ता मैनेजमेंट के बड़े खिलाड़ी माने जाते हैं। इसी मैनेजमेंट से वे पूरी सरकार और नौकरशाही को अपने इशारे पर नचा रहे हैं। जब वे कलेक्टर थे तो उनका नाम डीएमएफ की गड़बड़ी करने में भी आया था, लेकिन मैनजमेंट से सब सेटल हो गया। अब वे ऐसी जगह पर है, जहां पर सरकार के सारे सूत्र उनके हाथों में आ गए हैं। 

मुख्यमंत्री सरल हैं, सहज हैं, जिससे डी कंपनी ने उनके ऊपर अपना प्रभुत्व बना लिया है। इसी डी कंपनी के कारण सरकार का परसेप्शन जनता और बीजेपी कार्यकर्ताओं और नेताओं की नजरों में कुछ अलग तरह का बन गया है। सरकारी कार्यालयों में लोगों के काम नहीं हो पा रहे हैं। जनसमस्या निवारण पखवाड़ा हो या सीएम का जनदर्शन, छोटी छोटी समस्याओं को लेकर लाखों आवेदन आ रहे हैं। 

मंत्रियों पर खुलेआम तबादलों में लेनदेन के आरोप लगने लगे हैं। कार्यकर्ता दबी जुबान में कहते हैं कि पिछली सरकार में ले देकर काम हो जाता था,अपनी सरकार में तो जेब से पैसे भी जा रहे हैं और काम भी नहीं हो रहा। कार्यकर्ता तो दूर नेताओं की सुनवाई तक नहीं हो रही। डी कंपनी की माफिया से सांठगांठ और वसूली की बातें भी होने लगी हैं। 

भरोसेमंद सूत्र तो यह भी कह रहे हैं कि उन मंत्रियों के साथ बराबर संपर्क और समन्वय में है, जो सीएम पद के दावेदार माने जाते रहे हैं। डी कंपनी ने सरकार की इमेज कुछ ऐसी बना दी है कि जो न किसी के काम आ रही है और न ही किसी पर इसका नियंत्रण हैं, उल्टा वसूली और जोरों पर होने लगी है। द सूत्र का मकसद सीएम साहब को सावधान करना है कि ऐसा न हो कि डी कंपनी पर भरोसे और निर्भरता के कारण कोई बड़ी मुश्किल में आ जाएं। 

''एस'' कंपनी ने बघेल सरकार को डुबोया 

सियासत में ऐसे कई उदाहरण हैं, जब सत्ता किसी खास के प्रभाव में आ जाती है, जिसका उस पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। सरकार के मुखिया का सीधा और ईमानदार होना उसकी कमजोरी मान लिया जाता है। ऐसे लोग उनके करीबी हो जाते हैं जो सरकार की सेहत के लिए अच्छे नहीं माने जा सकते। विष्णु सरकार के पहले की भूपेश सरकार को भी ''एस'' कंपनी ने डुबो दिया। 

भूपेश सरकार के सत्ता से जाने के पीछे का बड़ा कारण उनके कार्यकाल में हुए घोटालों को माना गया। तत्कालीन सीएम भूपेश बघेल भी एस कंपनी पर पूरी तरह निर्भर हो गए थे। उनका नाम हर उस घोटाले से जोड़ा गया, जिसमें एस कंपनी शामिल थी। महादेव सट्टा एप घोटाले में भूपेश बघेल के खिलाफ मामला तक दर्ज किया गया। 

कोयला घोटाले में आरोपियों पर बयान देने का दबाव डाला जा रहा है कि वे यह कहें कि भ्रष्टाचार का पैसा ''एस'' के जरिए बघेल के पास जाता था। मामला इतना बढ‍ गया कि बघेल को सीजेआई को चिट्ठी लिखनी पड़ी कि उनको साजिश कर फंसाया जा रहा है। यह सब किया धरा उसी एस कंपनी का है। जिसने न सिर्फ सरकार को डुबोया बल्कि भूपेश बघेल को भी मुश्किल में डाल दिया। अब इसी तरह डी कंपनी नई सरकार और नए सीएम को अपने प्रभाव में लेकर खेला कर रही है।

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