हिंसा के अंधियारे से निकलकर विकास की रोशनी की ओर बढ़ रहा छत्तीसगढ़, बस्तर में अब विकास की बयार

छत्तीसगढ़ के गठन के 25 वर्षों में बस्तर की स्थिति में बड़ा बदलाव आया है। पहले यह क्षेत्र नक्सलवाद का गढ़ था, जहां बंदूक और हिंसा के चलते विकास की संभावना मुश्किल थी। आदिवासी परिवारों ने दशकों तक भय के साए में जीवन बिताया।

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रायपुर. छत्तीसगढ़ के गठन के 25 वर्ष पूरे होने के साथ ही बस्तर की तस्वीर भी तेजी से बदल रही है। एक समय था, जब यह इलाका देश में नक्सलवाद के गढ़ के रूप में जाना जाता था। बंदूक और हिंसा के साये में यहां विकास का नाम लेना भी मुश्किल था। आदिवासी परिवार दशकों तक भय में जीते रहे। 

बच्चे स्कूलों से दूर रहे। गांवों में सड़क, बिजली, पानी और अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधाएं सपना बन गई थीं। आज वही बस्तर नई सुबह देख रहा है। सरकार के सख्त इरादे और सुरक्षा बलों की मजबूत रणनीति से यहां शांति लौट रही है और विकास का पहिया तेज रफ्तार से घूमने लगा है।

हाल ही में नारायणपुर जिले के नक्सल प्रभावित अबूझमाड़ क्षेत्र से बड़ी खबर आई है। पुलिस के सामने 16 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया। इन पर 70 लाख रुपए का इनाम घोषित था और इनमें 7 महिला नक्सली भी शामिल थीं। लंबे समय से सक्रिय ये नक्सली अब मुख्यधारा में लौटने को तैयार हो गए हैं। यह इस बात का साफ संकेत है कि माओवादी ताकतें कमजोर पड़ चुकी हैं।

दशकों की हिंसा से गहराया जख्म

बस्तर में पिछले चार दशकों में नक्सलियों ने विकास की हर कोशिश को रोकने के लिए षड्यंत्र रचे। बंदूक के दम पर उन्होंने गांवों में आतंक फैलाया। झूठे विचारों से भोले-भाले आदिवासियों को बहकाया। स्कूल तोड़े, बच्चों को पढ़ने से रोका और युवाओं को हथियार थमा दिए। बेटियों को उठा ले गए, महिलाओं का जीवन तबाह किया। इस डर और हिंसा ने बस्तर को संसाधनों के बावजूद देश के सबसे पिछड़े इलाकों में धकेल दिया।

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बारूदी सुरंगों से मौत का खेल

नक्सली विकास के सबसे बड़े दुश्मन बने रहे। उन्होंने पुलों और सड़कों को उड़ाने के लिए विस्फोटक लगाए। बारूदी सुरंगों से आम लोगों और सुरक्षा बलों को निशाना बनाया। 2003 से अब तक इन सुरंगों की चपेट में आकर 147 लोगों की जान जा चुकी है और 306 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं। 4 हजार 173 बारूदी सुरंगें अब तक खोजकर नष्ट की जा चुकी हैं।

स्कूलों में गूंजने लगी बच्चों की आवाज

नक्सलियों को हमेशा डर था कि अगर बच्चे पढ़-लिख गए तो उनके झूठे विचारों का पर्दाफाश हो जाएगा। इसलिए उन्होंने स्कूलों को निशाना बनाया। दो दशकों में 200 से ज्यादा स्कूलों को नुकसान पहुंचाया गया। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। बस्तर में साढ़े तीन सौ से ज्यादा बंद स्कूल दोबारा खुल चुके हैं। बच्चों के चेहरों पर लौटी मुस्कान इस बात का प्रमाण है कि बदलाव की बयार बस्तर में चल पड़ी है।

डेढ़ साल में निर्णायक मोड़

सीएम साय की अगुआई में सरकार ने डेढ़ साल में निर्णायक अभियान चलाया है। इस दौरान 435 से ज्यादा नक्सली मुठभेड़ों में मारे गए। 1,432 से अधिक ने आत्मसमर्पण किया और करीब 1,457 नक्सली गिरफ्तार किए गए। सबसे बड़ी सफलता माओवादियों के केंद्रीय समिति के महासचिव बसवराजू को न्यूट्रलाइज करना रही। इसके अलावा बीजापुर के कर्रेगुड़ा में 31 नक्सलियों के मारे जाने को माओवादी आतंक पर निर्णायक प्रहार माना जा रहा है।

