रायपुर. अडानी के बाद सरकार बिड़ला पर मेहरबान होने जा रही है। बिड़ला ने सवा सौ साल पहले बने डेम के कैचमेंट में 1700 एकड़ जमीन खरीदी है। इस जमीन पर अल्ट्राटेक सीमेंट का प्लांट लगाने की तैयारी है।
कंपनी को सरकार की एनओसी का इंतजार है। यहां के लोग सीमेंट प्लांट का विरोध कर रहे हैं। इन लोगों ने सरकार से अनुमति न देने की गुहार लगाई है। इन लोगों को अनुमति का डर इसलिए है क्योंकि पहले भी प्रदेश की बीजेपी सरकार इसे दो बार एनओसी दे चुकी है।
अब प्रदेश में फिर बीजेपी की सरकार है। यहां पर फिर बड़े आंदोलन की जमीन तैयार होने लगी है। यानी सरकार का एक फैसला 15 हजार एकड़ जमीन को बंजर कर देगा।
डेम के कैचमेंट में बिड़ला ने खरीदी जमीन
रायपुर जिले के सवा सौ साल पुराने पेंड्रावन डेम के कैचमेंट एरिया में बिड़ला ने 689 हेक्टेयर यानी 1700 एकड़ जमीन किसानों से खरीदी है। इस जमीन पर अल्ट्राटेक सीमेंट प्लांट और लाइम स्टोन की माइनिंग प्रस्तावित है।
यदि सरकार ने इसकी अनुमति दे दी तो यहां के दर्जनों किसानों की आजीविका पर संकट आ जाएगा। माइनिंग होने से डेम के जलभराव में कमी आ जाएगी। इस डेम से हजारों एकड़ जमीन में सिंचाई होती है। यह जमीन बंजर होने की स्थति में पहुंच जाएगी।
जब भी बीजेपी सरकार आती है तो यहां के लोगों के मन में डर बैठ जाता है कि यह प्लांट शुरु होने वाला है। यहां के लोग अब जनआंदोलन की तैयारी करने लगे हैं। पेंड्रावन बचाओ समिति के सचिव घनश्याम वर्मा कहते हैं कि इस डेम से 15 हजार एकड़ जमीन को पानी मिलता है।
यदि ये प्लांट लग गया तो यह जमीन बंजर हो जाएगी। वर्मा ने कहा कि पेंड्रावन डेम के आसपास दर्जनों गांव के लोग इसके विरोध में है यदि सरकार ने एनओसी दी तो बड़ा जनआंदोलन खड़ा हो जाएगा।
16 साल पुराना मसला
दरअसल, ये मामला 16 साल पुराना है। 2008 में इस जगह पर सीमेंट प्लांट लगाने की बात शुरु हुई। 2015 में तत्कालीन रमन सरकार ने बिड़ला को एनओसी जारी कर दी। तब विरोध हुआ और एनओसी निरस्त कर दी गई। इसके बाद 2017 में फिर सरकार ने अनुमति दे दी। तब भी प्रदेश में बीजेपी की रमन सरकार थी।
रमन सरकार के जल संसाधन विभाग ने 3 जनवरी 2017 को इस कंपनी को एनओसी जारी कर दी। किसानों के बड़े आंदोलन और स्थानीय विधायक के विरोध के बाद 20 मार्च 2017 को तत्कालीन जल संसाधन मंत्री ने इसकी एनओसी निरस्त कर दी।
कंपनी ने सरकार के इस आदेश को हाईाकोर्ट में चुनौती दे दी। हाईकोर्ट ने 25 अप्रैल 2024 को सरकार के आदेश को खारिज करते हुए जल संसाधन विभाग से कहा कि वो कंपनी को सुनने का अवसर दे और तीन महीने में इस मामले पर फिर फैसला ले। अदालत के इस फैसले के बाद इस पूरे मामले पर विभागीय कार्रवाई फिर शुरु हो गई है।
किसान बोले अंग्रेजों ने हमारे लिए डेम बनवाया और हमारी सरकार इसे खत्म कर रही है
रायपुर से 50 किलोमीटर दूर खरोरा और सारागांव क्षेत्र में 1909 में महारानी विक्टोरिया ने किसानों के लिए इस डेम का निर्माण कराया था।
इस डेम से सीधे तौर पर 2440 किसानों की 3440 हेक्टेयर यानी 6100 एकड़ जमीन सिंचित होती है। दर्जनों गांवों को पानी मिलता है और वॉटर लेवल रिचार्ज होता है। पेंड्रावन सिंचाई परियोजना से 15 हजार एकड़ जमीन की सिंचाई होती है। इस डेम का जलग्रहण क्षेत्र 25.47 वर्ग किलेामीटर है और इसका टैंक 85 फीसदी है।
यदि यहां पर सीमेंट प्लांट लग जाता है तो इसका क्षेत्र महज 8 वर्ग किलोमीटर और जल भराव टैंक 32 फीसदी ही रह जाएगा। यहां पर सीमेंट प्लांट लगेगा और माइनिंग होगी तो बड़े पैमाने पर ब्लास्ट किया जाएगा। इस ब्लास्ट से डेम का वजूद ही खत्म हो जाएगा।
इस डेम के ओवरफ्लो से तीन और डेम भरते हैं। इसके अलावा आसपास की जमीन के पानी से इस डेम में भराव होता है। इस प्लांट के बाद पानी भराव के सारे स्त्रोत नष्ट हो जाएंगे। डेम खत्म हो जाएगा तो इससे सिंचित होने वाली 15 हजार एकड़ जमीन बंजर हो जाएगी।
यहां के किसानों पर रोजी रोटी का संकट पैदा हो जाएगा। पेंड्रावन बचाओ समिति के अध्यक्ष निल नायक कहते हैँ कि अंग्रेजों ने किसानों के हित के लिए डेम बनवाया और आजाद भारत की हमारी सरकार उस डेम को खत्म कर किसानों को संकट में डाल रही है।
महारानी विक्टोरिया ने ही इस डेम का लोकार्पण कर किसानों को समर्पित किया था। अब हमारी सरकार एक फैसला किसानों पर कुठाराघात कर देगा और उन पर रोजी रोटी का संकट आ जाएगा।
अब यदि इस डेम के कैचमेंट की 1700 एकड़ जमीन पर बिड़ला का सीमेंट प्लांट लगेगा तो फिर किसानों के हिस्से में क्या रह जाएगा। किसान कहते हैँ कि सरकार औद्योगिकीकरण को बढ़ावा दे लेकिन किसानों का भी तो ध्यान रखे। सरकार यदि बिड़ला पर मेहरबान होगी तो हम जैसे छोटे और गरीब किसान किसके पास जाएंगे।
सीएम से लगाई गुहार
पेंड्रावन बचाओ समिति ने एक बार फिर सीएम विष्णुदेव साय और जल संसाधन मंत्री केदार कश्यप से गुहार लगाई है। समिति ने मांग की है कि किसानों के हित को देखते हुए न सिर्फ एनओसी न देने का फैसला लिया जाए, बल्कि इस जमीन पर दी गई लीज भी निरस्त की जाए।
समिति ने चेतावनी भी दी है कि यदि उनकी मांग नहीं मानी गई तो अबकी बार पिछली बार से बड़ा आंदोलन होगा जिसकी तैयारी तीन दर्जन गांव के लोग करने लगे हैं।