अरुण तिवारी @ RAIPUR. नई सरकार बनने के बाद प्रदेश के समीकरण बदलने लगे हैं। विष्णु सरकार ( Vishnu government ) अब पिछले पांच साल का बही खाता उलटने लगी है। सरकार के निशाने पर वे तमाम भर्तियां हैं जो पिछले पांच साल के दौरान हुई हैं। खासतौर पर विश्वविद्यालयों में हुई प्रोफेसर,लेक्चरर और असिस्टेंट प्रोफेसर जैसे पदों पर हुई भर्तियों में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की शिकायतें सरकार के पास पहुंची हैं। खबर तो यहां तक है कि इन पदों पर भर्तियों की कीमत चालीस से साठ लाख रुपए तक लगाई गई थी। कांग्रेस सरकार के दौरान बने कुलपति भी सरकार की रडार पर हैं। सरकार के एक्शन ने कुलपतियों को टेंशन में ला दिया है। इसकी शुरुआत महात्मा गांधी हार्टिकल्चर यूनिवर्सिटी से हुई है। सरकार ने न सिर्फ यहां हुई भर्तियां स्थगित की हैं बल्कि कुलपति डॉ रामशंकर कुरील को भी हटा दिया गया है।
इस तरह हुई थी भर्तियों में गड़बड़ी
सरकार को महात्मा गांधी हार्टिकल्चर यूनिवर्सिटी दुर्ग में असिस्टेंट प्रोफेसर के 35 पदों पर भर्ती के लिए तैयार किए गए स्कोर कार्ड में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की शिकायत मिली। यूजीसी की गाइडलाइन के हिसाब से पीएचडी और नेट की परीक्षा के लिए अलग-अलग नंबर देना चाहिए था। लेकिन इस भर्ती में ऐसा नहीं किया गया। इस कारण पीएचडी उम्मीदवार होते हुए भी बिना पीएचडी वाले अभ्यर्थियों का चयन कर नियुक्ति दे दी गई। वहीं चयन समिति बनाने में भी दोषपूर्ण प्रक्रिया अपनाई गई। चयन समिति में कुलसचिव ने इंटरव्यू के नंबर दिए थे लेकिन कुछ उम्मीदवारों के चयन में कुलसचिव को नंबर देने से रोका गया। शिकायत में ये भी बात सामने आई कि सहायक प्राध्यापक की नियुक्तियों को मंजूरी देने वाले प्रबंध मंडल का गठन भी गलत तरीके से किया गया था। इसमें नामांकित लोग और विशेषज्ञ नियमों के अनुरुप नहीं थे। इससे पीएचडी होल्डर को कम अंक देकर अन्य प्रदेश के उम्मीदवारों की नियुक्ति कर दी गई। सरकार द्वारा इस शिकायत पर तीन सदस्यों की कमेटी बनाकर जांच कराने का फैसला लिया गया।
भर्तियों की रेट लिस्ट
कुलपति कुरील पर आर्थिक अनियमितताओं के गंभीर आरोप लगे हैं। भर्तियों में भी बड़े पैमाने पर लेनदेन के आरोप हैं। यूनिवर्सिटी से जुड़े सूत्रों की मानें तो यूनिवर्सिटी में हर पद के लिए बाकायदा रेट लिस्ट थी। प्रोफेसरों के लिए 60 से 75 लाख रुपए। रीडर के लिए 40 से 50 लाख रुपए और असिस्टेंट प्रोफेसर के पद के लिए 25 से 30 लाख रुपए तक की कीमत फिक्स थी। जिसकी जेब में पैसा था उसको नियमों को दरकिनार कर प्रोफेसर और लेक्चरर बना दिया गया। जो डिग्रीधारी थे वे परीक्षा में पीछे छूट गए।
विवादों में विश्वविद्यालय
पिछले पांच साल के दौरान सरकारी विश्वविद्यालयों में जितनी भी कुलपतियों की नियुक्तियां हुई हैं उनमें से अधिकांश विवादों में रही हैं। सूत्रों की मानें तो कुलपति बनने के लिए भी मोदी फीस दी गई है। यही कारण है कि भर्तियों में भ्रष्टाचार का खेला चलता रहा। विश्वविद्यालयों में कुलपति के पास सुप्रीम पॉवर होते हैं और कुलपति के हिसाब से ही नियम कायदे और भर्तियां चलती हैं। हार्टिकल्चर यूनिवर्सिटी का मामला सामने आने के बाद सरकार अब सभी सरकारी विश्वविद्यालयों में हुई भर्ती की जांच कराने की तैयारी कर रही है। आचार संहिता हटने के बाद इस संबंध में फैसला लिया जाएगा। सरकार के एक्शन में आने से कुलपतियों की टेंशन बढ़ गई है और वे अब अपने बचाव का रास्ता खोजने लगे हैं।