रायपुर. रायपुर तहसीलदार पर राज्य सूचना आयोग ने 25000 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है। खास बात यह है कि साल 2023 में लिए गए फैसले की प्रति याचिकाकर्ता को 15 जुलाई 2024 को मिली हैI बड़ी खबर ये है कि सूचना का अधिकार के तहत सूचना के सिपाही को सूचना दिए जाने से तत्कालीन सरकार ( मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ) के सर्कुलर के खिलाफ चूंकि सबूत बनते शायद इसीलिए रायपुर तहसीलदार ने न द्वितीय अपील की तारीख तक सूचना दी और न ही आयोग की सुनवाई के समक्ष उपस्थित हुएI
जानिए मामला कितने करोड़ रुपए का
सूचना का अधिकार के सिपाही संजीव अग्रवाल ने रायपुर तहसील कार्यालय से जानकारी चाही थी कि HBN की भूमि के नीलामी के लिए किस-किस समाचार पत्र में किन-किन तारीखों में विज्ञापन / अधिसूचना जारी किया गयाI यह जानकारी आखिरकार नहीं दी गईI याचिकाकर्ता के मुताबिक 55-60 करोड़ की भूमि अपने लोगों को 5-7 करोड़ में दे दी गई थीI
HBN कम्पनी कौन और कितनी भूमि
HBN एक चिटफंड कम्पनी थीI खसरा नंबर 288/52 रकबा 0.250 हेक्टेयर, खसरा नंबर 288/54 रकबा 0.113 हेक्टेयर, खसरा नंबर 288/56 रकबा 0.250 हेक्टेयर, खसरा नंबर 313/4 रकबा 0.109 हेक्टेयरI (अनुमानित बाजार कीमत 55-60 करोड़, काफी कम कीमत में निजी लोगों को देने का आरोप )
राज्य सूचना आयोग ने आदेश में क्या लिखा -
राज्य सूचना आयोग ने मामले की जांच में पाया कि सूचना का अधिकार के सिपाही को सूचना तीस दिनों में भी नहीं दी गई, और तो और बुलाए जाने के बाद भी आयोग के समक्ष जन सूचना अधिकारी ( तहसीलदार ) उपस्थिति नहीं हुएI आयोग ने जन सूचना अधिकारी को लिखा कि आपके खिलाफ एक पक्षीय कार्रवाई की जा रही हैI आवेदक को चाही गई जानकारी देकर, आयोग को पालन प्रतिवेदन प्रेषित करेंI आयोग ने फैसले के बारे में कलेक्टर ( लोक प्राधिकारी ) को लिखा कि अर्थ दंड की राशि दोषी जन सूचना अधिकारी से वसूल कर शासन के कोष में जमा करेंI
कांग्रेस के घोषणा पत्र में था चिटफंड कम्पनी से लूटे-पीटे गए लोगों को रुपए वापस दिलवाएगी-
अपने कार्यकाल के दौरान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने चिट फंड कम्पनी के पीड़ितों को रुपए वापस दिलवा दिए का जिक्र कई बार किया, लेकिन, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के अहम फैसले के बाद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की सरकार ने तत्कालीन सरकार के फैसले को बदलकर उन्हें आइना दिखाने कि कोशिश की हैI
बीजेपी नेता वर्तमान में विधायक सुशांत शुक्ला ने लगाई थी जनहित याचिका
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य शासन का जवाब मिलने के बाद मामले का निराकरण कर दिया थाI याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने अदालत को बताया था कि यदि, गरीबी रेखा से ऊपर का कोई भी व्यक्ति/आवेदक प्रक्रिया में भागीदार है तो सरकारी भूमि आबंटित नहीं की जा सकतीI एक दूसरा तथ्य यह दिया गया था कि समान पद वाले व्यक्तियों / संस्थाओं को समान अवसर दिए बिना कोई भी सरकारी भूमि आबंटित नहीं की जा सकतीI उक्त तथ्यों की अवहेलना तो हुई थीI बस, इसीलिए तत्कालीन सरकार के फैसले को रद्द किया छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट नेI
कैबिनेट के फैसले में क्या- क्या
कांग्रेस के शासनकाल में सरकारी जमीन आबंटन को लेकर जारी किए गए सर्कुलर को निरस्त किया गया हैI यह सर्कुलर 11 सितंबर 2019 को जारी किया गया थाI इस सर्कुलर में राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा नगरीय इलाकों में अतिक्रमित भूमि के व्यवस्थापन, शासकीय भूमि के आबंटन एवं वार्षिक भू भाटक क़े निर्धारण एवं वसूली की प्रक्रिया जारी की गई थीI दूसरा सर्कुलर 26 अक्टूबर 2019 को जारी किया गया थाI तीसरा सर्कुलर 20 मई 2020 को जारी किया गया थाI इन सर्कुलर के जरिए नगरीय इलाकों में दिए गये स्थायी पट्टों का भूमि स्वामी का हक़ दिया जाना थाI इसी तरह, नजुल के स्थाई पट्टों की जमीन को भूमि स्वामी के हक में परिवर्तित करने के संबंध में भी सर्कुलर जारी किया गया थाI तीनों ही सर्कुलर को निरस्त करके, निरस्ती निरस्ती आदेश में कहा गया है कि इस बारे में आपत्ति या शिकायत की सुनवाई संभागीय आयुक्त द्वारा की जाएगीI