25 साल में छत्तीसगढ़ की सेहत में क्रांति, कभी बीमारियों से जूझता राज्य अब हेल्थ मॉडल की ओर बढ़ रहा

छत्तीसगढ़ ने 25 वर्षों में स्वास्थ्य क्षेत्र में अभूतपूर्व बदलाव देखा है। आज राज्य हेल्थ मॉडल के रूप में उभर रहा है। स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार, मेडिकल कॉलेजों की संख्या में वृद्धि, और मातृ-शिशु मृत्यु दर में गिरावट, इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

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Raipur. कभी छत्तीसगढ़ की पहचान पिछड़ेपन और स्वास्थ्य संकट से होती थी। गांवों में इलाज की कोई सुविधा नहीं थी। लोग बीमार पड़ते तो दूर-दराज के शहरों तक पहुंचने में दिन लग जाते थे। डॉक्टरों की भारी कमी थी। अस्पतालों में उपकरण नहीं थे और गर्भवती महिलाओं के लिए सुरक्षित प्रसव का सपना बहुत दूर था। 1 नवंबर 2000 को राज्य गठन के वक्त मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक थी।

अब 25 साल बाद तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है। स्वास्थ्य सेवाएं गांव-गांव तक पहुंच चुकी हैं। मेडिकल कॉलेज आकार ले रहे हैं। 2025 में छत्तीसगढ़ अपने रजत जयंती वर्ष में है और अब मॉडल हेल्थ स्टेट बनने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। इस बदलाव में छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की सरकार की स्वास्थ्य नीति और बीते दो दशकों के सतत प्रयासों की बड़ी भूमिका है।

इस तरह बदली स्थिति

आपको बता दें कि जब छत्तीसगढ़ अस्तित्व में आया था, तब यहां की तस्वीर किसी भी विकसित राज्य जैसी नहीं थी। स्वास्थ्य सेवाओं की हालत बेहद कमजोर थी। स्वास्थ्य सूचकांक सिर्फ 0.585 था। शिशु मृत्यु दर प्रति हजार जीवित जन्म पर 67 थी और कुल प्रजनन दर 3.0 के आसपास थी। इससे भी बड़ी चुनौती नक्सल प्रभावित इलाकों में थी, जहां पीएचसी और सीएचसी जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं थीं। उस दौर में पूरे प्रदेश में सिर्फ 6 जिला अस्पताल थे।

आज, यानी 2025 में तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है। स्वास्थ्य सूचकांक बढ़कर 0.672 पर पहुंच गया है। शिशु मृत्यु दर घटकर प्रति हजार जीवित जन्म पर 38 रह गई है। कुल प्रजनन दर स्थिर हो गई है। पीएचसी और सीएचसी का बड़ा नेटवर्क नक्सल प्रभावित इलाकों तक पहुंच चुका है। जिला अस्पतालों की संख्या 6 से बढ़कर 27 हो चुकी है।

मेडिकल शिक्षा का नेटवर्क अब हर जिले में

गठन के समय छत्तीसगढ़ में केवल 1 मेडिकल कॉलेज था, अब यह संख्या बढ़कर 15 हो गई है। नर्सिंग कॉलेजों की संख्या 60 से अधिक हो चुकी है। नर्सिंग की सीटें 4 गुना बढ़ी हैं। पैरामेडिकल कॉलेज और ANM/GNM ट्रेनिंग सेंटरों की संख्या में भी बड़ी वृद्धि हुई है। अब हर जिले में जिला अस्पताल और स्पेशियलिटी सेवाएं मौजूद हैं। रायपुर, बिलासपुर और जगदलपुर जैसे बड़े शहरों में सुपर स्पेशियलिटी विंग भी काम कर रहे हैं।