आत्मसमर्पित नक्सलियों के लिए बेहतर नीति

छत्तीसगढ़ सरकार ने आत्मसमर्पण करने वालों के लिए खास पुनर्वास नीति लागू की है। इसके तहत तीन साल तक हर माह दस हजार रुपये स्टाइपेंड, कौशल विकास प्रशिक्षण और स्वरोजगार से जोड़ने की सुविधा दी जा रही है। साथ ही नकद इनाम और जमीन का प्रावधान भी रखा गया है। सरकार का लक्ष्य मार्च 2026 तक प्रदेश को नक्सलवाद से पूरी तरह मुक्त करना है।

‘नियद नेल्ला नार’ योजना से गांवों में बदलाव

सरकार की नियद नेल्ला नार योजना इस बदलाव में अहम भूमिका निभा रही है। इसका मतलब होता है — “आपका अच्छा गांव”। इस योजना के तहत 54 सुरक्षा कैंपों के 10 किलोमीटर के दायरे में 327 से अधिक गांवों में सड़क, बिजली, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, राशन कार्ड, आधार कार्ड, किसान कार्ड, प्रधानमंत्री आवास, मोबाइल टावर और वन अधिकार पट्टों जैसी सुविधाएं पहुंचाई जा रही हैं।

अब तक 81 हजार से अधिक ग्रामीणों के आधार कार्ड बने, 42 हजार से ज्यादा लोगों को आयुष्मान कार्ड मिला, 5 हजार से अधिक परिवारों को किसान सम्मान निधि और 98 हजार से अधिक हितग्राहियों को राशन कार्ड जारी किए गए हैं।

पुलों और सड़कों से जुड़ा बस्तर

कनेक्टिविटी बढ़ने से बस्तर का चेहरा बदल गया है। माओवाद प्रभावित इलाकों में 275 किलोमीटर लंबी 49 सड़कें और 11 पुल बन चुके हैं। केशकाल घाटी का चौड़ीकरण और इंद्रावती नदी पर नए पुल से आवाजाही आसान हुई है। रावघाट से जगदलपुर तक 140 किलोमीटर नई रेल लाइन को मंजूरी मिली है। तेलंगाना के कोठागुडेम से दंतेवाड़ा किरंदूल तक 160 किलोमीटर रेल लाइन का सर्वे अंतिम चरण में है। इसमें 138 किलोमीटर हिस्सा छत्तीसगढ़ में है। साथ ही 607 मोबाइल टावर काम कर रहे हैं जिनमें से 349 टावर 4जी में बदले जा चुके हैं।

बोधघाट परियोजना से नई उम्मीद

बस्तर की जीवनदायिनी इंद्रावती नदी पर प्रस्तावित बोधघाट परियोजना को लेकर मुख्यमंत्री साय ने पहल शुरू कर दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर उन्होंने इस परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना में शामिल करने का आग्रह किया है। 50 हजार करोड़ की लागत वाली इस परियोजना से बस्तर में सिंचाई सुविधा बढ़ेगी और बिजली उत्पादन भी होगा। साथ ही इंद्रावती और महानदी को जोड़ने का प्रस्ताव भी तैयार है।

आर्थिक मोर्चे पर भी बड़ा बदलाव

आर्थिक रूप से भी बस्तर मजबूत हो रहा है। तेंदूपत्ता मानक बोरे की दर 4 हजार रुपये से बढ़ाकर 5 हजार 500 रुपये कर दी गई है, जिससे 13 लाख परिवारों को फायदा हो रहा है। तेंदूपत्ता संग्रहकों के लिए चरण पादुका योजना फिर से शुरू की गई है।

मुख्यमंत्री कौशल विकास योजना के तहत 90 हजार से अधिक युवाओं को प्रशिक्षण दिया गया और 39 हजार से अधिक युवाओं को रोजगार मिला है। नई उद्योग नीति 2024–30 में बस्तर के लिए विशेष पैकेज रखा गया है। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को 45 प्रतिशत पूंजी अनुदान और आत्मसमर्पित नक्सलियों को रोजगार देने पर पांच वर्षों तक 40 प्रतिशत वेतन सब्सिडी दी जा रही है।

संस्कृति और खेल को मिली नई उड़ान

बस्तर में बदलाव केवल सुरक्षा या विकास तक सीमित नहीं रहा। यहां संस्कृति और खेल को भी नई ऊर्जा मिली है। बस्तर ओलंपिक में 1.65 लाख से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। बस्तर पंडुम में 47 हजार कलाकारों ने जनजातीय संस्कृति को वैश्विक मंच दिया। बैगा, गुनिया और सिरहा जैसे पारंपरिक जनजातीय जनों को 5000 रुपये वार्षिक सम्मान निधि दी जा रही है।

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