बस्तर ओलंपिक: मुख्यमंत्री साय की पहल ने बस्तर के युवाओं को दिया उड़ान भरने का अवसर

बस्तर ओलंपिक ने युवाओं को सामाजिक बदलाव और खेल में आत्मविश्वास दिखाने का मौका दिया। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की पहल ने बस्तर के युवाओं को नया रास्ता दिया है। अब बस्तर नक्सल हिंसा से बाहर आकर खेलों में अपनी पहचान बना रहा है।

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Raipur. छत्तीसगढ़ का बस्तर वह इलाका रहा है, जिसकी पहचान कई सालों तक नक्सली हिंसा, भय, सरकारी योजनाओं से दूरी और टूटी उम्मीदों से जुड़ी रही। गाँव-कस्बों में अंधेरा था। लोग विकास की बात करते भी थे तो वह सिर्फ कल्पना लगती थी। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में तस्वीर बदलने लगी है। छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में सरकार ने जिस तरह से सुरक्षा, शिक्षा, खेल, पुनर्वास, और जनभागीदारी को साथ लेकर काम किया, उसका सबसे चमकता हुआ प्रतीक बन गया है- बस्तर ओलंपिक।

यह आयोजन खेल का त्योहार है, लेकिन इसकी असली ताकत यह है कि इसने सामाजिक बदलाव की नींव रखी है। एक ऐसा बदलाव... जिसकी गूंज बस्तर के हर गाँव, हर क्षेत्र और हर युवा की जिंदगी में सुनाई दे रही है।

गौरतलब है कि जब वर्ष 2024 में बस्तर ओलंपिक की शुरुआत हुई थी, तब कई लोग इसे कठिन प्रयोग मान रहे थे। कई लोगों को सवाल था कि क्या ऐसे इलाकों में, जहाँ दशकों से बंदूकें और हिंसा का असर रहा है, वहाँ विशाल खेल आयोजन चल पाएगा?

पहले साल ही जवाब मिल गया। हजारों युवाओं ने खुद को इस आयोजन से जोड़ा। लोगों का उत्साह देखकर यह साफ हो गया कि बस्तर बदलना चाहता है। वर्ष 2024 में इसे एशिया के सबसे बड़े जनजातीय खेल आयोजनों में गिना गया। वर्ष 2025 में यह आयोजन और भी भव्य होकर सामने आया।

2025 के बस्तर ओलंपिक का रिकॉर्ड

25 अक्टूबर 2025 को शुरू हुए बस्तर ओलंपिक ने इस बार कई नए रिकॉर्ड बनाए। 4 लाख से अधिक खिलाड़ियों ने पंजीकरण कराया। 7 जिलों की 7 टीमें शामिल हुईं। वहीं एक विशेष ‘नुआ बाट’ टीम ने भी शिरकत की। 600 से ज्यादा नुआ बाट खिलाड़ी शामिल हुए। इतनी बड़ी भागीदारी ने यह साबित किया कि बस्तर के युवाओं में ऊर्जा है। प्रतिभा है और खुद को बदलने की प्यास है।

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नुआ बाट: हिंसा से खेल के मैदान तक नई यात्रा

बस्तर की बोली में ‘नुआ बाट’ का अर्थ है नया रास्ता। इसी सोच को आधार बनाकर सरकार ने सरेंडर नक्सलियों और नक्सली हिंसा से प्रभावित युवाओं की विशेष टीम बनाई है। 2024 में जहाँ 300–350 युवा इसमें शामिल थे, वहीं इस साल यह संख्या 600 पार कर गई।

ये वही युवा हैं, जिन्होंने कभी हथियार उठाए थे, लेकिन अब खेलों के माध्यम से नई पहचान बना रहे हैं। उनके लिए मैदान सिर्फ प्रतियोगिता नहीं, बल्कि नई जिंदगी की शुरुआत है। यह पहल बताती है कि खेल किसी समाज में कितनी गहरी भूमिका निभा सकता है।

मजबूत इच्छाशक्ति से हासिल किया मुकाम

बस्तर ओलंपिक की सबसे खास बात है इसकी मजबूत राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छाशक्ति। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने इसे केवल एक स्पोर्ट्स इवेंट नहीं माना, बल्कि इसे सामाजिक परिवर्तन का जरिया बनाया। सरकार ने दूरस्थ गाँवों में सुरक्षित खेल मैदान तैयार करवाए। ब्लॉक से लेकर संभाग स्तर तक बजट बढ़ाया। महिला खिलाड़ियों की भागीदारी के लिए विशेष संरचना बनाई। हिंसा में दिव्यांग हुए युवाओं के लिए अलग श्रेणी शुरू की। सभी खिलाड़ियों को किट, जूते, जर्सी और मेडिकल सुविधा उपलब्ध कराई।

