लगातार चुनाव हारने की वजह से कांग्रेस की ग्राउंड स्तर पर पकड़ कमजोर हो गई है। संगठन को फिर से मजबूत बनाने के लिए पार्टी ने एक नया तरीका अपनाया है। अब ग्राउंड स्तर की रिपोर्ट्स जिलाध्यक्ष सीधे राहुल गांधी को सौपेंगे। इसके लिए राहुल गांधी सभी जिलाध्यक्षों से मुलाकात करेंगे। राहुल गांधी जिलाध्यक्षों की एक खास बैठक लेंगे। इस बैठक में वे जिलाध्यक्षों से राजनीतिक समीकरणों पर चर्चा करेंगे।
राहुल गांधी कांग्रेस के संगठन को जिलास्तर से लेकर हाईकमान तक फिर से मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। इसके तहत, वे पहली बार सीधे जिलाध्यक्षों से संवाद कर रहे हैं। 27 मार्च से देशभर के अलग-अलग राज्यों से जिलाध्यक्षों को बुलाया गया था, ताकि पार्टी की ग्राउंड रिपोर्ट सीधे हाईकमान तक पहुंचे। अब, कल 3 अप्रैल को छत्तीसगढ़ कांग्रेस के जिलाध्यक्षों से मुलाकात होगी, जिसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी मौजूद रहेंगे।
उनकी योजना संगठन में पावर डिस्ट्रीब्यूशन को बैलेंस करने की भी है, ताकि जिलास्तर पर नेताओं को ज्यादा ताकत मिले, लेकिन हाईकमान की पकड़ भी बनी रहे। बूथ स्तर तक कांग्रेस को मजबूत करने के इस फॉर्मूले से राहुल प्रदेश नेतृत्व के असर को कम करते हुए संगठन की सीधी मॉनिटरिंग करना चाहते हैं। इससे गुटबाजी पर रोक लग सकती है, लेकिन प्रदेश के बड़े नेताओं की भूमिका कमजोर भी हो सकती है।
कांग्रेस ने संगठन को मजबूत बनाने के लिए क्या नया तरीका अपनाया है?
कांग्रेस ने संगठन को मजबूत बनाने के लिए एक नया तरीका अपनाया है, जिसके तहत जिलाध्यक्षों की ग्राउंड रिपोर्ट सीधे राहुल गांधी को सौंपी जाएगी। इसके लिए राहुल गांधी जिलाध्यक्षों से मुलाकात करेंगे और राजनीतिक समीकरणों पर चर्चा करेंगे।
राहुल गांधी की रणनीति क्या है और वह किस पर काम कर रहे हैं?
राहुल गांधी की रणनीति कांग्रेस के संगठन को जिलास्तर से लेकर हाईकमान तक फिर से मजबूत करने की है। इसके तहत, वे जिलाध्यक्षों से सीधा संवाद कर रहे हैं और 27 मार्च से देशभर के जिलाध्यक्षों को बुलाया गया था ताकि पार्टी की ग्राउंड रिपोर्ट सीधे हाईकमान तक पहुंचे।
राहुल गांधी का उद्देश्य संगठन की शक्ति को किस तरह से संतुलित करना है?
राहुल गांधी का उद्देश्य संगठन में पावर डिस्ट्रीब्यूशन को बैलेंस करना है, ताकि जिलास्तर पर नेताओं को ज्यादा ताकत मिले, लेकिन हाईकमान की पकड़ भी बनी रहे। इस रणनीति से गुटबाजी पर रोक लग सकती है, लेकिन प्रदेश के बड़े नेताओं की भूमिका कमजोर हो सकती है।