रायपुर. सीजीपीएससी गड़बड़ी और गल्तियों का आयोग बन गया है। आयोग युवाओं को नौकरी देने की जगह उनके सपनों को तोड़ने का काम कर रहा है।
लाखों रुपए की मोटी तनख्वाह पाने वाले आयोग में बैठे लोगों की कार्यशैली पर फिर से सवाल उठने लगे हैं। एक तो पीएससी घोटाले की जांच सीबीआई कर रही है उपर से आयोग के कामकाज में सुधार नजर नहीं आ रहा है।
एक साल से आयोग में कोई नई भर्तियां नहीं निकल पाई हैं। उपर से जो परीक्षा हुई है उसमें 150 में से 14 सवालों में गल्तियां हैं।
पिछले छह सालों में आयोग की परीक्षाओं के 52 सवाल ऐसे रहे हैं जो विलोपित हुए हैं। आयोग से जुड़े 700 से ज्यादा प्रकरण हाईकोर्ट में लंबित हैं।
आयोग के पास न पूर्णकालिक अध्यक्ष है और न ही सदस्यों का कोरम पूरा है। आइए आपको दिखाते हैं सीजीपीएससी की पूरी कार्यप्रणाली और उस पर उठे सवालों से जुड़ी पूरी रिपोर्ट।
6 साल में 52 सवाल विलोपित
आयोग का काम कर्मचारी नहीं बल्कि अफसर तैयार करने का है। इसीलिए आयोग के कामकाज को फुलप्रूफ बनाया गया है। लेकिन सीजीपीएससी के कामकाज में सिवाए लूपहोल्स के कुछ नजर नहीं आता।
आयोग भर्ती परीक्षा के सवाल विशेषज्ञों से तैयार करवाता है। इसकी मॉनिटरिंग के लिए भी कमेटी है। लेकिन इसके बाद भी पीएससी प्रिलिम्स की परीक्षा में पिछले छह साल में 52 सवाल गलत आए हैं, जिनको विलोपित किया गया है।
पीएससी 2023 प्रीलिम्स में 7 सवाल हटाए गए थे। इससे पहले के पांच वर्षों में हुए प्रीलिम्स में मॉडल उत्तर पर आपत्ति के बाद 45 सवाल हटाए गए थे। इस तरह से छह सालों में 52 प्रश्न विलोपित किए गए।
इस साल एक और मामला सामने आ गया है। इस बार गड़बड़ी परिवहन उप निरीक्षक (तकनीकी) भर्ती परीक्षा को लेकर है। एक सितंबर को पीएससी से इसकी लिखित परीक्षा हुई थी।
कुल 150 सवाल पूछे गए। इसमें से 14 सवाल व उनके जवाब गलत मिले हैं। इसलिए इन्हें पीएससी ने विलोपित किया है। अब 136 प्रश्नों के आधार पर कापियों का मूल्यांकन होगा।
आयोग का एक साल का खर्च 30 करोड़ रुपए
आयोग के पूरे ढांचे की बात करें तो इस पर हर साल करोड़ों रुपए खर्च होते हैं। इसमें 164 अधिकारी - कर्मचारियों का स्टाफ स्वीकृत है। आयोग में एक अध्यक्ष और चार सदस्य होते हैं।
अभी पीएससी प्रभारी अध्यक्ष के भरोसे काम कर रही है। आयोग के पास पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं हैं और न ही सदस्यों का कोरम पूरा है।
इनके अलावा अधिकारियों में सचिव, विधिक सलाहकार, उप सचिव, एग्जाम कंट्रोलर, सीनियर मैनेजर, मैनेजर, अवर सचिव, उप संचालक और स्टॉफ आफिसर समेत 42 अधिकारी होते हैं।
इन अधिकारियों पर हर महीने लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं। आयोग पर सालाना खर्च 30 करोड़ रुपए है। इसमें इनके वेतन भत्ते और अन्य सुविधाएं शामिल हैं।
इसके बाद भी आयोग का कामकाज हमेशा सवालों के घेरे में रहा है। युवाओं को नौकरी देने जैसे अहम काम में लगे ये अधिकारी मूल काम छोड़कर सब कर रहे हैं और लापरवाही की मोटी तनख्वाह भी ले रहे हैं।
कामकाज पर उठ रहे सवाल
आयोग में गड़बड़ियों के कई कानूनी प्रकरण भी चल रहे हैं। जानकारी के मुताबिक हाईकोर्ट में 56 मामले और सुप्रीम कोर्ट में 1 मामला चल रहा है। अब लंबित मामलों की संख्या देखें तो कुल 721 मामले हैं।
इनमें 713 हाईकोर्ट में और 8 मामले सुप्रीम कोर्ट में चल रहे हैं। यही कारण है कि हमेशा आयोग के कामकाज पर सवाल उठते रहे हैं।
एक साल से नहीं निकलीं भर्तियां
सीजीपीएससी में पिछले एक साल से कोई भर्ती नहीं निकाली गईं हैं। छत्तीसगढ़ में सीएम विष्णुदेव साय की सरकार बने भी नौ महीने हो गए हैं लेकिन सरकार एक अदद पूर्णकालिक अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं कर पाई है।
इससे तो यही नजर आता है कि युवाओं को नौकरी देने के मामले में सरकार सीरियस नहीं है। सरकारी आकड़ों के अनुसार प्रदेश में 18 लाख से ज्यादा पढ़े-लिखे बेरोजगार हैं, जिन्हें नौकरी की दरकार है।
यह तो सिर्फ सरकारी आंकड़ा है असलियत में इनकी संख्या दोगुनी से ज्यादा है। पीएससी की राह पर ही व्यापम है। यहां भी यही स्थिति है। एसआई की परीक्षा दिए उम्मीदवारों को छह साल हो गए है, लेकिन उनकी परीक्षा का नतीजा अभी तक नहीं आ पाया है।
वे पिछले 15 दिन से आंदोलन पर हैं। शिक्षकों की भर्ती का भी यही आलम है। यदि सरकार इसी तरह इन अहम मुद्दों को नजरअंदाज करती रही तो फिर युवाओं के भविष्य का क्या होगा।
बीजेपी ने चुनाव में भुनाया और अब भुलाया मुद्दा
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार के समय पीएससी भर्ती में घोटाले के आरोप लगे थे। पीएएसी में हुए कथित घोटले को बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा बनाया था।
बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में भी लिखा था कि सरकार बनने पर वह इस मामले की जांच सीबीआई से कराएगी। प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने पर पीएसएसी मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई।
सीबीआई ने इसकी जांच शुरू कर दी है। भ्रष्टाचार में फंसे तत्कालीन पीएससी अध्यक्ष टामन सिंह को हटा दिया गया था, तभी से पीएससी बोर्ड का अध्यक्ष का पद खाली है। चुनाव में यह मुद्दा भुनाने वाली बीजेपी ने युवाओं की नौकरी के इस मुद्दे को भुला दिया है।