2000 में जहां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या 700 थी, अब यह आंकड़ा 2,500 के पार पहुंच गया है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHC) की संख्या भी 300 से अधिक हो चुकी है। 2001-02 में 6 जिला अस्पताल थे, जबकि 2025-26 तक इनकी संख्या 27 तक पहुंच गई है। यह बदलाव सिर्फ आंकड़ों में नहीं, बल्कि हर गांव-घर की जिंदगी में महसूस किया जा सकता है।

77 लाख परिवारों को स्वास्थ्य सुरक्षा

स्वास्थ्य सुरक्षा को हर परिवार तक पहुंचाने के लिए सरकार ने योजनाओं को आधार बनाया। आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन-आरोग्य योजना और शहीद वीर नारायण सिंह आयुष्मान स्वास्थ्य योजना के तहत प्रदेश के 77 लाख 20 हजार से ज्यादा परिवारों को बीमा सुरक्षा दी गई है।

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अटल नगर नवा रायपुर में 200 एकड़ भूमि पर 5,000 बेड वाला अत्याधुनिक मेडिसिटी अस्पताल बनने की तैयारी है। वहीं 141 एकड़ भूमि पर फार्मास्यूटिकल पार्क विकसित किया जा रहा है, जिससे नवा रायपुर को मध्य भारत के फार्मास्यूटिकल हब के रूप में स्थापित करने की दिशा में कदम बढ़ चुका है। इससे रोजगार और चिकित्सा दोनों को मजबूती मिलेगी।

अस्पतालों का किया विस्तार

प्रदेश में अस्पतालों के विस्तार पर बड़े स्तर पर काम हुआ है। बिलासपुर में सिम्स के विस्तार के लिए 200 करोड़ रुपए से काम शुरू हो चुका है। रायपुर के डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल में 700 बिस्तर बढ़ाने के लिए 231 करोड़ रुपए का टेंडर जारी हुआ है। विस्तार के बाद यह अस्पताल कुल 2,000 बेड की क्षमता वाला होगा।

राज्य सरकार ने जांजगीर-चांपा, कबीरधाम, मनेंद्रगढ़ और गीदम में चार नए मेडिकल कॉलेजों के निर्माण के लिए 1,020 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। मेडिकल शिक्षा पर इस फोकस ने डॉक्टरों की कमी को तेजी से कम किया है।

टीकाकरण के क्षेत्र में भी राज्य अग्रणी है। यहां 96.54 प्रतिशत टीकाकरण पूरा हो चुका है, जो देश के कई राज्यों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन है।

डॉक्टर और नर्स गांव-गांव तक

पहले डॉक्टरों की कमी इतनी थी कि कई जिलों में मरीजों को इलाज के लिए बड़े शहरों पर निर्भर रहना पड़ता था। अब हर जिले में मेडिकल कॉलेज और नर्सिंग संस्थानों के विस्तार ने हालात बदल दिए हैं। बिलासपुर, जगदलपुर, अंबिकापुर, राजनांदगांव, कोरबा, महासमुंद, कांकेर, जांजगीर और कवर्धा जैसे शहरों में मेडिकल कॉलेज काम कर रहे हैं।

पोस्टग्रेजुएट (MD/MS) सीटें भी बढ़ाई गई हैं, जिससे विशेषज्ञ डॉक्टर तैयार हो रहे हैं। नर्सिंग कॉलेजों और पैरामेडिकल संस्थानों से हर साल हजारों प्रशिक्षित युवा निकल रहे हैं, जिनमें बड़ी संख्या ग्रामीण और आदिवासी इलाकों की है। इससे स्वास्थ्य सेवाओं में न सिर्फ गुणवत्ता बढ़ी है, बल्कि स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर भी मिले हैं।

मातृ और शिशु स्वास्थ्य में सुधार

राज्य ने मातृ और शिशु स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी। हर ब्लॉक में प्रसूति गृह और नवजात शिशु वार्ड की व्यवस्था की गई। जननी सुरक्षा योजना और जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम ने लाखों गर्भवती महिलाओं को समय पर इलाज और सुरक्षित प्रसव का अवसर दिया है।
इस फोकस का नतीजा यह हुआ कि मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर में 50 प्रतिशत से अधिक की कमी दर्ज की गई है। जो महिलाएं पहले प्रसव के समय असमय मौत का शिकार हो जाती थीं, अब उन्हें सुरक्षित माहौल और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं मिल रही हैं।