इस पूरे आयोजन का शुभंकर ‘वन भैंसा’ बनाया गया, जो बस्तर की संस्कृति का प्रतीक है। मुख्यमंत्री साय का कहना है कि बस्तर ओलंपिक सिर्फ खेल नहीं, यह बस्तर के आत्मविश्वास की यात्रा है। बस्तर ओलंपिक उन खेलों को फिर से जीवन दे रहा है जो बस्तर की संस्कृति की आत्मा रहे हैं।

इन खेलों को किया शामिल

एथलेटिक्स: 100 मीटर, 200 मीटर, 400 मीटर, लंबी कूद, ऊंची कूद, जैवलिन, डिस्कस, शॉटपुट, 4×100 रिले।
टीम गेम्स: फुटबॉल, कबड्डी, वॉलीबॉल, खो-खो, बैडमिंटन, कराटे।
महिला सीनियर वर्ग: रस्साकशी।
जिला स्तरीय खेल: हॉकी और वेटलिफ्टिंग।
दिव्यांग खिलाड़ियों के खेल: व्हीलचेयर रेस, विशेष एथलेटिक्स, कबड्डी, खो-खो।

आयोजन की चार श्रेणी

संकुल स्तर: गाँव-पंचायत के खिलाड़ी
विकासखंड स्तर: संकुल विजेताओं की टीमें
जिला स्तर: 7 जिलों की अलग-अलग प्रतियोगिताएँ
संभागीय स्तर: सबसे बड़ा और निर्णायक चरण
इसी संरचना ने इसे जमीनी स्तर का आयोजन बनाया है। हर खिलाड़ी जानता है कि उसकी मेहनत उसे गाँव से लेकर संभाग और राज्य स्तर तक ले जा सकती है।

महिला खिलाड़ियों का सशक्तिकरण

बस्तर ओलंपिक ने महिलाओं को एक नया मंच दिया है। कोंटा विकासखंड की सरोज पोडियाम इसकी मिसाल हैं। मुरलीगुड़ा गाँव की सरोज तीन साल की बच्ची की माँ हैं और शादी के बाद खेल से दूर हो गई थीं। बस्तर ओलंपिक शुरू होने के बाद उन्होंने फिर से कबड्डी और खो-खो में हिस्सा लिया।

आज वह संभाग स्तर तक पहुँच चुकी हैं। वह कहती हैं, हम महिलाओं का समय घर-परिवार में निकल जाता है। यह आयोजन हमें फिर से अपनी पहचान देता है। ऐसी सैकड़ों कहानियाँ हैं, जो बताती हैं कि खेल सिर्फ मैदान में नहीं, ज़िंदगी में भी ताकत देता है।

सात जिलों का एक मंच

बस्तर संभाग के सात जिले बस्तर, जगदलपुर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बीजापुर, कोण्डागांव, कांकेर ओलंपिक में सहभागिता करते हैं। इन जिलों की अलग संस्कृति, बोली और तरीके हैं। लेकिन बस्तर ओलंपिक के दौरान पूरा क्षेत्र एक परिवार बन जाता है। पहले जहाँ इन इलाकों में तनाव की खबरें आती थीं, आज वहीं से खेल भावना, दोस्ती और एकता की तस्वीरें सामने आती हैं।

खेल, शांति और विकास की साझी यात्रा

बस्तर ओलंपिक ने यह साबित किया है कि किसी क्षेत्र को केवल सुरक्षा बलों या सरकारी योजनाओं से नहीं बदला जा सकता, बल्कि उसमें लोगों की भावनाएँ और सपने भी शामिल होने चाहिए। आज बस्तर के वही जंगल जहाँ कभी बंदूकों की आवाज़ गूंजती थी, अब खिलाड़ियों की तालियों और उत्साह से गूंजते हैं।

युवाओं को खेल के माध्यम से जो रास्ता मिला है, उसने उन्हें नई दिशा दी है। कई खिलाड़ी अब राज्य स्तर, राष्ट्रीय स्तर और कुछ अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं तक पहुँच चुके हैं।

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