मुफ्त इलाज और बीमा कवरेज

इलाज के खर्च को लेकर अब लोगों को कर्ज नहीं लेना पड़ता। आयुष्मान भारत योजना के तहत 5 लाख रुपए तक मुफ्त इलाज की सुविधा दी जा रही है। मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना ने गरीब और मध्यम वर्ग को बड़ी राहत दी है। डिजिटल हेल्थ कार्ड के जरिये अब मरीजों को कैशलेस इलाज की सुविधा मिल रही है। बड़े शहरों के अस्पतालों में भी ग्रामीण मरीज आसानी से इलाज करवा पा रहे हैं।

डिजिटल हेल्थ और टेलीमेडिसिन

दूरस्थ और नक्सल प्रभावित इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने के लिए तकनीक को हथियार बनाया गया है। बस्तर और सरगुजा जैसे इलाकों में टेलीमेडिसिन से लोग विशेषज्ञ डॉक्टरों से ऑनलाइन परामर्श ले पा रहे हैं। ई-फार्मेसी और ऑनलाइन दवा वितरण ने दवाइयां घर तक पहुंचाना आसान बना दिया है। इससे उन लोगों को भी स्वास्थ्य सुविधाएं मिल रही हैं जो पहले शहरों तक नहीं आ पाते थे।

नक्सल क्षेत्रों में स्वास्थ्य की नई राह

जहां कभी बस्तर और अन्य नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच बेहद सीमित थी, अब वहीं मोबाइल हेल्थ यूनिट्स गांवों तक पहुंच रही हैं। इन यूनिट्स में मिनी अस्पताल जैसी सुविधाएं हैं और मौके पर ही मरीजों का इलाज किया जा रहा है। 1,000 से अधिक उपकेंद्रों का नवीनीकरण पूरा हो चुका है। स्थानीय युवाओं को नर्सिंग और पैरामेडिकल प्रशिक्षण देकर वहीं स्वास्थ्य सेवाओं से जोड़ा जा रहा है। इससे इन इलाकों में स्वास्थ्य व्यवस्था स्थायी रूप से मजबूत हो रही है।

मेडिकल टूरिज्म को बढ़ावा

रायपुर का अंबेडकर अस्पताल अब सुपर स्पेशियलिटी सेंटर में बदल चुका है। यहां हृदय, कैंसर, किडनी, न्यूरो और हड्डी रोगों का उन्नत इलाज हो रहा है। बिलासपुर और जगदलपुर में भी सुपर स्पेशियलिटी विंग तैयार हैं। आसपास के राज्यों के मरीज भी अब छत्तीसगढ़ में इलाज के लिए आ रहे हैं। इससे प्रदेश मेडिकल टूरिज्म का उभरता हुआ केंद्र बन गया है, जिससे स्वास्थ्य क्षेत्र के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को भी नई गति मिली है।

भविष्य की प्राथमिकताएं

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने आने वाले वर्षों के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र में बड़े लक्ष्य तय किए हैं। हर जिले में मेडिकल कॉलेज स्थापित करने की दिशा में काम जारी है। डिजिटल हेल्थ मिशन को गांव-गांव तक पहुंचाने की योजना है। मातृ और शिशु मृत्यु दर को राष्ट्रीय औसत से नीचे लाने का लक्ष्य रखा गया है।
राज्य सरकार स्वास्थ्य पर्यटन को बढ़ावा देने और सुपर स्पेशियलिटी अस्पतालों का व्यापक नेटवर्क तैयार करने की दिशा में भी काम कर रही है। फार्मा सेक्टर में निवेश से नवा रायपुर को मेडिकल इंडस्ट्री का हब बनाने की योजना है।

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